नवीन कुमार
देश के हिंदीपट्टी राज्यों में घटित हलचल का असर महाराष्ट्र की राजनीति पर भी होता है. क्योंकि, हिंदीपट्टी के ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग मुंबई और महाराष्ट्र में पेट पालने के लिए आते हैं और महाराष्ट्र के आर्थिक विकास में योगदान भी देते हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे ने भी महाराष्ट्र को प्रभावित किया है. बिहार में नीतीश कुमार के भाजपा के साथ फिर से सरकार बना लेने से विपक्षी एकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. बावजूद इसके महाराष्ट्र का जदयू समर्थित एक विधायक अभी भी महा विकास आघाड़ी में शामिल है. इधर झारखंड में जिस तरह से लोटस ऑपरेशन के जरिए हेमंत सोरेन सरकार को गिराया गया और हेमंत ईडी की गिरफ्त में फंस गए उससे यह चिंता तो बढ़ ही गई है कि अब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार भी कभी भी लोटस ऑपरेशन की शिकार हो सकती है. लेकिन झारखंड में हेमंत ने आदिवासी और मूलवासी जैसे अपने मौलिक मंत्र से लोटल ऑपरेशन को असफल कर दिया और झारखंड के नए मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने सदन में अपना बहुमत साबित कर दिया. फ्लोर टेस्ट में चंपई के पक्ष में 47 और विपक्ष को 29 मत मिले. विपक्ष यानी भाजपा को 32 विधायकों का समर्थन था. फ्लोर टेस्ट में भाजपा को 29 मत मिले. तीन विधायक अनुपस्थित थे. इससे इस आशंका को बल मिल रहा है कि झारखंड में हेमंत की पार्टी की चंपई सरकार को हर विधायक गिराना नहीं चाहते थे.
चंपई सरकार के फ्लोर टेस्ट में पास हो जाने से सिर्फ झारखंड की ही राजनीति में आवोहवा नहीं बदलेगी बल्कि महाराष्ट्र के राजनीतिक मौसम में भी बदलाव हो सकता है. महाराष्ट्र के विपक्ष को झारखंड के राजनीतिक रणनीति को समझना होगा और उसकी तरह कुछ नए प्रयोग करने होंगे. बिहार में जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद की पार्टी राजद से अलग होकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली तो इससे विपक्ष के पूरी तरह से बिखरने का खतरा मंडरा गया था. मौके पर भाजपा ने झारखंड में भी प्रयोग दोहराया. इसके बाद तो विपक्ष का अस्तित्व मिटने जैसा ही लगने लगा. उधर दिल्ली में केजरीवाल को भी ईडी घेरने में लगी हुई है. ऐसा लग रहा है कि ईडी को दिल्ली में दूसरी सफलता मिल सकती है. पहली सफलता तो झारखंड में मिली. हेमंत को गिरफ्तार किया. फ्लोर टेस्ट के दौरान हेमंत ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा है कि शायद वह देश के पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्हें गिरफ्तार किया गया है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनकी गिरफ्तारी की साजिश में राजभवन भी शामिल है. हेमंत की गिरफ्तारी के बाद केजरीवाल को भी गिरफ्तार करने के लिए वही रणनीति अपनाई जा रही है. लेकिन हेमंत ने चंपई के नेतृत्व में सरकार बचाकर भाजपा को करारा झटका दिया है. वैसे, भाजपा की चुप बैठने की आदत नहीं है. चंपई सरकार की नींद हराम करने का काम करती रहेगी.
महाराष्ट्र में भाजपा ने विपक्ष को पूरी तरह से तोड़ दिया है. शिवसेना और एनसीपी के दो फांक कर दिए हैं और उसके एक-एक गुट को भाजपा ने अपनी सरकार में शामिल भी कर लिया है. इन दोनों बड़ी और मजबूत पार्टियों को तोड़ने के बाद लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कुल 48 सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाकर भाजपा काम कर रही है. हालांकि, यह भाजपा के लिए बहुत आसान नहीं है. इसलिए भाजपा दिल्ली, झारखंड, हरियाणा और पश्चिम बंगाल में भी विपक्षी पार्टियों को तोड़ने का काम कर रही है. भाजपा की अंदरूनी स्थिति देखी जाए तो खासकर महाराष्ट में सीटों को लेकर तालमेल नहीं बैठ रहा है. इससे भाजपा की मुसीबत हुई है. क्योंकि, भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) अपनी जीती हुई सीट छोड़ने को तैयार नहीं है. दूसरे नंबर की सीट भी अपने ही कब्जे में रखना चाहती है. ऐसे में विवाद तो होना स्वाभाविक है. यह विवाद नेताओं और कार्यकर्ताओं को मानसिक रूप से तोड़ रहा है. इसका नतीजा क्या दिखेगा यह चुनाव के नतीजे आने के बाद ही दिखेगा. लेकिन भाजपा यह प्रयास कर रही है कि टिकटों का बंटवारा इस तरह से हो कि ज्यादा से ज्यादा टिकट खुद हासिल करे और शिवसेना के साथ एनसीपी को दूसरे पायदान पर रखते हुए चुनाव में भाजपा नंबर वन हासिल कर ले ताकि उसे सरकार बनाने में दूसरी सहयोगी पार्टियों का योगदान दोयम दर्जे का ही रहे. भाजपा की सहयोगी पार्टियों को यह सब पता है. बावजूद इसके विरोध में आवाज नहीं उठा सकती है. क्योंकि, उसे पता है कि मुंह खोला तो उसके भ्रष्ट सांसदों और विधायकों के ईडी वाली फाइल खोल दी जाएगी. इससे अच्छा है मुंह बंद रखो और बेदाग घूमते रहो.
