वट- सावित्री व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर रखा जाता है. इस दिन महिलाएं बरगद के वृक्ष का पूजन करते हैं और पति के दीर्घायु कामना में ब्रत रख कर, सत्यवान और सावित्री की यमराज के साथ भी पूजा करते हैं. पूर्वांचल भारत में महिलाओं के लिए ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि सबसे अधिक शुभ फलदायी मानी गई है. इसी दिन शनिदेव की जयंती भी है. धार्मिक मान्यता के अनुसार इस तिथि में सच्ची भावना से जो स्नान, ध्यान, दान, व्रत और पूजा- पाठ करते है, उन्हें समस्त देवी- देवता का आशीर्वाद निश्चित ही प्राप्त होता है. इसलिए पतिदेव के दीर्घायु कामना कर, सुहागिनी- नारीयां इस दिन पितरों व पूर्वजों की शांति तथा इष्ट देवी- देवताओं की कृपा पाने के लिए, निष्ठा के साथ ब्रत रखते हैं..
"पति ही दैवतां स्त्रीणां
पतिरेव परायाणम.
अनुगम्य: स्त्रिया साध्वी
पतिः प्राणधनेश्वर.."
भावार्थ है-- "एक पति- परायणा स्त्री के लिए पति ही देवता है. पतिप्राणा तथा पति- अनुगामिनी साध्वी स्त्री के लिए एकमात्र पति ही धन- सम्पदा है.."
इस जीवनमन्त्राधारित तथ्य पर विवाहिता नारियां ज्येष्ठ कृष्ण अमावास्या के दिन अपनी सुहाग और सौभाग्य की हेपाजत के लिए सावित्री व्रत मनाती है. श्रद्धा और विश्वास से जुड़े इस धार्मिक अनुष्ठान को पूर्व भारत में "सावित्री- अमावास्या- व्रत" तथा भारत के अवशिष्ट क्षेत्र में "वट- सावित्री- व्रत" कहा जाता है. कंहा- कंहा वट सावित्री व्रत को ज्येष्ठ पूर्णमी के दिन मनाने की परंपरा है. इसीके अलावा यदि किसी सोमवार को अमावास्या पड़ता है तो, "सोमवती अमावास्या" के नाम से विवाहिता नारियां सावित्री व्रत जैसे फल प्राप्ति के लिए मनाते है. सावित्री- अमावास्या और सोमवती- अमावास्या एक साथ हो तो, यह योग 'सोने पे सोहागा' जैसा माना जाता है..
सावित्री-सत्यवान कथा :
व्यासदेव के द्वारा रचित महाभारत- बनपर्व की एक रोचक कथा. राजा अश्वपति का इकलौती कन्या सावित्री. एक दिन बनविहार के समय सावित्री ने अवन्ति राज्य से शत्रु कर्त्तुक विताडित बनवासी अंधे राजा द्विमतसेन का एकमात्र पुत्र सत्यवान को देखकर, उनको अंतर्मन में पति रूप में पाने की अभिलाषा जाग उठी, तो वह अपनी मन कथा को पिता अश्वपति के सामने रखी और अश्वपति ने इस मुद्दे पर देवर्षि नारद जी से परामर्श किया. नारद जी ज्योतिष विद्या के माध्यम भविष्य जानकर बोले- "सत्यवान का आयु से सिर्फ एक साल अभी वचे हुए है." ये बात सुनकर पिता जी ने पुत्री को सत्यवान को भूल जाने के लिए कहा, तो सावित्री उत्तर दी-- "जिसको हृदय में एकबार पति रूप में मान ली, उनको भूल जाना मेरे जैसी एक साध्वी की आर्योचित धर्म नहीं है पिता जी !!"
अश्वपति निरुपाय होकर सम्मति देने के बाद, वंहा अरण्य में ही सावित्री के साथ सत्यवान का निराडम्बर विबाह सम्पर्ण हुई. इसके बाद सावित्री ने राजगृह को छोड़कर बन के अंदर पति- कुटीर में रहकर स्वामी- सास- स्वसुर के सेवा में समर्पित हो गई..
