_साल भर की हरिपूजा का फल केवल कार्तिक मास की पूजा से मिल जाता है. *ऊर्जादरो विशेषेण*– इसलिए इस व्रत का विशेष प्रयास पूर्वक अच्छे से पालन करना चाहिए._
1. श्रीराधाकृष्ण को तिल तेल या घी का *दीप दान* करते हुए सुबह शाम सत्यव्रत मुनि के लिखित *श्रीदामोदर–अष्टक* का पाठ करना चाहिए. *इससे श्रीराधा दामोदर जी, भक्त के वशीभूत हो जाते हैं. साथ में, धनं पुत्रो यशः कीर्ति – धन, संतान, यश, कीर्ति और भक्ति भी मिलती है.* उसी प्रसादी दीप से तुलसी जी की आरती भी कर सकते हैं. कपूर के साथ दीप देने की भी बहुत महिमा है.
2 *अपने सामर्थ्य के अनुसार श्रीराधा दामोदर जी की पूजा, स्नान, अर्चन, वंदना, प्रणाम,* स्तुति, पाठ, फूल तुलसी माला एवं सुगन्ध अर्पण, बढ़िया भोग निवेदन, वस्त्र-अलंकार अर्पण, आरती आदि करना चाहिए. वाद्य आदि सहित भजन-कीर्तन-नृत्य आदि करने से भगवान् बहुत प्रसन्न होते हैं.
3. *तुलसी देवी में जल देना, उनकी आरती करना, चार परिक्रमा करना, तुलसी पूजा करना*, तुलसी के आठ नाम बोलना, श्रीकृष्ण के चरणों में तुलसी चढ़ाना, तुलसी प्रणाम मंत्र बोलकर प्रणाम करना चाहिए. हरिनाम करते हुए तुलसी की 108 परिक्रमा का भी बहुत महात्म्य है.
*वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी .*
*पुष्पसारा नंदिनी च तुलसी कृष्ण–जीवनी ..* (आठ नाम)
*वृंदायै तुलसी देव्यै प्रियायै केशवस्य च.*
*कृष्णभक्ति–प्रदे देवी सत्यवत्यै नमो नमः..* (प्रणाम मंत्र)
4. *हरिनाम (हरे कृष्ण महामंत्र) की माला कुछ अधिक करने का नियम लेना चाहिए.* कम से कम 4 माला ध्यान से सुनते हुए करनी चाहिए और 64/ 128 / 192 माला प्रतिदिन करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि कलियुग केवल नाम आधारा.
5. प्रयास करके सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से 1 घंटा 36 मिनट पहले का समय) में जागकर, आकाश में तारे रहते हुए, श्रीराधा दामोदर का नाम बोलते हुए,उनका स्मरण करते हुऐ, मंत्र बोलकर स्नान करना चाहिए. *कम से कम कार्तिक मास में एक-दो बार, पवित्र नदियों या तीर्थों में स्नान करना चाहिए.* कार्तिक मास में ब्रह्म मुहुर्त में स्नान, पूजा, जप आदि का बड़ा भारी महात्म्य है.
*कार्तिकेऽहः करिष्यामि प्रातः स्नानं जनार्दन .*
*प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह ..* (स्नान मंत्र)
6 *श्रीमद्भागवत (दसवें स्कंध) का एक श्लोक या अध्याय का प्रतिदिन पाठ या वैष्णव ग्रंथों-पुराणों का पठन करना चाहिए.* _एक श्लोक पढ़ने पर ही 18 पुराणों के पाठ का फल प्राप्त हो जाता है._ अगर नही पढ़ी जाए भागवत, तो रोज कुन्ती देवी का कहा यह एक आसान सा श्लोक ही पढ़े:
*कृष्णाय वासुदेवाय, देवकी नन्दनाय च.*
*नन्द गोप कुमाराय, गोविंदाय नमो नमः..* ( भागवत 1.8.21)
7. *वैष्णवो का दर्शन और वैष्णवों से प्रतिदिन हरिकथा श्रवण करनी चाहिए* – नित्यं वैष्णव संगत्या सेवेत भगवत कथाम (पदम् पुराण). चौथाई श्लोक या अर्थ सुनने पर *100 गाय के दान का फल मिलता है* – श्लोकपादम वा कार्तिके गौ –शतम फलम. *लोभ से भी कथा सुनने वाला अपने 100 कुलो को भगवान के धाम भेज देता है* – कुलानाम तारयेत शतम.
