नारी को न समझ बेकार

नारी को न समझ बेकार

प्रेषित समय :18:30:31 PM / Sat, Oct 12th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

रेनू
गरुड़, उत्तराखंड

लगा लाख जंजीरे तू,
मैं कहां उनमें उलझूंगी,
हसरतें तेरी अधूरी रहेगी,
देख फिर से मैं सुलगूंगी,
दरिया समझ लिया है तूने,
मैं सागर सी बह जाउंगी,
इस सीमा से उस सीमा तक,
ज़माने में फिर लहरा उठूंगी,
तू भेद करेगा नर-नारी का,
मैं ज्वाला सी दहकूँगी,
तू चल समय के अनुकूल मगर,
शिखरों पर मैं ही दिखूंगी,
उस दिन होंगे अल्फ़ाज़ तेरे,
मगर बातों मैं ही महकूंगी,
तेरी नज़र होगी ज़मीन पर,
और आसमान में मैं झलकूँगी,
उस दिन मैं ज़माने से कहूँगी,
नारी हूं ना कि कोई व्यापार,
न समझ तू नारी को बेकार,
मुझ में बुराई देख ना तू,
मैं हूँ खुशियों का भंडार॥

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