लेकिन झारखंड ने विपक्ष को एक बेहतर रास्ता दिखाया है. महाराष्ट्र के विपक्ष ने इसे अपनाया तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को जोर का झटका दे सकता है. इससे पहले विपक्ष को एकजूट होना पड़ेगा. झारखंड में हेमंत पर भी परिवारवाद का आरोप लगा. जब ईडी की जांच में जाने से पहले हेमंत अपना उत्तराधिकारी तलाश रहे थे तो भाजपा ने यह आरोप लगाया कि वह अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने वाले हैं. हेमंत ने चाल बदली और पार्टी के वरिष्ठ नेता चंपई को जिम्मेदारी सौंप दी. चंपई ने रणनीति तैयार की और हेमंत के परिवार के जो विधायक कथित रूप से विरोध में थे उन्हें अपने साथ कर लिया और पार्टी को टूटने से बचाते हुए सदन में अपना बहुमत भी साबित कर दिया. इधर महाराष्ट्र में भी कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) परिवारवाद से अछूता नहीं है. हालांकि, भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित गुट) भी परिवारवाद की गिरफ्त में है. लेकिन विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे खुद को एकजुट रखा जाए. कांग्रेस सिमटती जा रही है इस हकीकत से वह वाकिफ है. इसलिए उससे उसकी सहयोगी पार्टियां यह उम्मीद कर रही है कि वह बड़े होने का अहंकार छोड़ दे. इससे सीटों का बंटवारा आसान हो सकता है और भाजपा को जवाब दिया जा सकता है. लेकिन कांग्रेस अपने घटते कद को देखकर भी विपक्ष को एकजुट करने में सकारात्मक रूख नहीं दिखा रही है. नीतीश ने भाजपा से हाथ मिलाते हुए इस पर अपनी राय स्पष्ट कर दी. इधर महाराष्ट्र में विपक्ष अभी तक एकजुट नहीं है. सीटों को लेकर सिरफुटौव्वल का खेल खेला जा रहा है. वैसे, महाराष्ट् में कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के अलावा प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी भी अपनी अहमियत रखती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे कमजोर पार्टी साबित हुई थी. उसे एक सीट पर ही विजय हासिल हुई थी जबकि शिवसेना और एनसीपी ने कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की थी. वंचित के पास भी वोटों की संख्या इतनी फीसदी में है कि उससे चुनाव के नतीजे बदल सकते हैं. इस सच्चाई को जानते हुए भी महा विकास आघाड़ी में वंचित तो उचित स्थान नहीं मिल रहा है. इसके उलट अगर हम भाजपा की रणनीति को देखें तो उसने कम से कम वोटों को भी हासिल करने के लिए अपने गठबंधन में ऐसी पार्टियों को शामिल किया है जो एक भी सीट जीत नहीं सकती लेकिन भाजपा की जीत में सहायक साबित हो सकती है. अगर विपक्ष ने भी अपनी एकता को मजबूत करते हुए छोटी-छोटी पार्टियों को साथ कर लिया तो भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी करना आसान हो सकता है. विपक्ष को यह समझना भी जरूरी है कि भाजपा के लिए महाराष्ट्र अभी भी सबसे महत्वपूर्ण राज्य है जिसके बिना तीसरी बार मोदी को प्रधानमंत्री नहीं बनाया जा सकता है. महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें हैं और अगर विपक्ष एकजूट हो जाए तो भाजपा के सपने को चकनाचूर किया जा सकता है. मगर इसके लिए विपक्ष को अपने अहंकार को छोड़ना होगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-महाराष्ट्र : अपनी ही सरकार के खिलाफ उतरे भुजबल, बोले- नवंबर में ही दे दिया था मंत्री पद से इस्तीफा
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