मंगल+शनि योगफल तथा उपाय

मंगल+शनि योगफल तथा उपाय

प्रेषित समय :20:30:56 PM / Mon, Aug 28th, 2023
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*कुंडली में शनि मंगल का योग करियर के लिए संघर्ष देने वाला होता है करियर की स्थिरता में बहुत समय लगता है और व्यक्ति को बहुत अधिक पुरुषार्थ करने पर ही करियर में सफलता मिलती है शनि मंगल का योग व्यक्ति को तकनीकी कार्यों जैसे इंजीनियरिंग आदि में आगे ले जाता है और यह योग कुंडली के शुभ भावों में होने पर व्यक्ति पुरुषार्थ से अपनी तकनीकी प्रतिभाओं के द्वारा सफलता पाता है, शनि मंगल का योग यदि कुंडली के छटे या आठवे भाव में हो तो स्वास्थ में कष्ट उत्पन्न करता है शनि मंगल का योग विशेष रूप से पाचनतंत्र की समस्या, जॉइंट्स पेन और एक्सीडेंट जैसी समस्याएं देता है.*

*मंगल ग्रह युवा, चुस्त, बलिष्ठ, छोटे कद वाला, रक्त-गौर वर्ण, पित्त प्रकृति, शूरवीर, उग्र, रक्त नेत्र वाला, और गौरवशाली ग्रह है. इसके विपरीत शनि दुर्बल, लंबा शरीर, रूखे बाल, मोटे दांत और नाखून वाला, दुष्ट, क्रोधी, आलसी और वायु प्रकृति वाला ग्रह है. कुंडली में बलवान शनि सुखकारी तथा निर्बल या पीड़ित शनि कष्टकारक और दुखदायी होता है. इन विपरीत स्वभाव वाले ग्रहों का योग स्वभावतः भाव स्थिति संबंधी उथल-पुथल पैदा करता है. सभी ज्योतिष ग्रंथों ने इस योग का फल बुरा ही बताया है. कुछ आचार्यों ने इसे ‘द्वंद्व योग’ की संज्ञा दी है. ‘द्वंद्व’ का अर्थ है लड़ाई. यह योग लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर मंगल दोष को अधिक अमंगलकारी बनाता है जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में विवाह संबंधी कठिनाइयां आती हैं. विवाह के रिश्ते टूटते हैं, विवाह देर से होता है, विवाहोत्तर जीवन अशांत रहता है, तथा विवाह विच्छेद तक की स्थिति पैदा हो जाती है.*

*फलदीपिका’ ग्रंथ (अ. 18.3) के अनुसार: दुःखार्तोऽसत्य संधः ससवितृ तनये भूिमजे निन्दिश्च. अर्थात् ‘‘मंगल-शनि साथ हों तो व्यक्ति दुःखी, झूठ बोलने वाला, अपने वचन से फिर जाने वाला और निंदित होता है.’’ ‘सारावली’ ग्रंथ (अ. 15.6) के अनुसार: धात्विन्द्रजाल कुशल प्रवन्चक स्तेय कर्म कुशलश्च. कुजसौरयोर्विधर्मः शस्त्रविषघ्नः कलिरूचिः स्यात्.. अर्थात, ‘‘ कुंडली में मंगल और शनि एक साथ होने पर जातक धातुविशेषज्ञ, धोखेबाज, लड़ाकू, चोर, शस्त्राघाती तथा विष संबंधी ज्ञान रखता है. ‘जातक भरणम्’ (द्विग्रह योगाध्याय, श्लोक-15) के अनुसार: शस्त्रास्त्र वित्संगर कर्मकर्ता स्तेयानृतप्रीतिकरः प्रकामम्. सौरव्येन हीनो नितरां नरः स्याद्ध रासुते मन्दयुतेऽतिनिन्द्यः.. अर्थात्, ‘‘जिसके जन्म समय मंगल और शनि का योग हो, वह अस्त्र-शस्त्र चलाने वाला, चोरी में तत्पर, मिथ्या बोलने वाला और सुख हीन होता है.*

*'मानसागरी’ ग्रंथ (द्विग्रहयोग शनि-मंगल द्वंद्व योग फल) अनुसार: वाग्मीन्द्रजालदक्षश्च विधर्मी कलहप्रियः. विषमद्य प्रपंचाढ्यो मंदमंगल संगमे.. अर्थात्, ‘‘मंगल-शनि के योग से व्यक्ति वक्ता तथा इंद्रजाल विद्या में निपुण, धर्महीन, झगड़ालू, विष तथा मदिरा के प्रपंच से युक्त होता है.*

