जन्म कुंडली के अनुसार सूर्य की दशा में अन्य ग्रहों का अन्तर

जन्म कुंडली के अनुसार सूर्य की दशा में अन्य ग्रहों का अन्तर

प्रेषित समय :23:07:25 PM / Sun, Oct 6th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

सूर्य में गुरु की भुक्ति 9 माह, 18 दिन की होती है. यह समय कार्यों में सफलता या विजय प्राप्त कराने वाला, वैभव बढ़ाने वाला, कीर्ति का विस्तार कराने वाला तथा राज्य सम्मान की प्राप्ति कराने वाला होता है. जनता या जनमत भी जातक के अनुकूल रहते हैं (इसलिए चुनाव आदि में विजय की दृष्टि से यह समय बहुत अनुकूल रहता है). जाहिर है कि मन भी प्रसन्न रहेगा.
यदि गुरु लग्न में विराजमान हो अथवा महादशानाथ (सूर्य) से केन्द्र या त्रिकोण में हो और बलवान् हो, तो उसकी अन्तर्दशा में उच्चाधिकारी, शासक, प्रतिष्ठित महानुभाव, राजनैतिक प्रभाव वाले किसी व्यक्ति की कृपा से जातक का मनोवांछित कार्य सिद्ध होता है. राजा से सम्मान व जनता का प्यार प्राप्त होता है (जनता उसे अपने प्राणों के समान ही चाहती और सम्मान देती है). सफलता प्राप्ति, राजदर्शन, वैभव प्राप्ति, विवाह, अश्व, वाहन का लाभ, धन-धान्य आदि का लाभ, कल्याण प्राप्ति, पुत्र-पौत्रों, प्रजा का सुख आदि मिलते हैं. धर्म व सुख की सिद्धि होती है.
यदि गुरु कुण्डली के नवमेश या दशमेश के साथ हो, तो अपनी भुक्ति में अधिकार, सत्ता, राज्य की प्राप्ति का लाभ कराता है. शपथ ग्रहण करना जैसे बड़े समारोह होते हैं. पालकी, शाही सवारी, सेना (अंगरक्षकों या अनुयायियों) की भी प्राप्ति होती है. धन का आगमन, पुत्रलाभ व सन्तान से सुख प्राप्त होता है. (यानी कुण्डली में ऐसे ग्रहयोग हों, तो वह उस समय मन्त्री, सभासद, संसद सदस्य आदि बन सकता है, अन्यथा अपने क्षेत्र में प्रभुता प्राप्त करेगा).
यदि गुरु कुण्डली में पापयुत होगा, तो अपनी भुक्ति में जातक को भी पाप कर्मों या निकृष्ट कर्मों में लगाये रखेगा. उसे मानसिक कष्ट प्राप्त होंगे. धन की हानि होगी तथा घर या पद या स्थान त्यागना या गांव या शहर छोड़ना पड़ सकता है.
यदि गुरु नीच राशि में होगा या अस्त होगा, तब भी पूर्वकथित फल ही मिलेंगे. धन का नाश, राज्य, शासन, अधिकारी का कोप, प्रियजनों तथा सम्बन्धियों की हानि (उनसे वैमनस्य या अलगाव या दूरी हो जाना) होगी तथा महान् भय से पूर्ण वह दशावधि होगी.
यदि गुरु कुण्डली में सूर्य से केन्द्र में होगा, तो महान् सुख से परिपूर्ण उसकी अन्तर्दशा रहेगी. जातक के द्वारा जनहित के कार्य, परोपकार, दान-पुण्य, पुराण श्रवण आदि सत्कर्म उस काल में किये जायेंगे, जिससे स‌कीर्ति, पुण्यकर्मों व धन का संग्रह होगा. सम्पत्ति बढ़ेगी. मन उत्साहित व प्रसन्न रहेगा, सत्कर्मों में सफलता मिलेगी. पुत्र लाभ, राज्यप्राप्ति, ऐश्वर्यवृद्धि आदि सुफल होंगे.
