जन्म कुंडली के कुछ विशेष योग

जन्म कुंडली के कुछ विशेष योग

प्रेषित समय :21:31:13 PM / Sat, Mar 23rd, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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आइए जानते है, कुंडली के कुछ विशेष योग,, चांडाल योग, अंगारक योग,, शकट योग,, दुर योग, ग्रहण योग, दरिद्र योग, षण्यंत्र योग, नाग योग, कुज योग, केमद्रुम योग,भावनाश योग, अल्पायु योग, इत्यादियो के विषय में,

(१)चांडाल योग:-

चांडाल योग कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु का उपस्थित होना चांडाल योग का निर्माण करता है. इस योग का सर्वाधिक प्रभाव शिक्षा और धन पर होता है. जिस व्यक्ति की कुंडली में चांडाल योग होता है वह शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है और कर्ज में डूबा रहता है. चांडाल योग का प्रभाव प्रकृति और पर्यावरण पर भी पड़ता है.

(२)अंगारक योग:-

यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु या केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण हो जाता है. इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं.

(३)शकट योग:-

वैदिक ज्योतिष के अनुसार शकट योग को अशुभ योग माना जाता है. जब किसी कुंडली में शकट योग होता है तो जातक को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ है. गजकेसरी योग की भांति शकट योग भी किसी कुंडली में गुरु और चंद्रमा के संयोग से ही बनता है किंतु इस योग का प्रभाव शुभ न होकर अशुभ माना जाता है.

(४)दुर योग:-

यदि किसी कुंडली में दसवें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दुरयोग बन जाता है. इससे व्यक्ति के व्यवसाय पर बहुत अशुभ प्रभाव पडता है. व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है, व्यक्ति अनैतिक तथा अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाते हैं जिसके कारण इन जातकों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता तथा ऐसे जातक अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुंचाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते.

(५)ग्रहण योग:-

यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चंद्रमा के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए या किसी कुंडली में यदि सूर्य अथवा चंद्रमा पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव हो तब कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है. ग्रहण योग से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा होती है व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है, मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता, कार्य में बार-बार बदलाव होता है, बार-बार नौकरी और शहर बदलना पड़ता है, पागलपन के दौरे तक पड़ सकते हैं.

(६)दरिद्र योग:-

यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है. ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है. दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है.

(७)षड़यंत्र योग:-

षड़यंत्र योग यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है. यह योग अत्यंत खराब माना जाता है. जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन-संपत्ति का छीना जाना, विपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि.

(८)  नाग दोष:-


यदि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु कुंडली के पहले घर में, चंद्रमा के साथ अथवा शुक्र के साथ स्थित हों तो ऐसी कुंडली में नाग दोष बन जाता है जो कुंडली में इस दोष के बल तथा स्थिति के आधार पर जातक को विभिन्न प्रकार के कष्ट तथा अशुभ फल दे सकता है.

(९)कुज योग:-

यदि किसी कुंडली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है. इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं. जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है. यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए.

(९)केमद्रुम योग:-

यदि किसी कुंडली में चंद्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह न हो तो या कुंडली में जब चंद्र द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चंद्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है. जिस कुंडली में यह योग होता है वह जीवनभर धन की कमी, निर्धनता अथवा अति निर्धनता, विभिन्न प्रकार के रोगों, मुसीबतों, व्यवसायिक तथा वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाईयों आदि का सामना करना पड़ता है.

(१०)भाव नाश योग:-

जब कुंडली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और उससे भाव नाश योग कहते हैं. उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं.

(११)अल्पायु योग

जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है. जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है और उसकी आयु कम होती है.

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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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