वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है, ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है. इस परिक्रमा के बारे में वारह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं. करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं. इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं. कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं.
बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों. परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था. 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है.
परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं.शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस परिक्रमा के करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है,उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है.सभी तीर्थों को ब्रज में बुलाया गया था यह गर्ग संहिता में कहा गया है.यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं,इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं.उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए.
84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है.इसके अलावा गुप्त काशी,यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं.तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबा ने उनकी परिक्रमा की.तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है..!
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