श्राद्ध पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के लिए किया जाता है. यह पूर्वजों के प्रति सम्मान होता है. मान्यता है कि इसी से पितृ ऋण भी चुकता होता है. श्राद्ध कर्म से पितृगण के साथ देवता भी तृप्त होते हैं. श्राद्ध के बारे में अक्सर ये कहा और सुना जाता है कि केवल पुत्र ही श्राद्ध कर सकता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि *पुत्र न हों तो पुत्री भी श्राद्ध कर सकती हैं* इसका प्रमाण धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. आइए जानते हैं..
*१:-वाल्मीक रामायण में मिलता है ऐसा प्रमाण:-* श्राद्ध कर्म पुत्रियां भी कर सकती हैं इस संबंध में वाल्मीकि रामायण में उदाहरण मिलता है, वनवास के दौरान जब श्रीराम भगवान, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गयाधाम पहुंचे तो श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की ओर गए. उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है. इसी के साथ माता सीता को दशरथ जी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए, जो उनसे पिंड दान के लिए कह रही थी. इसके बाद माता सीता ने फाल्गू नदी वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फाल्गू नदी के किनारे श्री दशरथ जी महाराज का पिंडदान कर दिया. इससे उनकी आत्मा प्रसन्न होकर सीता जी को आर्शीवाद देकर चली गई.
*२:-पुराण के श्लोक में मिलता है ऐसा जिक्र:-* पुत्रियां भी श्राद्ध कर सकती हैं इस संबंध में गरुड़ पुराण में भी जिक्र मिलता है. इसमें श्लोक संख्या 11, 12, 13 और 14 में इसका जिक्र किया गया है कि कौन-कौन श्राद्ध कर सकता है.
*श्लोक- पुत्राभावे वधु कूर्यात भार्याभावे च सोदन शिष्यों वा ब्राह्म्णः सपिण्डो वा समाचरेत ज्येष्ठस वा कनिष्ठस्य भ्रातृपुत्रश् पौत्रके श्राध्यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग*
अर्थ:- इस श्लोक के मुताबिक ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है. इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एक मात्र पुत्री भी शामिल है. यदि पत्नी जीवित न हो तो सगा भाई या भतीजा, भांजा, नाती, पोता भी श्राद्ध कर सकते हैं. इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई रिश्तेदार या फिर कुलपुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है. यानी कि परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य पितरों का श्राद्ध तर्पण कर सकती है..!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-