सिसकते रातें कटी हैं हमारी

सिसकते रातें कटी हैं हमारी

प्रेषित समय :19:52:31 PM / Sat, Mar 30th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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पूजा
सिमतोली, कपकोट
उत्तराखंड

थोड़ा भी न समझा है हमें,
थोड़ा भी न जाना है,
बस एक बोझ कह दिया हमें,
खुशी न माना, मातम से मिलाया हमें,
अपनी खुदगर्जी में हिस्सा बनाते हमें,
बोझ बनाकर ज़ुबां से बयां करते हमें,
माना है उन्होने हमें पराया,
न मिला हमें आगे बढ़ने का सहारा,
न सुनने को मिले हमें कभी मीठे बोल,
पैदा होते ही सुनी हमने कड़वे बोल,
न जाना है उन्होंने हमें, ना समझा इन्होंने,
अपनी खुदगर्जी में घसीटा है हमें,
तभी तो लोगो को जाना है हमने,
रोते रोते कटी है हमारी रातें,
सिसकते सिसकते ज़ुबां थमी है हमारी..

(चरखा फीचर)

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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