*'होरासार’ ग्रंथ (अ. 23.19) के अनुसार: कुजमन्दयास्तु योगे नित्यार्तो वातपित्त रोगाभ्याम्. उपचय भवने नैव नृपतुल्यो लोक संपतः स्यात्ः.. अर्थात्, ‘‘मंगल और शनि की एक भाव में युति वात (गठिया) और पित्त रोग देती है. परंतु उपचय (3, 6, 10,11) भाव में यह युति जातक को सर्वमान्य बनाती है और राज सम्मान देती है. ज्ञातव्य है कि पापी ग्रह उपचय भाव में शुभ फल देते हैं.*

*'संकेतनिधि’ ग्रंथ (संकेत IV.66) के अनुसार. द्यूने यमेऽसृजि तदीक्षणतश्च वातार्ता. चंचला सरूधिरा कटि चिन्ह युक्ता.. अर्थात् ‘‘यदि शनि-मंगल सातवें भाव में हों या वहां दृष्टिपात करें तब पत्नी अस्थिर बुद्धि और वात रोग से ग्रस्त होती है. उसको रूधिर की अधिकता होती है और उसके कटि प्रदेश में चिह्न होता है.*

*ज्योतिष का हर जानकार शनि ग्रह को धरती पर होने वाली सभी बुरी घटनाओ का प्रतीक व कारक मानता हैं संसार मे होने वाले कष्ट , दुख , संताप , मृत्यु , अपंगता, विकलता , दुष्टता ,पतन , युद्ध , क्रूरता भरे कार्य , अव्यवस्था, विद्रोह इत्यादि का कारक ग्रह यह शनि ही माना जाता हैं किसी की भी कुंडली मे इसकी स्थिति बहुत महत्व रखती हैं जैसे यह कहा जा सकता हैं की दूसरे भाव मे शनि वैवाहिक जीवन व धन हेतु अशुभ होता हैं जबकि चतुर्थ भाव मे यह कष्टपूर्ण बचपन का प्रतीक बनता हैं इसी प्रकार दशम भाव का शनि पाप प्रभाव मे होने से अपनी दशा मे जातक को ऊंचाई से गिराता हैं अथवा ऊंचे पद से धरातल मे ले आता हैं | इस शनि का सूर्य चन्द्र से सप्तम मे होना हमेशा बुरे परिणाम देता हैं वही गुरु के साथ होने पर यह शनि गुरु दशा मे परेशानी अवश्य प्रदान करता हैं.*

*इसी प्रकार मंगल ग्रह को धरती पर होने वाले विस्फोटो , हमलो , अग्निकांडों , युद्धो , भूकंपो इत्यादि का कारक माना जाता हैं जातक विशेष की पत्रिका मे यह मंगल दोष के अतिरिक्त कुछ अन्य भावो मे भी हानी ही करता हैं जैसे तृतीय भाव मे यह भात्र सुख मे कमी प्रदान कर अत्यधिक साहसी प्रवृति देता हैं तथा पंचम भाव मे यह तुरंत निर्णय लेने की घातक सोच प्रदान करता हैं.*

*हमारे ज्योतिष शास्त्रो मे शनि मंगल के संबंध वाले जातक के विषय निम्न बातें कही गयी हैं “ऐसा जातक वक्ता , जादू जानने वाला, धैर्यहीन, झगड़ालू , विष व मदिरा बनाने वाला, अन्याय से द्रव प्राप्ति करने वाला, कलहप्रिय , सुख रहित , दुखी निंदित ,झूठी प्रतिज्ञा करने वाला अर्थात झूठा होता हैं | हमने अपने अध्ययन मे काफी हद तक यह बातें सही पायी हैं इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य बातें हमें अपने इस अध्ययन के दौरान प्राप्त हुयी.*

*इन दोनों ग्रहों का एक अजीब सा रिश्ता हैं मंगल जहां शनि के घर मे ऊंच का होता हैं वही शनि मंगल के घर मे नीच का हो जाता हैं यह दोनों एक मात्र ऐसे ग्रह हैं जो समसप्तक हुये बिना भी एक दूसरे से दृस्टी संबंध बना सकते हैं. ऐसे मे इन दोनों ग्रहो की युति अथवा दृष्टि जातक विशेष की कुंडली मे क्या परिणाम देती हैं आइए कुछ कुंडलियो द्वारा जानने का प्रयास करते हैं.*
*1-यह संबंध जातक विशेष को आत्महत्या करने पर मजबूर करता हैं. उदाहरण के लिए निम्न कुण्डलिया देखी जा सकती हैं.*

*श्री राम जी की कर्क लग्न की पत्रिका मे शनि और मंगल (सप्तमेश-अष्टमेश व पंचमेश-कर्मेश ) की लग्न व दशम भाव पर दृस्टी हैं जिनके मिले जुले प्रभावों से सभी जानते हैं की श्री राम ने जलसमाधि ली थी.*

