शनि की महादशा हो तो खुद को अहंकार और घमंड से दूर रखें

शनि की महादशा हो तो खुद को अहंकार और घमंड से दूर रखें

प्रेषित समय :21:03:23 PM / Wed, Jul 17th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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शनि की महादशा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह 19 वर्ष की होती है. यह नवग्रहों में सबसे लंबी महादशा है. माना जाता है कि शनि की महादशा के दौरान व्यक्ति को अपने कर्मों का फल मिलता है. शनि देव न्याय के देवता हैं जो लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं तो शनिदेव को कोसने या दोष देने से पहले उनको समझना क्या उचित नहीं होगा.....
शनि ग्रह कर्म और परिश्रम का प्रतीक हैं. शनि की महादशा के दौरान आलस्य और निष्क्रियता से बचना चाहिए. इस अवधि में आलस्य करने से कर्मों का नकारात्मक फल मिलता है. शनि की महादशा के दौरान आपको कड़ी मेहनत से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए.
शनि ग्रह सत्य और न्याय का प्रतीक हैं. शनि की महादशा के दौरान झूठ बोलना और धोखा देना आपके लिए हानिकारक हो सकता है. अगर आप हर बात पर झूठ बोलते हैं या दूसरों को धोखा देते हैं, तो आपको इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. इस समय आपको ईमानदार रहते हुए नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए.
शनि की महादशा के दौरान दूसरों को भूलकर भी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए. यहाँ आपके लिए हानिकारक हो सकता है. यह समय दूसरों के प्रति दयालु रहने का है. अगर आप दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं, तो आपको इसका बुरा परिणाम भुगतना पड़ सकता है.
शनि की महादशा हो तो खुद को अहंकार और घमंड से दूर रखें. इस समय अहंकार आपका भारी नुकसान करा सकता है. इसलिए विनम्र रहें और दूसरों के प्रति पूरा सम्मान दिखाएं. इससे शनि की महादशा में राहत मिलेगी.
शनि देव न्यायदाता है जो नियमों और कानून के अनुसार फल देते हैं. शनि की महादशा के दौरान गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होना आपके लिए हानिकारक हो सकता है. गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने से आपको शनि के दण्ड का भागी बनना पड़ सकता है.
शनि को लापरवाही और अनुशासनहीनता नहीं पसंद है. शनि की महादशा के दौरान अनुशासित रहते हुए अपने जीवन को व्यवस्थित तरीके से जिएं. इस दौरान अत्यधिक भोग-विलास भी आपके लिए हानिकारक हो सकता है.
कई लोग अपने कर्मों को बेहतर बनाने के स्थान पर अपने उन्हीं कर्मो से चिपक जाते हैं जिन्हें वे करते आए हैं और फिर सोचते हैं कि काश शनिदेव उन पर कृपा बरसा दे
मैंने एक दिन शनिदेव की कथा का जिक्र किया था और वो कथा कुछ इस तरह हैं कि शनिदेव को जब अपने पिता से तिरस्कार मिला और उनके पिता के द्वारा माता छाया को सम्मान नहीं मिला तो वे लंबी तपस्या करने चले गए. लगभग 20000 वर्षों की कड़ी तपस्या में उन्होंने भोजन के रूप में केवल वायु का सेवन किया इसीलिए उन्हें वायु तत्व का देवता माना गया. जब उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए कहा तो उन्होंने वरदान में अपने पिता से बड़ा पद चाहा. अब (सूर्यदेव)राजा से बड़ा पद क्या हो सकता हैं किंतु तपस्या का फल तो मिलना ही था इसलिए शंकर भगवान ने उन्हें न्यायधीश बना दिया. न्यायधीश अर्थात् राजा भी जहां कटघरे में खड़ा रहता हैं.
चलिए ये तो पौराणिक संदर्भ की बात हो गई लेकिन यहां इसका जिक्र मैंने इसलिए किया कि शनिदेव के दरबार में कोई भी बड़ा नहीं हो सकता...... न भगवान हनुमान को बक्शा जिन्होंने उन्हें रावण की कैद से मुक्त किया और न भगवान शिव को जिन्होंने उन्हें वरदान दिया...... तो कहने का तात्पर्य यदि आप अपने कर्मों को लेकर गंभीर नहीं हैं तो उनके कोप का भाजन बनने के लिए आपको हमेशा तैयार रहना चाहिए.
एक और बात कई लोग शनिदेव की महादशा, अंतर्दशा ढैया और साढ़ेसाती में शनिदेव के मंदिर जाते हैं जो कि कभी नहीं जाना चाहिए क्यूंकि शनिदेव अर्थात् एक न्यायधीश से आंख मिलाने की जुर्रत का परिणाम शायद आप जानते होंगे और कभी भी शनिदेव को उनके सामने से प्रणाम भी न करें बल्कि उनके एक तरफ हाथ पीछे करके खड़े होकर ही दर्शन करें क्यूंकि कलयुग में हम सभी जाने अनजाने बुरे कर्मों से बच नहीं पाते और यदि जज के सामने खुद ही चले गए तो......
शनिदेव की महादशा कभी आपको कष्ट देने नहीं आती बल्कि ये 19 वर्ष आपको पूर्णतया मांजने या कहे परिष्कृत करने के होते हैं. शनिदेव की महादशा में जो रिश्तें, जो लोग, जो चीजें आपको serve नहीं कर रही होती हैं शनिदेव उन सभी को आपके जीवन से बाहर कर देते हैं और अंततः आपको एक ऐसा इंसान बना देते हैं जो स्वयं सहित सभी के साथ न्याय कर सकें , अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सकें, अपने आपको अहम और वहम से मुक्त कर सकें और अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान समाज में कर सकें.

कमल मेहता

Kamal Mehta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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