नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक जांच अधिकारी को मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोप पत्र दाखिल करने से पहले आरोपी को जांच के दौरान उसके खिलाफ एकत्र की गई सामग्री को समझाने का अवसर देने के लिए कहा गया था. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मितल की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा अपनाया गया ऐसा दृष्टिकोण बहुत अजीब और कानून के प्रतिकूल है.
पीठ ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करने वाले आरोपी के आवेदन पर उच्च न्यायालय ने गुण-दोष के आधार पर विचार नहीं किया है और इसलिए, 482 सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) के तहत दायर याचिका को बहाल करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, हम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को 8 दिसंबर 2023 की सुबह रोस्टर बेंच के समक्ष बहाल याचिका को सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हैं. पार्टियां उस दिन रोस्टर बेंच के सामने पेश होंगी.
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने किसी भी दंडात्मक कार्रवाई के खिलाफ दी गई अंतरिम सुरक्षा 8 जनवरी 2024 तक बढ़ा दी. इसमें कहा गया है कि आरोपी को अगले साल 8 जनवरी तक रिमांड मामले का फैसला नहीं होने की स्थिति में अंतरिम राहत जारी रखने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन करने की स्वतंत्रता दी जाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया, उच्च न्यायालय इस न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम राहत से प्रभावित हुए बिना याचिकाकर्ता के मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करेगा. सभी विवादों को उच्च न्यायालय द्वारा विचार करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-Delhi AQI: 5 साल में दिल्ली सबसे प्रदूषित शहर, सुबह-सुबह छाया अंधेरा, सांस लेना भी दूभर
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