*29/4/1837 को मिथुन लग्न मे जन्मे इस ने जातक फ्रांसीसी सेना मे जनरल के पद पर रहते हुये फ्रांस के युद्धो मे बहुत नाम कमाया था 1889 मे इन्हे शत्रुतापूर्ण कारवाई के चलते पद से हटा दिया गया 1890 मे इनकी पत्नी की भी मृत्यु हो गयी जिससे निराश होकर इन्होने 30/9/1891 मे आत्महत्या कर ली थी | इनकी पत्रिका मे भी मंगल शनि का दृस्टी संबंध हैं.*

*हिटलर (20/4/1889) तुला लग्न की इस पत्रिका मे शनि मंगल का दृस्टी संबंध हैं जो सप्तमेश चतुर्थेश का संबंध हैं जिससे हिटलर को सिंहासन व पद प्राप्ति की अदम्य असंतुष्टि की भावना प्राप्त हुई और वह अपनी तानाशाही प्रवृति की और उन्मुख होकर विश्व मे विवादित व्यक्ति के रूप मे जाना गया इन्ही ग्रहो के लग्न पर प्रभाव ने उसे आत्महत्या करने को मजबूर किया.*

*इन सभी उदाहरणो से यह स्पष्ट हो जाता हैं की शनि मंगल का संबंध सच मे ही एक विध्वंशक संबंध हैं जो कुंडली मे जातक विशेष के अतिरिक्त धरती पर भी अपना विध्वंशक प्रभाव ही देता हैं.*

*शनि को कार्य के लिये और मंगल को तकनीक के लिये माना जाता है. शनि का रंग काला है तो मंगल का रंग लाल है,दोनो को मिलाने पर कत्थई रंग का निर्माण होजाता है. कत्थई रंग से सम्बन्ध रखने वाली वस्तुयें व्यक्ति स्थान पदार्थ सभी शनि मंगल की युति में जोडे जाते है. शनि जमा हुआ ठंडा पदार्थ है तो मंगल गर्म तीखा पदार्थ है,दोनो को मिलाने पर शनि अपने रूप में नही रह पाता है जितना तेज मंगल के अन्दर होता है उतना ही शनि ढीला हो जाता है.*

*इस बात को रोजाना की जिन्दगी में समझने के लिये घर मे बनने वाली आलू की सब्जी के लिये सोचिये,आलू की सिफ़्त शनि में जोडी जाती है कारण जमीन के अन्दर से यह सब्जी उगती है जड के रूप में इसका आस्तित्व है,जब निकाला जाता है तो जमा हुआ पानी और अन्य पदार्थों का मिश्रण होता है.अगर इसे गर्म नही किया जाये तो यह पकेगा नही और कसैला स्वाद देगा और खाया भी नही जायेगा. सीधे आग में डालने पर यह जल जायेगा,फ़्लेम वाली आग में यह पकेगा नही,जितनी मन्दी आग से इसे पकाया जायेगा उतना ही स्वादिष्ट बनेगा.*

*दूसरा उदाहरण मंगल की भोजन में प्रयोग की जाने वाली मिर्च से भी लिया जाता है,जब मिर्च अधिक हो जाती है तो शरीर के अन्दर जमा हुआ कफ़ जो शनि के द्वारा पैदा किया जाता है पिघलना शुरु हो जाता है,जितनी अधिक मिर्च खायी जाती है उतना अधिक कफ़ शरीर से पिघलना शुरु हो जाता है,यहां तक कि अगर अधिक मिर्ची खायी जाये तो शरीर में जलन पैदा हो जाती है एक बात और भी मानी जाती है कि शनि का स्थान गन्दी जगह पर होता है और मंगल का स्थान गर्म जगह पर होता है,जिन जातकों की कुंडली में शनि मंगल की युति होती है उनका खून किसी न किसी प्रकार के इन्फ़ेक्सन से युक्त होता है.*

*शनि के अन्दर एक बात और देखी जाती है कि वह जड है उसे कोई भान नही है,जैसे सूर्य देखने की क्षमता रखता है चन्द्र सोचने की क्षमता को रखता है मंगल हिम्मत को दिखाने की क्षमता को रखता है बुध गन्द को सूंघने की क्षमता को रखता है,गुरु सुनने और काम शक्ति के विकास की क्षमता को रखता है शुक्र स्पर्श से समझने की क्षमता का रूप होता है,राहु आकस्मिक घटना को देने की ताकत को रखता है तो केतु स्वभाव से ही सहायता के लिये सामने होता है,लेकिन शनि जड है उसे जैसा साधनों से बनाया जाता है वैसा ही वह बन जाता है. मंगल के साथ तकनीकी कारण से शनि जमे हुये कार्य को पिघलाने का काम करता है. शनि पत्थर है और उसे लाल रंग से रंग दिया जाये तो वह धर्म के रूप में बन जायेगा,शनि चोर है तो मंगल सिपाही है. शनि पत्थर है तो मंगल लोहा है,इसलिये ही शनि के लिये लोहे का छल्ला पहिना जाता है. शनि फ़ोडा है तो मंगल आपरेशन है,शनि कर्म है तो मंगल रसोई है,शनि मधुमक्खी है तो मंगल उसके अन्दर का जहर है,शनि आलू का पकौडा है तो मंगल उसके अन्दर मीठी चटनी है. शनि काम करने वाले कर्मचारी है तो मंगल कार्य स्थल की रखवाली करने वाला गार्ड है. शनि घर है तो मंगल उसका दरवाजा है. मंगल खून चोट चेचक अपेन्डिक्स हार्निया देता है तो शनि वात लकवा ह्रदय की बीमारी ट्यूमर ब्रांकाइटिस की बीमारी देता है.*

