नवीन कुमार
कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अपनी पार्टी के 139 वें स्थापना दिवस के मौके पर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में नागपुर के पास दिघोरी नाका मैदान में महारैली का आयोजन किया. हालांकि, भाजपा ने इस महारैली का मजाक उड़ाया है. मगर कांग्रेस ने इसी महारैली में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए शंखनाद भी किया है. इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि इसके पीछे कांग्रेस की चुनावी रणनीति क्या है? जिस कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने देशभर में कमजोर कर दिया है वही कांग्रेस आरएसएस के गढ़ वाले इलाके नागपुर में दहाड़ने की हिम्मत कैसे जुटाई? क्या कांग्रेस अपना नया राजनीतिक जीवन तलाश रही है? कांग्रेस ने किस मजबूरी में मोदी और भाजपा के खिलाफ इंडिया गठबंधन को मजबूती से खड़ा होने की पैरवी की? क्या विपक्ष को कांग्रेस के साथ आने से चुनावी फायदा होगा?
इस महारैली में कांग्रेस ने जिन सवालों को जन्म दिया है उसके लिए कुछ ऐतिहासिक बातों को भी जानना जरूरी है. महाराष्ट्र का नागपुर विदर्भ का इलाका है. यह विदर्भ सूखा के लिए प्रसिद्ध है जहां किसानों की आत्महत्या की खबरें सुर्खियों में रहती है. लेकिन यहां कांग्रेस की राजनीतिक फसल लहलहाती रही है. आजादी से पहले और आजादी के बाद भी इस जमीन पर कांग्रेस अपनी मजबूत स्थिति में है. मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने देशभर में कांग्रेस को कमजोर करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. बावजूद इसके विदर्भ से कांग्रेस को ऐसी ऊर्जा मिल रही है जिसके सहारे वह भाजपा को जवाब देने के लिए खुद को सक्षम मानती है. दरअसल कांग्रेस का नागपुर से ऐसा रिश्ता है कि उसकी राजनीतिक जमीन कभी बंजर नहीं हुई है. इस समय भी वह यहां भाजपा के लिए चुनौती बनी हुई है. जबकि नागपुर में ही आरएसएस का मुख्यालय है जो भाजपा का वैचारिक स्रोत के साथ राजनीतिक पावर हाउस भी है. भाजपा और आरएसएस के आक्रामक रूख को मोड़ने के लिए ही कांग्रेस ने स्थापना दिवस मनाने के लिए नागपुर का चयन किया और यहां से 2024 के लिए चुनावी शंखनाद भी किया. इस शंखनाद से कांग्रेस परिवर्तन की हवा महसूस कर रही है. यह हवा लोकसभा के चुनाव में पूरे देश में कांग्रेस और मोदी विरोधी खेमे के लिए सकारात्मक साबित हो सकती है. लेकिन मोदी और भाजपा की ओर से कांग्रेस के जिस स्याह चेहरे को जनता के सामने पेश किया जा रहा है उससे दूसरे विपक्षी दलों को भी यह डर सता रहा है कि कांग्रेस की वजह से कहीं उसका भी चेहरा बेवजह स्याह न लगने लगे. इससे जनता विपक्ष से दूर हो सकती है.
कांग्रेस और नागपुर के संबंध के बारे में यह भी जानना जरूरी है कि नागपुर और विदर्भ के लोग कांग्रेस से किस तरह से प्यार करते हैं? आजादी से पहले दिसंबर 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ था जिसमें कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए थे. इसी अधिवेशन के दौरान केशव बलिराम हेडगेवार ने कांग्रेस सेवा दल की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इसके पांच साल के बाद हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना की जिसका मुख्यालय नागपुर रखा गया. आजादी के बाद 1959 में इसी नागपुर के अधिवेशन में इंदिरा गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था. नागपुर पर कांग्रेस की पकड़ कितनी गहरी है वह इस बात से पता चलता है कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस अपने नागपुर गढ़ को बचाने में कामयाब रही थी. आपातकाल के बाद इंदिरा ने नागपुर में सभा की थी और कांग्रेस ने विदर्भ क्षेत्र की सारी सीटें जीत ली थी.नागपुर को कांग्रेस अपना गढ़ क्यों बता रही है, उसे समझने की जरूरत है. 1952 से लेकर अब तक नागपुर लोकसभा सीट पर 18 बार चुनाव हुए हैं और इनमें से 13 बार कांग्रेस की जीत हुई है. भाजपा ने तीन बार नागपुर लोकसभा सीट पर चुनाव जीता है. 1996 के बाद 2014 और 2019 में लगातार दो बार नितिन गडकरी के नागपुर से जीत दर्ज करने के बाद नागपुर को भाजपा अपना गढ़ मानने लगी है. बावजूद इसके कांग्रेस इस नागपुर को अभी भी अपना गढ़ मान रही है और उसे पूरा भरोसा है कि इसी नागपुर से उसकी चुनावी विजय यात्रा निकलेगी जो उसके नए राजनीतिक जीवन की पहचान बनेगी.
