जबलपुर. पत्नी के द्वारा पति के खिलाफ धारा 377 के तहत की गई एफआईआर को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने यह कहते हुए निरस्त कर दिया है कि पत्नी ने पति के खिलाफ जो भी अप्राकृतिक योन शौषण की शिकायत की थी, वह सजा योग्य नहीं है. पुलिस के द्वारा पति के खिलाफ की गई एफआईआर को निरस्त करते हुए हाईकोर्ट ने पति को राहत दी है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि पति-पत्नी के बीच सहमति से स्थापित किए गए संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं.
हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की बेंच ने पति की याचिका का निराकरण करते हुए फ़ैसला दिया है. जबलपुर निवासी अतुल (परिवर्तित नाम) का नरसिंहपुर में रहने वाली महिला से 2019 में विवाह हुआ था. विवाह के कुछ दिन बाद से ही पति-पत्नी के बीच विवाद होने लगा. पति और उनके परिवार वालों ने महिला को समझाया पर बात नहीं बनी. महिला ने 2021 में पति सहित उनके पिता, मां और बहन के खिलाफ दहेज मांगने और मारपीट करने की शिकायत नरसिंहपुर जिले के कोतवाली थाने में की. मनीष के द्वारा भी जबलपुर कुटुंब न्यायालय में तलाक के लिए अर्जी लगाई गई, केस अभी चल रहा है. इस बीच महिला ने अतुल (परिवर्तित नाम) के खिलाफ 377, 506 आईपीसी के तहत नरसिंहपुर कोतवाली में फिर से शिकायत की. नरसिंहपुर पुलिस ने जीरो पर मामला दर्ज कर केस को जबलपुर भेज दिया. पुलिस के द्वारा अतुल (परिवर्तित नाम) पर लगाई गई धारा 377 को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.
जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट ने यह कहते हुए एफआईआर को खारिज कर दिया कि विधिक रूप से विवाहित तथा साथ में रह रहे पति-पत्नी के मध्य स्थापित संबंधों में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधान आकर्षित नहीं होते हैं. याचिकाकर्ता के वकील साजिदउल्ला ने बताया कि फरियादी मनीष साहू के खिलाफ उनकी पत्नी ने नरसिंहपुर जिले के कोतवाली थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी कि पति के द्वारा जबरन संबंध स्थापित किए गए है. चूंकि दोनों का लंबे समय से विवाद चला आ रहा है. मनीष के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी, लिहाजा हाईकोर्ट ने यह कहते हुए पुलिस के द्रारा दर्ज की गई एफआईआर को निरस्त कर दिया कि पति-पत्नी जहां पर होते हैं, वहां पर 377 धारा लागू नहीं होती है.
हाईकोर्ट अधिवक्ता विशाल बघेल ने बताया कि 6 सितंबर 2018 को, माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पाँच जजों की पीठ ने नवतेज सिंह जौहर के मामले में सर्वसम्मति से फैसला दिया था कि सहमति से वयस्कों के बीच यौन संबंधों को अपराध बनाना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन है. पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 377, जहां तक यह निजी तौर पर वयस्कों के बीच सहमति से यौन आचरण पर लागू होती है, को असंवैधानिक ठहराया था और इसके साथ, न्यायालय ने सुरेश कौशल बनाम नाज फाउंडेशन में दिये गये अपने पूर्व फैसले जिसमें धारा 377 की संवैधानिकता को बरकरार रखा था, को खारिज कर दिया.
इसके साथ ही भारतीय कानून में मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 में पति-पत्नी के मध्य स्थापित यौन संबंधों को बलात्कार की परिभाषा से पृथक रखा गया है, इन्हीं दोनों विधिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए माननीय हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के संबंध में अपने फैसले दिए हैं
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जबलपुर जैन कल्याण स्कूल की छात्राओं ने मेरिट में अपना स्थान बनाया
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