नवीन कुमार, मुंबई. महाराष्ट्र पर पूरे देश की नजर है. क्योंकि, यह देश का दूसरा ऐसा राज्य है जो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी दिलाने में अहम भूमिका निभा सकता है. यहां लोकसभा की 48 सीटें हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह घोषणा कर चुके हैं कि 2024 के चुनाव में महाराष्ट्र की ये 48 सीटें जीतकर मोदी को उपहार में दिए जाएंगे. मोदी के लिए भाजपा को महाराष्ट्र के साथ उत्तर प्रदेश पर भी पूरा भरोसा है जो लोकसभा की संख्या बल के हिसाब से देश का सबसे बड़ा राज्य है जहां लोकसभा की 80 सीटें हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरोसे इन सीटों पर विजय पहले से ही तय माना जा रहा है. लेकिन महाराष्ट्र जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं है. महाराष्ट्र में भाजपा को तीन मोर्चे पर राजनीतिक युद्ध जीतना है. भाजपा यहां लोकसभा के अलावा विधानसभा और मुंबई महापालिका के चुनावों के लिए एक साथ तैयारी कर रही है. इसमें से किसी एक मोर्चे पर कमजोर पड़ने से बाकी मोर्चों पर भी उसका सीधा असर दिखेगा. इधर विपक्ष भी भाजपा से दो-दो हाथ करने के लिए हर पैंतरे को मजबूत करने में जुटा हुआ है. इसलिए अभी से महाराष्ट्र के हर दल के अंदर की राजनीति जिस तरह से बाहर आती दिख रही है उससे लगता है कि कोई भी दल बहुत मजबूत नहीं है.
इस समय राज्य में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में भाजपा शामिल है. शिंदे के सहारे भाजपा ने शिवसेना में फूट डाली और शिंदे के साथ शिवसेना के 40 और 10 अन्य निर्दलीय विधायक आए. शिंदे अपने गुट की शिवसेना के मुखिया हैं. शिंदे के इस प्रयास से भाजपा को लग रहा है कि अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना कमजोर पड़ गई है. ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा कांग्रेस और एनसीपी में भी तोड़फोड़ की राजनीति का इस्तेमाल करके इन दोनों दलों को भी कमजोर करेगी ताकि अगले किसी भी चुनाव में भाजपा के विजय रथ को कोई रोक न सके. फिलहाल इस बारे में सटीक भविष्यवाणी तो की नहीं जा सकती. क्योंकि, दूसरे दलों की तरह भाजपा की भी अंदरूनी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. भाजपा और शिंदे गुट की शिवसेना का गठबंधन है. यह सच है कि भाजपा के 105 विधायक हैं और शिंदे के पास 50 विधायकों का समर्थन है. बावजूद इसके शिंदे मुख्यमंत्री हैं और भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. इस असंतुलन को फडणवीस सहित राज्य के अन्य भाजपा नेता स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं और समर्थक बार-बार चिल्ला रहे हैं कि फडणवीस ही मुख्यमंत्री होना चाहिए. यह दर्द फडणवीस भी बयां करते रहते हैं. लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेताओं की इच्छा पर शिंदे मुख्यमंत्री बने हुए हैं. अगर शिंदे को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाता है तो अगले चुनाव में भाजपा को यह बदलाव भारी पड़ सकता है. मगर राज्य के भाजपाई नेता अपनी भी चाल चल रहे हैं. अंदरूनी गुटबाजी का भी असर बाहर आ रहा है.
