जन्म कुंडली का पंचम भाव प्रेम, रोमांस, मोहब्बत को दिखलाता है किंतु यह प्रेम विवाह में बदलेगा या नहीं यह बहुत कुछ नवम भाव पर निर्भर करता है. सप्तम भाव विवाह का होता है किंतु अपने प्रेमी प्रेमिका के साथ ही विवाह होगा यह आवश्यक नहीं.
वैसे तो जन्म कुंडली में कहीं भी मंगल और शुक्र एक साथ बैठ जाएं तो प्रेम विवाह के योग बना देते हैं परंतु यह योग अत्यधिक प्रबल हो जाता है जब मंगल और शुक्र एक साथ लग्न, तृतीय, पंचम, सप्तम एकादश या द्वादश भाव में बैठ जाएं. मंगल और शुक्र की युति व्यक्ति 'महाकामुक योग' बनाती है. यदि पुरुष की कुंडली हो मंगल शुक्र एक साथ बैठे हो या फिर एक दूसरे पर दृष्टि डाल रहे हो, एक दूसरे की राशि में बैठे हों या एक दूसरे के त्रिकोण में बैठे हों और यही स्थिति नवांश कुंडली में भी दोहराई जाए तो व्यक्ति को एक से अधिक महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाने का कई बार अवसर प्राप्त होता है. ऐसा व्यक्ति औरतों का रसिया होता है तथा उसे जीवन में अलग-अलग प्रकार की महिलाओं से संभोग करने के अवसर बहुत बार बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाते हैं. यदि यही योग महिलाओं की कुंडली में बने तो उन्हें भी ऐसे अवसर प्राप्त होते हैं किंतु महिलाओं में थोड़ा घमंड भी आ जाता है. मंगल अहंकार का कारक है. ऐसी महिलाएं संभोग तो कई पुरुषों से करती है परंतु अपने शरीर रूप यौवन इत्यादि का उन्हें अहंकार भी बहुत होता है. इस कारण किसी एक पुरुष के साथ उनका रिश्ता टिक नहीं पाता. यदि शुक्र और मंगल के साथ चंद्रमा भी मिल जाए तो जातक/जातिका अत्यधिक चंचल प्रवृत्ति के हो जाते हैं और पर स्त्री या पर पुरुष की ओर बड़ी आसानी से आकर्षित हो जाते हैं. यदि शुक्र मंगल के साथ राहु, केतु या शनि भी मिल जाए तो व्यक्ति अंतर्जातीय अर्थात् इंटर कास्ट विवाह भी करता है तथा इंटर कास्ट महिलाओं से, दूसरे धर्म की महिलाओं से शारीरिक संबंध भी बनाता है. महिलाओं के लिए भी यही बात समझनी चाहिए. शुक्र पत्नी का कारक और मंगल छोटे भाई का कारक होता है. यदि शुक्र मंगल की युति अन्य बुरे ग्रहों के प्रभाव में भी हो तो 'भाभी' और 'देवर' के बीच अवैध संबंध बन जाते हैं. सही परिणाम जानने हेतु अन्य कई परिस्थितियां भी देखनी पड़ती हैं.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जन्म कुंडली के लाभ भाव (एकादश भाव) में स्थित ग्रहों का फल
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