रामायण में उल्लेख है कि देवी सीता ने मां गौरी का पूजन करके श्री राम के रूप में मनचाहा वर पाया था। मां जानकी ने देवी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए इस स्तुति का पाठ किया था।
जय जय गिरिराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनी दुति गाता।।
देवी पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
मोर मनोरथ जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबही के।।
कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं।
अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।
बिनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मुरति मुसुकानी।।
सादर सियं प्रसादु सर धरेऊ।
बोली गौरी हरषु हियं भरेऊ।।
सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सूचि साचा।
सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी
सिय सहित हियं हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-
पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जन्म कुंडली मे डाक्टर बनने के ज्योतिष के कुछ योग
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