यह नागपुर कांग्रेस और आरएसएस के अलावा आंबेडकरवादियों का भी गढ़ है. नागपुर में ऐतिहासिक स्थल दीक्षाभूमि भी है. दीक्षाभूमि में ही बाबासाहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था. आंबेडरवादी भी कांग्रेस के साथ हैं. हाल के कुछ चुनावों में भाजपा पर कांग्रेस भारी पड़ी है जिससे भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की रणनीति पर भी सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि, फडणवीस ने अपनी कुशल रणनीति से शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने में कामयाब हुए हैं. लेकिन नागपुर में भाजपा की राजनीतिक जमीन कमजोर पड़ रही है. नागपुर फडणवीस का जनपद है. इसलिए आरएसएस ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के साथ बैठक करके रणनीति तय की है जिस पर भाजपा काम कर रही है. हालांकि, शिवसेना और एनसीपी की तरह कांग्रेस को तोड़ने में भाजपा को कामयाबी नहीं मिली है. लेकिन कांग्रेस में टूट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस में अंदरूनी कलह है और कभी भी भूचाल आ सकता है. जब तक भूचाल नहीं आ रहा है तब तक यह माना जा रहा है कि भाजपा को चुनौती देने के लिए कांग्रेस मजबूती से खड़ी है.
कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए महाराष्ट्र मायने रखता है. उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही दूसरा बड़ा राज्य है जहां लोकसभा की 48 सीटें हैं. मोदी को यहां झटका दिया जा सकता है अगर इनमें से ज्यादातर सीटों पर भाजपा को हरा दिया जाए तो. मगर यह बहुत आसान नहीं है. क्योंकि, भाजपा की रणनीति बहुत मजबूत है और यह काम कांग्रेस अकेले नहीं कर सकती. इसके लिए कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों को एकजुट होना पड़ेगा. इसलिए नागपुर की महारैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इंडिया गठबंधन में एकजुटता पर जोर दिया. कांग्रेस को तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से हार मिली है उससे कांग्रेस के सामने इंडिया गठबंधन ही एकमात्र रास्ता है जिससे मोदी को चुनौती दी जा सकती है. कांग्रेस को अपनी ताकत का एहसास है और अपनी पार्टी में भाजपाप्रेमियों के बारे में भी पता है. लेकिन कांग्रेस आलाकमान इस स्थिति में नहीं है कि वह अपने नेताओं के खिलाफ कोई कठोर कदम उठा सके. इसलिए अब राहुल के ही ऐसे कार्यक्रम तय किए जा रहे हैं जिससे आम लोगों को कांग्रेस की तरफ खींचा जा सके. नागपुर महारैली में राहुल की भारत न्याय यात्रा को भी प्रचारित किया गया. उनकी यह यात्रा 14 जनवरी से मणिपुर से शुरू होगी और यह मार्च में मुंबई में पूरी होगी. इस यात्रा में उनका फोकस मणिपुर की घटना के बाद महिलाओं और देश के किसानों पर रहेगा. यह यात्रा पूरी तरह से चुनावी है. मार्च के बाद ही लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. भाजपा भी पूरी तैयारी में है. अयोध्या में राम मंदिर के बल पर भाजपा अपनी चुनावी नैय्या पार लगाने वाली है. इसलिए भारत न्याय यात्रा और राम मंदिर में टकराव की संभावना को भी देखा जा रहा है. इसमें भाजपा कांग्रेस को राम विरोधी के रूप में घेर सकती है. इससे कांग्रेस ने अपना बचाव कर लिया तो मोदी के लिए संकट की स्थिति आ सकती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-महाराष्ट्र: संभाजीनगर में दस्ताने बनाने वाली फैक्ट्री में लगी आग, झुलसने से 6 लोगों की दर्दनाक मौत
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