रोज अरण्य से सत्यवान फल- मुल- पते के साथ लकड़ी संग्रह करता था और सहधर्मिणी होने के नाते सावित्री भी साथ देती थी. ऐसे जब एक साल वितगयी, तो सत्यवान का आयु सम्पूर्ण हुआ और पेड़ से लकड़ी काटते समय असुस्थि/ सर्प- दंशन में प्राण त्यागा. ऐसी अनहोनी के बाद मृत सत्यवान को क्रोड में रखकर रोती हुई सावित्री वंहा बैठी रही..
सत्यवान को लेने के लिए पहले यमदूत आये और सती सावित्री की तेज ना सहकर लौट गए. फिर खुद यमराज कालफ़ाश लेकर वंहा प्रकट हुए और सत्यवान को छोड़कर लौट जाने के लिए सावित्री को समझाए. सावित्री ने यथामान्य प्रदर्शन के साथ प्रार्थना की-- "प्रभु जी, आप मेरे पिता जैसे है. आप खुद दिल से सोचिए और विचार कीजिये कि मेरे जैसी एक स्वामी- अनुगामिनी सती- साध्वी पतिव्रता नारी के लिए अकाल में पति को छोड़कर अकेली रहना कैसे सम्भव होगी....."
सावित्री की ऐसी विनम्र व्यवहार से धर्माधीश यमराज प्रसन्न होकर सत्यवान को छोड़कर तीन- वर मांगने के लिए कहा. सावित्री तत्क्षण वर मांगी-- "दयामय धर्मराज ! मेरे अंधे स्वसुर जी को आंख की रोशनी के साथ उनको उनके हृतराज्य भी वापस कर दीजिये." यमराज बोले-- "तथास्तु." फिर द्वितीय वर मांगी-- "पुत्रहीन मेरे दुःखी पिता जी को शतपुत्र लाभ का आशीर्वाद दीजिये प्रभु जी." यमराज "तथास्तु" कहकर बोले-- "अब तुम सत्यवान का जीवन को छोड़कर खुद के लिए ही एक वर तो मांग लो बेटी !" सावित्री बोली-- " तात:, आप महान न्यायाधीश है, मुझे सिर्फ शतपुत्रों का जननी होने की वर प्रदान कीजिये." तत्क्षण यमराज "तथास्तु" कहकर सत्यवान के आत्मा को लेकर चल पड़े, तो रोती हुई सावित्री उनके पीछे- पीछे गयी. यमराज रुककर पूछा-- "फिर क्यों पीछे आते हो बेटी, मेरे वचन के अनुसार तुझको तो तीन- वर मिलगयी !!"
रो रो कर सावित्री बोली-- "है सत्यव्रत धर्मराज, आपका अस्तु- वचन कभी अन्यथा हो नहीं सकेगा. किन्तु मैं एक साध्वी- सती, सदा स्वामी के ही सहधर्मिणी, अखण्ड पतिव्रता नारी. आप सोचिए तात:, स्वामी के बिना मुझे आप से मिले हुए शतपुत्र- जननी होने की अकाट्य आशीर्वाद कैसे सम्भव होगा ?" यमराज स्तब्ध हो कर खड़े हो गये. सती- उर्जा के सामने उनके कालफ़ाश निष्प्रभ साबित हो गयी. एक सती नारी की अखण्ड पूण्य बल, चित्रगुप्त- पंजिका की आयु- हिसाब में भी बढोत्तरी ला सकता है-- ये सचाई यंहा प्रमाणित हो गया. यमराज अगत्या सत्यवान का आत्मा को छोड़ कर चले गए, तो सत्यवान जैसे नींद से जाग कर उठ बैठा और ईश्वर को नमन किया. संगृहीत लकड़ी आदि को लेकर स्वामी के साथ सावित्री ने अब अपनी कुटीर को लौट चली..
यथा समय में सावित्री को यमराज से प्राप्त तीनों वरदान सफल हुआ और राजघरणी बनकर सावित्री भी दोनों कुलों का हित साधन करके खुदको "दुहिता" बनाने में सफल हुई थी.
कुंडली में मंगल योग है तो घबराने की जरुरत नहीं!
आपकी जन्म कुंडली में राजयोग है या नहीं
भारत और पीएम नरेंद्र मोदी की कुंडली से शुभ समय प्रारम्भ
कलयुग में हर तरफ राहु ही राहु, कुंडली में इस ग्रह को शुभ कैसे करें