8. *वैष्णवों और भक्तों की सेवा, उन्हें प्रसाद खिलाना या भोग लगाने के लिए अन्न, फल आदि देना चाहिए.* तद अक्ष्यम फलम प्रोक्तम – इस सेवा का फल कभी समाप्त नहीं होता, हर जन्म में मिलता रहता है. तद अक्षयम लभ्यते वै अन्न दानम विशेषतः – *अक्षय फल होता है विशेष रूप से अन्नदान का.*
9. कार्तिक मास में सरसों और तिल का प्रयोग मना है. इनका तेल शरीर पर न लगाए और न खाएं. भगवान के लिए दीपदान मे यह सब तेल व्यवहार कर सकते हैं. सरसों का दाना मसाले में मना है. सरसों का साग भी खाना मना है. *इस महीने में शहद, उड़द दाल, पापड़, राजमा, लोबिया, सेम आदि फलियां, परमल, लौकी , बैंगन, कालिंगी साग, बरबटी, बासी भोजन (रात का बचा) खाने से प्रलय तक नरक वास मिलता है –यावद आहूत नारकी.* लहसुन, प्याज, मशरूम, मसूर दाल, गाजर, मांस, शराब और तम्बाकू तो कभी भी नहीं खाना चाहिए. *इस महीने में मांस खाने वाला आगे चांडाल का जन्म पाता है.*
10. पूरा महिना *ब्रह्मचर्य का पालन* करना चाहिए. (ऐसा न करने से आगे सूअर की योनि में जन्म मिलता है – पदम् पुराण).
11. *प्रयास करके श्रीवृंदावन, राधाकुंड आदि धाम में पूरा महीना या कम से कम 3 रात वास करना चाहिए* – तीर्थे तु कार्तिकीम कुर्यात. 3 रात में किसी भाग्यवान को हरि दर्शन हो सकते है ऐसा भक्ति रसामृत सिंधु में कहा गया है. इससे कार्तिक मास का संपूर्ण और विशेष फल अर्थात् *भक्ति की प्राप्ति होगी* – सा त्वंजसा हरेर भक्तिर लभ्यते कार्तिके नर: (हरिभक्ति विलास).
12. 17 अक्टूबर से 16 नवंबर तक (आश्विन संक्रांति से कार्तिक संक्रांति तक) घर के किसी ऊंचे खुले स्थान पर हवा से बचाते हुए, संध्या में एक दीप रखना चाहिए जिसे *आकाश दीपदान* कहते हैं. इससे महालक्ष्मी श्रीराधाजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
*अन्य नियम, जो कोई चाहे तो कर सकता है :
1. चटाई आदि बिछा कर भूमि पर शयन.
2. _दिन में एक बार प्रसाद भोजन और शाम को दूध या हल्का फलाहार लेना._
3. *हरिनाम की माला दुगुनी करने का प्रयास.*
4. नित्य हरिनाम संकीर्तन या नगर संकीर्तन में भाग लेना.
5. भगवान के मन्दिर की चार परिक्रमा.
6. *श्रीकृष्ण को मंजरी के साथ तुलसी की माला बनाकर पहनाना,* भले वह केवल 5 तुलसी गुच्छों की ही बनी हो. इससे श्रीकृष्ण अति प्रसन्न होते हैं, और भक्त के वशीभूत हो जाते हैं – श्रीकृष्णो वश्यताम याति.
7. *गजेंद्र मोक्ष और विष्णु सहस्र नाम* का पाठ करना.
8. श्रीकृष्ण के श्रीचरणों में चढ़ाई प्रसादी तुलसी को बाद में प्रसाद रूप में ग्रहण करना.