यदि गुरु सूर्य हो से नवम या चतुर्थ भाव में हो, तो भी उसकी भुक्ति में पुत्रों की उन्नति व उनकी संख्या में वृद्धि होती है, परन्तु नवम भाव में होने से और भी शुभ फल प्राप्त होंगे. तब जातक प्रायः प्रतिदिन ही दान-पुण्य, उपासना, धर्मकार्य आदि शुभ व सत्कर्म करता है, जिससे उसके परिवार का कल्याण होता है. घर में बरकत आती है. धन-सम्पत्ति, सुख, कीर्ति, राजसम्मान व पुत्र बढ़ते हैं.
यदि गुरु सूर्य से ग्यारहवें भाव में हो या शुभ ग्रह के साथ हो, तो उसकी अन्तर्दशा में जातक के शत्रु नष्ट होते हैं (निष्क्रिय रहते हैं, दूर हो जाते हैं, शत्रुता समाप्त हो जाती है आदि), मन में उत्साह की अधिकता रहती है और अनेक प्रकार से सुख प्राप्त होता है. घर, खेत या अधिकार क्षेत्र में भी वृद्धि होती है. इस प्रकार
यह भुक्ति शुभ फलों को देने वाली सिद्ध होती है. जैसा कि भार्गव नाड़िका में सूर्य महादशाफल अध्याय में कहा गया है-
              दायेशाल्लाभयुक्तस्य सौम्यभुक्तौ महासुखम् .
                शत्रुनाशमहोत्साह गृहक्षेत्रादिवृद्धिकृत् ॥
यदि गुरु सूर्य से 8, 12 भाव में पापयुत हो, तो उसकी भुक्ति में अग्निकाण्ड का भय होता है. शरीर में पीड़ा रहती है. स्त्री, पुत्र, धन का नाश या हानि होती है. महान् भय होता है. दशारम्भ में यद्यपि शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा आरोग्य होता है, परन्तु दशामध्य में क्लेश की प्राप्ति होती है और दशान्त में राजभय व कारावास का कष्ट पाना सम्भव होता है.
यदि गुरु सूर्य से दूसरे या सातवें भाव में हो या कुण्डली के द्वितीयेश या सप्तमेश के साथ हो, तो उसकी अन्तर्दशा में जातक के शरीर में जड़ता रहती है, मानसिक रोग व मानसिक कष्ट होते हैं. इस दोष के शमनार्थ रुद्रजाप, स्वर्ण तथा कपिला गाय का दान कहा गया है. (विद्वानों के अनुसार जिनको इतनी सामर्थ्य न हो, वे कपिला गाय की सेवा से भी राहत पा सकते हैं).
                        प्रत्यन्तर, सूक्ष्म, प्राणदशा
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यदि सूर्य की महादशा और गुरु के अन्तर में गुरु का ही प्रत्यन्तर (1) माह, 8 दिन, 24 घटी) हो, तो आय के साधनों में वृद्धि होती है. धन का आगमन होता है. सौभाग्य, मित्र, पुत्र तथा धन का लाभ होता है. यदि सूक्ष्मदशा (43 घटी, 12 पल) में भी गुरु होगा, तो राजा, राज्य, शासन,
अधिकारी से सत्कार की प्राप्ति होगी. राजदरबार, कार्यक्षेत्र, कार्यालय के योग्य लोगों में जातक की गिनती होगी, उसे राजा या अधिकारी की संगति मिलेगी, समाज में भी सम्मान प्राप्त होगा. सेवकों की सुविधा मिलेगी. शारीरिक दुर्बलता दूर होगी. यदि क्षयरोग हुआ, तो उस अवधि से वह भी ठीक होने लगेगा.
गुरु की ही प्राणदशा (2) घटी, 9 विघटी, 36 पल) हो, तो जीवनस्तर बेहतर हो जायेगा. यात्रा-भ्रमण से कार्यों की सिद्धि हो जायेगी. पुत्र की प्राप्ति या उन्नति होगी. जातक की शैक्षणिक उन्नति व अनेक प्रकार से आर्थिक उन्नति होगी.

Narender Pal Bhardwaj

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-