MP: हिन्दू-मुस्लिम समाज के बाद अब भोजशाला पर जैन समाज ने किया दावा, कहा ये हमारा गुरुकुल है, सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका

MP: हिन्दू-मुस्लिम समाज के बाद अब भोजशाला पर जैन समाज ने किया दावा, कहा ये हमारा गुरुकुल है, सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका

प्रेषित समय :20:48:06 PM / Wed, Jul 24th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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पलपल संवाददाता, धार. एमपी के धार स्थित भोजशाला पर हिन्दू-मुस्लिम समाज के बाद अब जैन समाज ने भी अपना दावा ठोक दिया है. जैन समाज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर तीसरा पक्ष के रुप में शामिल करने की अपील की है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जैन समाज का भी पक्ष सुने. यहां पर जो ब्रिटिश संग्रहालय में मूर्ति है वह जैन धर्म की देवी अंबिका की है, बाग्देवी की नहीं. एएसआई के वैज्ञानिक सर्वे में भी बहुत सी मूर्तिया निकली है वह भी जैन धर्म से संबंधित है.

भोजशाला मामले को लेकर हाईकोर्ट में मई 2022 में सुनवाई चल रही है. 21 मार्च 2024 को हाईकोर्ट ने एएसआई से सर्वे कराने का आदेश दिया. 100 दिन चले सर्वे के बाद 15 जुलाई को एएसआई ने अपनी सर्वे रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश की. 22 जुलाई को मामले में सुनवाई हुई. हिंदू पक्ष ने कोर्ट को बताया कि उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा दी गई है. इसमें एएसआई रिपोर्ट का हवाला देकर भोजशाला हिंदू पक्ष को देने की मांग की गई. इस पर 30 जुलाई को सुनवाई होनी है. इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक सभी को इंतजार करना होगा. जैन समाज के याचिकाकर्ता सलेकचंद्र जैन ने कहा कि भोजशाला जैन समाज की है. समाज को पूजा का अधिकार मिले और इसे समाज को सौंपा जाए. उन्होंने कहा कि 1875 में खुदाई के दौरान भोजशाला से वाग्देवी की मूर्ति निकली थी लेकिन वह जैन धर्म की देवी अंबिका की मूर्ति है. सलेकचंद्र जैन ने कहना है कि राजा भोज कवियों को पंसद करते थे, वे सर्वधर्म प्रेमी रहे, उनके दरबार में धनन्जय जैन कवि रहे. कवि धनंजय जैन ने एक किताब संस्कृत में लिखी थी. उसके कुछ श्लोक राजा भोज को सुनाए थे. राजा भोज काफी प्रभावित हुए और कवि की प्रशंसा की. कवि ने राजा से कहा कि मैं तो कुछ भी नहीं हूं. मेरे गुरु आचार्य महंत मानतुंग है. मैं उनका शिष्य हूं. उन्हीं से मैंने सीखा है. तब राजा भोज को लगा कि ऐसे गुरु से मिलना चाहिए.

उन्होंने सेवक भेज गुरु को बुलावा भेजा. आचार्य पहाड़ पर तपस्या कर रहे थे. उन्होंने जाने से मना कर दिया. इससे राजा भोज नाराज हो गए और उन्होंने आचार्य को बलपूर्वक खींचकर लाने के आदेश दे दिए. बाद में आचार्य को कारागार में डाल दिया. आचार्य ने भक्तामर स्त्रोत की रचना की. बाद में आचार्य से राजा भोज बहुत प्रभावित हुए. राजा भोज ने मालवा प्रांत में जैन धर्म के बहुत सारे मंदिर बनवाए. भोजशाला एक जैन गुरुकुल था. इसमें सभी धर्म के बच्चे पढऩे आते थे. जैन धर्म की प्राकृत भाषा का संस्कृत में अनुवाद भी भोजशाला में होता था. यहां आदिनाथ भगवान का मंदिर भी था. यहां से नेमीनाथ भगवान की मूर्ति भी निकली है. जो 22वें तीर्थंकर है. भोजशाला में जैन धर्म से संबंधित कुछ चिन्ह भी निकले है. जैसे कछुआ निकला है. हमारे जो 20 वें तीर्थंकर है उनका चिन्ह कछुआ था. शंख भी मिला है. 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ भगवान का चिह्न शंख था.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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