.गणेश पुराण में लिखा गया है कि –
ध्यानद्यैरुपचारैर्मां तथा पञ्चामृतादिभि:.
स्नानवस्त्राद्यलंकारसुगन्धधूपदीपकै:..
नैवेद्यै: फलताम्बूलैर्दक्षिणाभिश्चयोर्चयेत्.
भक्त्यैकचेतसा चैव तस्येष्टं पूरयाम्यहम्.
एवं प्रतिदिनं भक्त्या मद्भक्तो मां समर्चयेत्..
इस श्लोक के मुताबिक भगवान गणेश ने कहा है कि जो इंसान नीचे बताए तरीके से मेरी पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना सिद्ध हो जाती है –
– सबसे पहले गणेशजी का ध्यान, पञ्चामृत स्नान, शुद्ध जल स्नान, वस्त्र, आभूषण, इत्र, धूप, दीप नैवेद्य, फल, सुपारी और दक्षिणा अर्पित कर पूरी भक्ति भाव और एकाग्रता के साथ आरती और प्रार्थना करना चाहिए.
– इसी तरीके से रोज खासतौर पर चतुर्थी पर आस्था के साथ गणेश पूजा-अर्चना हर विघ्र दूर करती है और मनचाहा सौभाग्य पाने की इच्छा पूरी करती है.
.भैरव जी का शक्ति शाली धन दायक शबर मंत्र प्रयोग इस मंत्र का जाप करने से आजीविका के नये मार्ग खुलने लगते है धन लाभ होता है.. ओम नमो आदेश गुरु को भैरव भैरव स्वर्ण भैरव द्रव्य आन आन नहीं आने तो माता पार्वती की आन पिता महादेव की आन मेरी आन मेरे गुरु की आन नहीं तो महाकाली की दुहाई
जिन व्यक्तियों को निरन्तर कर्ज घेरे रहते हैं, उन्हें प्रतिदिन “ऋणमोचक मंगल स्तोत्र´´ का पाठ करना चाहिये. यह पाठ शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से शुरू करना चाहिये. यदि प्रतिदिन किसी कारण न कर सकें, तो प्रत्येक मंगलवार को अवश्य करना चाहिये.
सर्वप्रथम 5 लाल गुलाब के पूर्ण खिले हुए फूल लें. इसके पश्चात् डेढ़ मीटर सफेद कपड़ा ले कर अपने सामने बिछा लें. इन पांचों गुलाब के फुलों को उसमें, गायत्री मंत्र 21 बार पढ़ते हुए बांध दें. अब स्वयं जा कर इन्हें जल में प्रवाहित कर दें. भगवान ने चाहा तो जल्दी ही कर्ज से मुक्ति प्राप्त होगी.
कर्ज-मुक्ति के लिये “गजेन्द्र-मोक्ष´´ स्तोत्र का प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व पाठ अमोघ उपाय है.
घर में स्थायी सुख-समृद्धि हेतु पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े रह कर लोहे के बर्तन में जल, चीनी, घी तथा दूध मिला कर पीपल के वृक्ष की जड़ में डालने से घर में लम्बे समय तक सुख-समृद्धि रहती है और लक्ष्मी का वास होता है.
अगर निरन्तर कर्ज में फँसते जा रहे हों, तो श्मशान के कुएं का जल लाकर किसी पीपल के वृक्ष पर चढ़ाना चाहिए. यह 6 शनिवार किया जाए, तो आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होते हैं.