*मंगल शनि की युति में कार्य तकनीकी होते है मशीन के कार्य भी होते है,व्यापारिक राशि तुला में अगर युति है तो मारकेटिंग की क्षमता भी होती है,एम बी ए आदि करने के बाद बाजार का तकनीकी ज्ञान भी होता है. शनि कार्य होता है तो मंगल कार्य में संघर्ष भी देता है,एक भाई को कष्ट जरूर होता है,मंगल युवा होता है और शनि उसे बुजुर्ग जैसे कष्ट भी देता है,शनि कार्य है तो मंगल उत्तेजना में उसे बदलने का रूप भी बन जाता है. शत्रु अधिक होते है और किसी प्रकार से चन्द्रमा सामने हो तो नाक पर गुस्सा करने वाला व्यक्ति भी होता है. मंगल शनि के साथ वक्री हो तो उत्साह में कमी होती है,काम शक्ति निर्बल होती है,शनि मंगल के साथ वक्री हो तो अधिकार को प्राप्त करने की जल्दबाजी होती है और वह अधिकार भले ही खास आदमी की मौत करनी पडे लेकिन अधिकार जल्दी से लेने में दिक्कत नही होती है.*

*मंगल शनि की दशा में तीन महिना पहले से और तीन महिना बाद तक तथा बीच के एक महिना में घोर कष्ट भुगतने पडते है. शनि में मंगल की दशा में उन्नीस महिने का घोर कष्ट होता है. शनि मंगल के साथ होने पर जातक को बहुत मेहनत के बाद ही सफ़लता मिलती है,हर काम में असन्तोष होता है,वह अपने तकनीकी कारणॊ से ऊंची पदवी वाले लोगो से अनबन ही रखता है,जीवन साथी को बीमारियों की बजह से और नौकरी को तकनीकी कमियों से परेशान होने के लिये भी जाना जाता है. धन हानि भी होती है,नौकरी करने में परेशानी भी होती है,व्यापार आदि में कठिनायी भी होती है. अगर यह युति ग्यारहवे भाव में है और राहु छठे भाव में है तो जातक को कार्य के अन्दर बहाने बनाने की आदत होती है साथ ही वह आंख बचाकर काम करने वाला होता है,छठे से छठा कर घर कार्य में चोरी की आदत भी देता है और जातक को किसी न किसी बात पर अचानक धन का मुआवजा देने या पुलिस आदि में रिपोर्ट होने तथा परेशान होने की बात भी मिलती है.*

*शनि-मंगल दोषमुक्ति के लिए उपाय-
*यदि कुंडली के किसी भी भाव में शनि मंगल एक साथ हों तो सबसे पहले ये देखना चाहिए कि दोनों में से शुभ कौन है तथा अशुभ कौन. इसे सरल बनाने के लिए ऐसे पता करें.*
*यदि शनि अपनी मित्र राशियों- वृषभ, मिथुन, कन्या में हो या अपनी स्वः राशी मकर/कुम्भ में हो या अपनी उच्च राशि तुला में हो तब शनि शुभ होगा तथा मंगल अशुभ. इस स्थिति में मंगल के उपाय करने चाहियें.*

*इसी प्रकार यदि मंगल अपनी मित्र राशियों- सिंह, धनु, मीन में हो या अपनी स्वः राशियों मेष/वृश्चिक में हो या अपनी उच्च राशि मकर में हो तब यहां शनि के उपाय करने चाहिए.*
*यहां भी 2 प्रकार का भेद होता है. मकर शनि की स्वः राशि है तथा मंगल की उच्च राशी. यदि यह योग मकर राशि में कुंडली के छठे आठवें या बाहरनवे भाव में बन रहा हो तब शनि मंगल दोनों की वस्तुओं का दान करना चाहिए अन्यथा नहीं. क्योंकि कुंडली के अन्य भावों में यह योग शुभफल दाई होता है. और जो योग या ग्रह शुभ फल दाई हों उनका दान करने से उनकी शुभता में कमी आती है.

लाल किताब के सरल उपाय

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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