जन्मकुंडली में राहु केतु से डरना, शनि से डरना, अशुभ योग से डरना, निर्बल शुभ ग्रहों से डरना ये सब नहीं होना चाहिए. कुंडली में सात नैसर्गिक ग्रह और राहु केतु छाया ग्रह मिलाके कुल नव ग्रह होते हैं. अब किसी ना किसी की कुंडली में छठे, आठवें या बारहवें भाव में कोई ना ग्रह तो होंगे या खाली होगा....
इस जन्म में आपकी कुंडली में जो ग्रह जिस भाव में जिस स्थिती में बैठे हैं वो आप के गत जन्म के कर्म अनुसार आप को शुभ या अशुभ फ़ल देने के लिए बैठे हैं और वो आपको भुगतना ही हैं....
शनि की तीन दृस्टि होती हैं, सातवीं दृस्टि के अलावा तीसरी और दसवीं दृस्टि भी होती हैं. मतलब शनि आठवें भाव में बैठकर दसवें, दूसरें और पांचवें भाव को देखेंगे... दसवाँ भाव कर्म भाव, दूसरा भाव धन, कुटुम्ब, वाणी का भाव और पांचवाँ भाव प्रेम संबंध, संतान, आकस्मिक धन, विद्या, अभ्यास, शेर सट्टा का भाव हैं तो आप समझ सकते हैं कि यहाँ बैठकर शनि आपके ये तीन
महत्व के भावों को बिगाड़ता हैं.....
लेकिन इसमें डरने की जरूरत नहीं हैं, क्योंकि शनि की दृस्टि अगर अपनी स्वराशि पर, उच्च राशि पर या मित्र राशि पर पड़ती हैं तो बुरा नहीं करेगा. या तो मित्र ग्रह पर दृस्टि हैं तो भी इतना बुरा नहीं हैं
शनि अष्टम भाव में लंबी आयु देता हैं. अगर दूसरें ग्रहयोग अच्छे हैं तो सुखी जीवन स्वस्थ तरीके से जी सकते हैं. शनि कर्म का देवता हैं, वो आप से कर्म करवाएगा और गत जन्म के बुरे कर्मो को भुगतके इस जन्म में अच्छे कर्म करा के अगले जन्म के लिए आपका अच्छे कुल में और शुभ ग्रहों के साथ जन्म हो इसके लिए सहायरूप बनता हैं....
एक बात तो निश्चित हैं कि जन्म होता ही इसलिए हैं कि आपके अच्छे या बुरे जो भी कर्मो हैं उनका फ़ल भुगतना हैं, तो डर डर के जीने से क्या होगा, अगर जीवन में संघर्ष हैं तो भी हंसते हंसते अपने कर्म किये जाओ और ईश्वर पे श्रद्धा रखो....
Sonak K Shailendra
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कुंडली में मंगल योग है तो घबराने की जरुरत नहीं!
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