9. घर के मंदिर में या तुलसी के बगीचे में, या किसी तीर्थ स्थल में बहुत सारे तिल तेल/घी या सरसों तेल के दीप प्रज्वलित करना. कम से कम दिवाली को तो 108 दीप लगाने चाहिए.
10. पूरे महीने या कुछ दिन, अपने मंदिर में तिल तेल/घी या सरसों तेल का अखण्ड दीप जलाना. *अखण्ड दीपदान* करने वाला अंत समय में दिव्य कांति युक्त विमान पर बैठकर *श्रीहरि के धाम* में जाता है.
11. *बुझे दीपों को दुबारा जलाने वाला कभी यम यातना नहीं सहता है.* अग्नि पुराण में वर्णन है कि एक चुहिया बुझते दीप को हिला कर जलाने से अगले जन्म में 100 रानियों में सर्वश्रेष्ठ ललिता पटरानी बनी और अगले जन्म में भगवत धाम चली गई.
12. सूखी पतली तुलसी की लकड़ी के साथ दीप जलाने से, एक दीप देने पर ही *10 करोड़ दीपदान* का फल प्राप्त होता है – दीप लक्ष सहस्रनाम पुण्यम् स लभते फलम (पदम् पुराण).
13. मन्दिर के ऊंचे शिखर पर दीप जलाना.
14. _संभव हो तो बाल,नाखुन, दाढ़ी कार्तिक शुरू होने से पहले बना लें और फिर कार्तिक पूर्ण होने के बाद ही बनवाएं._
15. कार्तिक की पवित्र देव उत्थान एकादशी में व्रत करके रात्रि जागरण करना. जागरण करने वाले की, कुला–अयुतम, *दस हज़ार पीढ़ियां भगवान् के धाम पहुंच जाती हैं.*
16. पूजा पाठ आदि के अंत में अपराध क्षमा के लिए प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए– *हे प्रभु! मुझसे हर समय हजारों अपराध और गलतियां होती रहती है, अपना सेवक समझ के मेरे सब अपराधों को क्षमा करें.*
अपराध–सहस्राणि क्रियन्ते,–ऽहर्निशं मया.
दासोऽ–हमिति मां मत्वा, क्षमस्व मधुसूदन ॥
17. देव उत्थान एकादशी, 12 नवंबर से कार्तिक पूर्णिमा, 15 नवंबर तक महीने के सबसे विशेष 4 या 5 दिन आते है, जिन्हे *भीष्म पंचक कहा जाता है. इन 5 दिनों कठोर भजन का नियम और केवल फलाहार करके रहने से पूरे कार्तिक का फल मिल जाता है.* भीष्म पितामह इसी व्रत को कर के श्रीहरि को प्राप्त हुए थे.
_दुर्लभ कार्तिक मास को *बिना कोई भी नियम लिए, निकाल देने वाला, अगला जन्म पशु या पक्षी योनि में लेता है* और तब वह सब नियमों से मुक्त रहता है – *तिर्रयग्य योनिम अवाप्पनोती* (स्कंध पुराण)._
*आपसे जितना आसानी से हो जाए, अपने सामर्थ्य अनुसार उतना ही कार्तिक का नियम ग्रहण करें. कोई कोई नियम पूरा महीना नहीं हो पाने पर, कुछ दिन के लिए ही ग्रहण करें.*
*श्रीदेवानन्द गौड़ीय मठ, नवद्वीप के आश्रित भक्त शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक, 17 अक्तूबर से 15 नवम्बर तक, कार्तिक मास-दामोदर व्रत का नियम पालन करेंगे.* कुछ भक्त 13/14 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी से उत्थान एकादशी (12 नवंबर) तक भी कार्तिक मास का नियम पालन करेंगे.
_जिनको भक्ति का लोभ है वो पापांकुशा एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक नियम कर लेंगे क्योंकि अधिक सेवा और नियम लेने का कोई दोष नही होता_ – *अधिकस्य अधिकं फलम्* , बल्कि अधिक फल और कृपा ही प्राप्त होती है.
कार्तिक मास-दामोदर व्रत के 12 प्रमुख नियम (14 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
प्रेषित समय :18:50:00 PM / Tue, Oct 15th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर