दक्षिण दिशा में भोजन करना मृत्यु कारक

दक्षिण दिशा में भोजन करना मृत्यु कारक

प्रेषित समय :19:35:31 PM / Mon, Oct 14th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

दक्षिण दिशा में मुंह करके खाना खाना, आपको अकाल मृत्यु की ओर ले जाता है. वास्तव, माना जाता है कि ये दिशा मरे हुए लोगों की है और इस दिशा में ऐसी ही ऊर्जा रहती है. जब आप इस दिशा में खाना खाते हैं तो ये नकारात्मक ऊर्जा आपके खाने में मिल जाती है या फिर आपके खाने का एक भाग इन्हें भी जाने लगता है. फिर लगातार ये काम करना इनके साथ संपर्क बढ़ाता है और मृत्यु की दिशा क्रियाशील हो जाती है और आप या आपका कोई विशेष अचानक से अकाल मृत्यु की ओर जाता है..

खाने की सही दिशा क्या है-खाने की सही दिशा है पूर्व. वास्तव में, इस दिशा में खाना मानसिक तनाव को दूर करता है और आपके पाचन क्रिया को सही करता है. इसके अलावा इस दिशा में खाना खाने से आप स्वस्थ्य रहते हैं. इतना ही नहीं इस दिशा में खाना खाने से आपके माता-पिता का भी स्वास्थ्य उत्तम रहता है..

भोजन करने के नियम सनातन धर्म के अनुसार...........
खाने से पूर्व अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुये, तथा सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो इर्श्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिये.
गृहस्थ के लिये प्रातः और सायं (दो समय) ही भोजन का विधान है.
दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख, इन पाँच अंगों को धोकर भोजन करने वाला दीर्घजीवी होता है.
भींगे पैर खाने से आयु की वृद्धि होती है.
सूखे पैर, जुते पहने हुये, खड़े होकर, सोते हुये, चलते फिरते, बिछावन पर बैठकर, गोद मे रखकर, हाथ मे लेकर, फुटे हुये बर्तन में, बायें हाथ से, मन्दिर मे, संध्या के समय, मध्य रात्रि या अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिये.
रात्रि में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिये.
रात्रि के समय दही, सत्तु एव तिल का सेवन नहीं करना चाहिये.
हँसते हुये, रोते हुये, बोलते हुये, बिना इच्छा के, सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिये.
पूर्व की ओर मुख करके खाना खाने से आयु बढ़ती है.
उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से आयु तथा धन की प्राप्ति होती है.
दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से प्रेतत्व की प्राप्ति होती है.
पश्चिम की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति रोगी होता है.
भोजन सदा एकान्त मे ही करना चाहिये.
यदि पत्नि भोजन कर रही हो, तो उसे नहीं देखना चाहिये.
बालक और वृद्ध को भोजन करने के बाद स्वंय भोजन ग्रहण करें.
बिना स्नान, पूजन, हवन किये बिना भोजन न करें.
बिना स्नान ईख, जल, दूध, फल एवं औषध का सेवन कर सकते हैं.
किसी के साथ एक बर्तन मे भोजन न करें. (पत्नि के साथ कदापि नहीं) अपना जूठा किसी को ना दें, ना स्वंय किसी का जुठा खायें.
काँसे के बर्तन में भोजन करने से (रविवार छोड़कर) आयु, बुद्धि, यश और बल की वृद्धि होती है.
परोसे हुये अन्न की निन्दा न करें, वह जैसा भी हो, प्रेम से भोजन कर लेना चाहिये. सत्कारपूर्वक खाये गये अन्न से बल और तेज की वृद्धि होती है.
ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, राग और द्वेष के समय किया गया भोजन शरीर मे विकार उत्पन्न कर रोग को आमन्त्रित करता है.
भोजन में पहले मीठा, बीच मे नमकीन एवं खट्टी तथा अन्त में कड़वे पदार्थ ग्रहण करें.
कोई भी मिष्ठान्न पदार्थ जैसे हलवा, खीर, मालपूआ इत्यादि देवताओ एवं पितरों को अर्पण करके ही खाना चाहिये.
जल, शहद, दूध, दही, घी, खीर और सत्तु को छोड़कर कोई भी पदार्थ सम्पुर्ण रूप से नहीं खाना चाहिये. (अर्थात् बिल्कुल थोड़ा सा थाली मे छोड़ देना चाहिये).
जिससे प्रेम न हो उसके यहाँ भोजन कदापि न करें.
मल मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वट वृक्ष के नीचे, भोजन नहीं करना चाहिये.
आधा खाया हुआ फल, मिठाइयाँ आदि पुनः नहीं खानी चाहिये.
खाना छोड़ कर उठ जाने पर दोबारा भोजन नहीं करना चाहिये.
गृहस्थ को ३२ ग्रास से अधिक नहीं खाना चाहिये.
थोडा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुन्दर सन्तान, और सौन्दर्य प्राप्त होता है.
जिसने ढिंढोरा पीट कर खिलाया हो वहाँ कभी न खायें.
कुत्ते का छुआ, श्राद्ध का निकाला, बासी, मुँह से फूंक मरकर ठण्डा किया, बाल गिरा हुआ भोजन, अनादर युक्त, अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करें.
कंजूस का, राजा का, चरित्रहीन के हाथ का, शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिये.
भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मन्त्र जप करते हुये ही रसोयी में भोजन बनायें और सबसे पहले ३ रोटियाँ अलग निकाल कर (गाय, कुत्ता, और कौवे हेतु) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालों को खिलायें..

भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार का भोजन न करने की सलाह दी थी....
1. जिस थाली को क़ोई व्यक्ति लांघ कर गया हो वह भोजन नाली में पड़े कीचड़ के समान है! वह भोजन योग्य नहीं है!
2. जिस थाली को ठोकर लग गई या पांव लग गया वह भोजन भिष्टा के समान है! वह भोजन योग्य नहीं है!
3. जिस भोजन की थाली में या भोजन में बाल (केश) पड़ा हो वह दरिद्रता के समान है! भोजन योग्य नहीं है!
4. जिस थाली में पति पत्नी एक साथ भोजन कर रहे हों वह भोजन भी योग्य नहीं है! लेकिन पत्नी अगर अपने पति की झूठी थाली या पति का झूंठा खाती है तो उसे चारों धाम का पुण्य फल मिलता है!
हे अर्जुन, बेटी अगर कुमारी हो और पिता के साथ एक ही थाली में भोजन करती है, तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं हो सकती क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है.
Astro nirmal

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