.महागणपति–आराधना
शास्त्रकारों की आज्ञा के अनुसार गृहस्थ–मानव को प्रतिदिन यथा सम्भव पंचदेवों की उपासना करनी ही चाहिए. ये पंचदेव पंचभूतों के अधिपति हैैं. इन्हीं में महागणपति की उपासना का भी विधान हुआ है. गणपति को विध्नों का निवारक एवं ऋद्धि–सिद्धि का दाता माना गया है. ऊँकार और गणपति परस्पर अभिन्न हैं अत: परब्रह्यस्वरुप भी कहे गये हैं. पुण्यनगरी अवन्तिका में गणपति उपासना भी अनेक रुपों में होती आई है. शिव–पंचायतन में 1. शिव, 2. पार्वती, 3. गणपति, 4. कातकेय और 5. नन्दी की पूजा–उपासना होती है और अनादिकाल से सर्वपूज्य, विघ्ननिवारक के रुप में भी गणपतिपूजा का महत्वपूर्ण स्थान है. गणपति के अनन्तनाम है. तन्त्रग्रन्थों में गणपति के आम्नायानुसारी नाम, स्वरुप, ध्यान एवं मन्त्र भी पृथक–पृथक दशत हैं. पौराणिक क्रम में षड्विनायकों की पूजा को भी महत्वपूर्ण दिखलाया है. उज्जयिनी में षड्विनायक–गणेष के स्थान निम्नलिखित रुप में प्राप्त होते है–
1. मोदी विनायक – महाकालमन्दिरस्थ कोटितीर्थ पर इमली के नीचे.
2. प्रमोदी ;लड्डूद्ध विनायक – विराट् हनुमान् के पास रामघाट पर.
3. सुमुख–विनायक ;स्थिर–विनायकद्ध– स्थिरविनायक अथवा स्थान–विनायक गढकालिका के पास.
4. दुमुर्ख–विनायक – अंकपात की सडक के पीछे, मंगलनाथ मार्ग पर.
5. अविघ्न–विनायक – खिरकी पाण्डे के अखाडे के सामने.
6. विघ्न–विनायक – विध्नहर्ता ;चिन्तामण–गणेशद्ध .
इनके अतिरिक्त इच्छामन गणेश(गधा पुलिया के पास) भी अतिप्रसिद्ध है. यहाँ गणपति–तीर्थ भी है जिसकी स्थापना लक्ष्मणजी द्वारा की गई है ऐसा वर्णन प्राप्त होता है.
तान्त्रिक द्ष्टि से साधना–क्रम से साधना करते हैं वे गणपति–मन्त्र की साधना गौणरुप से करते हुए स्वाभीष्ट देव की साधना करते है. परन्तु जो स्वतन्त्र–रुप से परब्र–रुप से अथवा तान्त्रिक–क्रमोक्त–पद्धित से उपासना करते हैं वेश्गणेश–पंचांग में दशत पटल, पद्धित आदि का अनुसरण करते है. मूत–विग्रह–रचना वामसुण्ड, दक्षिण सुण्ड, अग्रसुण्ड और एकाधिक सुण्ड एवं भुजा तथा उनमें धारण किये हुए आयुधों अथवा उपकरणों से गणपति के विविध रुपों की साधना में यन्त्र आदि परिवतत हो जाते हैं. इसी प्रकार कामनाओं के अनुसार भी नामादि का परिवर्तन होता हैं. ऋद्धि–सिद्धि (शक्तियाँ), लक्ष–लाभ(पुत्र) तथा मूशक(वाहन) के साथ समष्टि–साधना का भी तान्त्रिक विधान स्पृहणीय है.
कोई भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय विधान है और हवन करने हेतु भी कुछ नियम बताये गए हैं जिसका अनुसरण करना अति – आवश्यक है , अन्यथा अनुष्ठान का दुष्परिणाम भी आपको झेलना पड़ सकता है . इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है हवन के दिन ‘अग्नि के वास ‘ का पता करना ताकि हवन का शुभ फल आपको प्राप्त हो सके .
जिस दिन आपको होम करना हो , उस दिन की तिथि और वार की संख्या को जोड़कर १ जमा करें फिर कुल जोड़ को ४ से भाग देवें
-यदि शेष शुन्य (०) अथवा ३ बचे , तो अग्नि का वास पृथ्वी पर होगा और इस दिन होम करना कल्याणकारक होता है .
-यदि शेष २ बचे तो अग्नि का वास पाताल में होता है और इस दिन होम करने से धन का नुक्सान होता है .
-यदि शेष १ बचे तो आकाश में अग्नि का वास होगा , इसमें होम करने से आयु का क्षय होता है .
अतः यह आवश्यक है की होम में अग्नि के वास का पता करने के बाद ही हवन करें .
Pukhraj Mewara
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-आपकी जन्म कुंडली में राजयोग है या नहीं
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