अनिल मिश्र/गया
सनातन धर्म में प्रत्येक दिन का एक खास ही महत्व है. सनातन धर्म में देवी -देवताओं, पशु -पक्षियों सहित प्रकृति के संसाधनों के प्रति समर्पण कर उनकी विभिन्न अवसरों पर आराधना एवं पूजन पाठ कर आशीर्वाद कि प्राप्ति की जाती है.वही उसी प्रकार इस दुनिया से मानव शरीर को त्याग कर परलोक वास करने वाले मृत आत्माओं के शांति एवं मोक्ष दिलाने हेतु श्राद्ध कर्म करने का विधान है. श्राद्ध कर्म में जैसे तर्पण एवं पिंडदान का विशेष महत्व है. वही उनके प्रति श्रद्धा के साथ तर्पण एवं पिंडदान करने से परिवार प्रति मंगल कामना एवं आशीर्वाद पाने की मान्यता है.
जब बात पितरों की हो तो बिहार के गया धाम का वर्णन जरूर करना जरूरी है .मोक्ष धाम के नाम से प्रचलित गया जी में प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष मेला लगता है .वैसे तो यहां पिंडदान करने का विधान सालों भर है .लेकिन पितृपक्ष यानी भाद्रपद शुक्ल पक्ष अनंत चतुर्दशी से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या तक इसका खास महत्व है. 17 दिनों तक रहकर यहां कर्मकांड करने का विधान है. स्वयं सीता माता त्रेता युग में भगवान राम के साथ आकर राजा दशरथ के मुक्ति के लिए तर्पण और पिंडदान किया था. गया में पिण्ड दान करने का वर्णन वायु पुराण एवं गरुड़ पुराण में है .वही सनातन धर्म के मानने वाले लोग और आस्था रखने वाले मोक्ष भूमि गया में आकर प्रत्येक वर्ष पिंडदान करते हैं .
मोक्ष नगरी गया में मे इस बार फल्गु के तट पर हजारों पिण्ड दानियों के बीच कुछ विदेशी चेहरे सनातन के प्रति आस्था के वैश्विक स्वरूप को परिभाषित कर रहे थे. यह हर वर्ष होता है जब विदेश के भी श्रद्धालु आस्था से वशीभूत होकर शांति की आस में आते हैं .पितृपक्ष मेले के अवसर पर अवसर पर सात समुंदर पार से 9 देश से एक दर्जन लोग यहां आकर आध्यात्मिक भाव और विधि विधान से अपने पुरखों के प्रति श्रद्धा रखते हुए तर्पण एवं पिंडदान किया. इसमें कजाकिस्तान, रूस, यूक्रेन, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड और धाना से पांच महिलाएं एवं पांच पुरुष आए. फल्गु तट पर पिंडदान एवं तर्पण करने के दौरान उनके चेहरे पर असीम शांति दिखाई दिए.यूक्रेन से आई पोलीगा ने कहा कि अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर गया में दूसरी बार आई है .पिछले वर्ष भी आई थी उन्होंने भगवान विष्णु को नमन कर मन्नत मांगी थी कि रूस यूक्रेन के बीच युद्ध रुक जाए. दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध में काफी विराम लगा है. वह इसी उद्देश्य से दूसरी बार गया जी आई है. उनके साथ कार्तियाना भी आई है .वही रूस के एकतरिना,घाना से आनाकाफी ,घाना से ही लिविया लोसमा, नाइजीरिया से देव ऋषि दास , कजाकिस्तान से बिठाली , स्वेतलाना आदि है.
आनाकाफी ने कहा कि कर्म काण्ड करने से मन हल्का लग रहा है. उन्होंने कहा कि सनातन में पिंडदान और तर्पण के महत्व को जानते हैं. यहां की महत्ता से परिचित हैं .यह अदभुत संस्कृति है. केवल फल्गु के पवित्र धारा में पांव रखने भर से पितरों की मोक्ष प्राप्ति का एहसास अनुपम है .उन्होंने बताया कि अपने धर्म गुरु नताशा सफारी से प्रेरित होकर सभी आए हैं नताशा रूस के मास्को शहर में रहती है .वो कई देशों में सनातन के जीवन दर्शन के बारे में बता रही है .इन सभी पिण्ड दानियों को आचार्य लोकनाथ गौड ने तर्पण और पिंडदान करवाये. लोकनाथ गौड इस्कॉन मंदिर से जुड़े हैं. लोकनाथ गौड ने बताया कि नताशा की हिंदू जागृति नाम की एक संस्था है .जिसका मुख्य कार्यालय मास्को में है. नताशा लोगों के सनातन के बारे में बताती है .उनसे प्रभावित होकर कई देश के लोग या पिंडदान करने आते हैं. कर्मकांड कर रही महिलाएं साड़ी एवं पुरुष धोती में वैदिक मंत्र चारों का उच्चारण कर रहे थे .सभी ने फल्गु में तर्पण के बाद विष्णु पर मंदिर में भी श्री विष्णु के चरण की पूजा अर्चना किया.
भाद्रपद अनंत चतुर्दशी यानी 17 सितंबर से शुरू हो कर 2 अक्टूबर को पितृपक्ष मेला समाप्त होगा . 17 दिनों तक चलने वाले इस पितृ पक्ष मेला कल जहां पितरों का दूध से तर्पण किया गया. वहीं पितृ दीपावली मनाई गई .पितृ पक्ष का समापन कल किया जाएगा .जिसमें 17 दिनों तक रुकने वाले पिंड दानी हो या एक दिन के पिंडदान कर्मकांड करने वाले भी अपने गयपाल पंडा यानी तीर्थ ब्राह्मण से अक्षय वटके पास सुफल लेकर प्रस्थान कर जाएंगे .इस बार लगभग 10 लाख से ऊपर पितृ पक्ष मेला में श्रद्धालु आए और अपने पूर्वजों की आत्मा के शांति एवं मोक्ष दिलाने की कामना किया . जहां मृत आत्माओं को गया में पिंडदान और तर्पण करने से शांति प्रदान एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है.वही परिजनों को इनके द्वारा मंगलकामनाएं और आशीर्वाद प्राप्त होने की बात कही जाती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-