21 पूर्व न्यायाधीशों ने सीजेआई चंद्रचूड़ को लिखी चिट्ठी, कहा- न्यायपालिका पर दबाव बनाने की हो रही कोशिश

21 पूर्व न्यायाधीशों ने सीजेआई चंद्रचूड़ को लिखी चिट्ठी, कहा- न्यायपालिका पर दबाव बनाने की हो रही कोशिश

प्रेषित समय :19:23:34 PM / Mon, Apr 15th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के लगभग 21 पूर्व न्यायाधीशों ने न्यायपालिका पर दबाव बनाने और उसे कमजोर करने के लिए किए जा रहे कथित प्रयासों से भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को एक पत्र के जरिए अपनी चिंताओं से अवगत कराया है. पूर्व न्यायाधीशों ने पत्र में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली न्यायपालिका से ऐसे दबावों के खिलाफ मजबूत होने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि हमारी कानूनी प्रणाली की पवित्रता और स्वायत्तता संरक्षित रहे.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को भेजी गई चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वालों में शीर्ष अदालत के चार पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक वर्मा, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति एम आर शाह शामिल हैं. इनके अलावा हस्ताक्षर करने वालों में बाकी 17 विभिन्न उच्च न्यायालयों के पूर्व न्यायाधीश हैं.

पूर्व न्यायाधीशों ने अपने पत्र में कहा, हम विशेष रूप से गलत सूचना की रणनीति और न्यायपालिका के खिलाफ जनता की भावनाओं को भड़काने के प्रयासों में चिंतित हैं. यह कोशिश न केवल अनैतिक हैं, बल्कि हमारे लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के लिए नुकसानदायक भी हैं.

पत्र के जरिए पूर्व न्यायाधीशों ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से कहा, यह हमारे संज्ञान में आया है कि ये तत्व (न्यायपालिका पर कथित दबाव बनाने और कमजोर करने का प्रयास करने वाले) संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित होकर हमारी न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने का प्रयास कर रहे हैं. उनके इस मामले में काम करने के तरीके कहीं अधिक कपटपूर्ण हैं. उन्होंने उन तरीकों से स्पष्ट रूप से दोषारोपण करके न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने का प्रयास किया.

पत्र में कहा गया है कि इस तरह की कोशिश न केवल हमारी न्यायपालिका की पवित्रता का अपमान करती हैं, बल्कि न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के लिए सीधी चुनौती भी हैं. पत्र में यह भी कहा गया है कि किसी के विचारों से मेल खाने वाले न्यायिक निर्णयों की चुनिंदा रूप से प्रशंसा करने और जो विचारों से मेल नहीं खाते उनकी तीखी आलोचना करने की परंपरा, न्यायिक समीक्षा और कानून के शासन के सार को कमजोर करती हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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