जब घरों में आमतौर से शयन कक्ष बनाने की बात आती है, तो उत्तर-पूर्व के शयन कक्ष के बारे में सदैव लोगों के मन में भ्रांति रहती है कि इस ज़ोन में तो पूजा-घर बनाने को प्राय: कहा जाता है, परन्तु यदि मजबूरी में बनाना ही हो तो हम यदि यह भी सही निर्णय ले सकें कि यहां सुलाया किसको जाये. यदि हम यह समझ लेंगे और उस पर अमल भी करेंगे तो हमको कुछ हद् तक संतुष्टि मिल सकती है.
यहां यदि हम इस दिशा/ज़ोन को उनके आधिपत्य ग्रह से समन्वय बना कर समझेंगे तो हमको आसानी हो जायेगी.
उत्तर-पूर्व परमेश्वर की दिशा मानी जाती है, जिस पर देवगुरु बृहस्पति का आधिपत्य होता है. अतः इस दिशा में शयन कक्ष नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि शयन सुख पर भोग-विलास और शुक्र का आधिपत्य होता है.
तात्पर्य यह है कि इस दिशा अर्थात गुरु के क्षेत्र में शुक्र के प्रभाव में गुरु कमी लाएगा, जिसके फलस्वरूप उचित शयन सुख नहीं मिल पायेगा. आपसी प्रेम की कमी रहेगी और तकरार की स्थिति बनती रहेगी.
परन्तु 17-18 वर्ष के बच्चों का शयन कक्ष यहां बनाया जा सकता है. यहां बच्चे अनुशासित और मर्यादित बनेंगे, क्योंकि यहां ज्ञान के स्वामी गुरु एवं बुद्धि के स्वामी बुध ग्रह का संयुक्त प्रभाव इस क्षेत्र पर बना रहता है. जल तत्व का प्रभाव होने के कारण बच्चों का अच्छा विकास हो सकता है.
सांसारिक कार्यों से विरक्त हो चुके वृद्धजनों को यहां ईशान क्षेत्र में सुलाया जा सकता है.
कुल मिलाकर नव विवाहित दम्पत्ति को तो यहां बिल्कुल ही न सुलायें.
Astro nirmal
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