हरेक दल ने अपनी चुनावी स्थिति को भांपने के लिए अंदरूनी सर्वे भी करा ली है. किसी भी दल को अपनी मजबूत स्थिति नहीं दिख रही है. इससे हरेक दल के मुखिया की परेशानी बढ़ी हुई है. इसे दूर करने के लिए संगठन में उलटफेर किए जा रहे हैं तो जातीय समीकरण को भी मजबूत किया जा रहा है. बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह ही महाराष्ट्र में भी जातीय समीकरण मायने रखता है. यहां मराठा, ब्राह्मण, ओबीसी और दलित के जातीय समीकरण पर राजनीति तय होती है. मोदी ने युवा ब्राह्मण नेता फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाकर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी थी. लेकिन आज के दौर में समीकरण बदल गए हैं और फिर से पुराने दौर के मराठा समीकरण को अपनाया जा रहा है. उसी के तहत भाजपा ने मराठा नेता शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर राजनीतिक समीकरण बदलने की कोशिश की है. केंद्र के इशारे पर ही उन मराठा नेताओं को राज्य की राजनीति में फिर से सक्रिय किया गया है जिनको फडणवीस के कार्यकाल में दरकिनार कर दिया गया था. ये मराठा नेता अब अपना दायरा बढ़ा रहे हैं जिससे फडणवीस की बेचैनी बढ़ रही है. भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) गठबंधन में गुटबाजी भी दिख रही है. सर्वे और विज्ञापन के जरिए शिंदे और फडणवीस खुद को एक दूसरे से ज्यादा लोकप्रिय बता रहे हैं. इन दोनों बड़े नेताओं के बीच अपने अस्तित्व की लड़ाई इसी तरह रही तो इसका खामियाजा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है. वैसे, शिंदे पर वोट बैंक बढ़ाने का भी दबाव बढ़ रहा है.
जातीय समीकरण की राजनीति सिर्फ भाजपा में ही नहीं है. कांग्रेस में भी बदलाव की हवा चल पड़ी है. अपने चुनावी आंकलन के हिसाब से कांग्रेस ने मुंबई अध्यक्ष पद पर एक दलित महिला नेता वर्षा गायकवाड को जिम्मेदारी सौंप दी है. माना जाता है कि यह रणनीति लोकसभा, विधानसभा और मुंबई महापालिका के चुनावों को ध्यान में रखकर अपनाई गई. बदलाव की चर्चा तो प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले को लेकर भी है. उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना को शिंदे गुट झटका दे रहा है. लेकिन उद्धव अपने कट्टर शिवसैनिकों के सहारे हर झटके को सहते हुए शिंदे गुट के साथ भाजपा पर भारी पड़ने की कोशिश कर रहे हैं. एनसीपी में भी काफी तूफान मचा हुआ है. पार्टी की वर्षगांठ वाले कार्यक्रम में विरोधी पक्ष नेता अजित पवार ने संगठन के लिए काम करने की इच्छा जाहिर की. उनकी नजर प्रदेश अध्यक्ष पद पर है जिस पर अभी जयंत पाटील हैं. यह पद अजित के अलावा ओबीसी नेता छजन भुजबल भी चाहते हैं. वैसे, अजित के भाजपा में जाने की आशंका बनी हुई है. इसलिए अजित को प्रदेश अध्यक्ष पद सौंपने में पार्टी को बड़ा खतरा भी दिख रहा है. ऐसे में अजित को लेकर एनसीपी प्रमुख शरद पवार का फैसला मायने रखेगा कि वह उन्हें किस तरह के संगठन का काम सौंपते हैं जिससे भविष्य में पार्टी को नुकसान न हो. इस समय शरद पवार देशभर के विपक्ष को भी एकजुट करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं ताकि 2024 के चुनाव में भाजपा को हराया जा सके और अगर यह संभव हो गया तो शरद पवार का पीएम बनने का भी सपना साकार हो सकता हैं. हालांकि, वह खुद को पीएम की रेस से बाहर बता रहे हैं. लेकिन राजनीति में कब मन बदलता है कोई नहीं जानता है. शरद पवार महाराष्ट्र में भी भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) के खिलाफ महा विकास आघाड़ी को एकजुट और मजबूत करने का भी काम कर रहे हैं. इसलिए वह किसी भी सूरत में अपनी पार्टी को बिखरने नहीं देना चाहते हैं. इसमें अगर वह चूक गए तो उनकी राजनीति पर पानी फिरने का खतरा है. शरद पवार की पार्टी को नुकसान पहुंचाने के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव अपनी पार्टी बीआरएस के उम्मीदवारों को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उतारेंगे. इससे विपक्ष के वोट बंटेंगे और इसका फायदा सीधे तौर पर भाजपा को मिल सकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-महाराष्ट्र में इन दिनों चल रही तानाशाही, भ्रष्टाचार-आदित्य ठाकरे
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