केतु: आध्यात्मिकता, मोक्ष और जीवन के रहस्यों का स्वामी

केतु: आध्यात्मिकता, मोक्ष और जीवन के रहस्यों का स्वामी

प्रेषित समय :21:05:24 PM / Tue, Oct 22nd, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

केतू – पापी ग्रह , बहूरंग( चित्रविचित्र  ) , आयु – 100 वर्ष , 44 वर्ष में अपना विशेष फल देने वाला  / निवास – घर का कोना स्थान 
केतु  अश्विनी , मघा एवं मूल नक्षत्र के स्वामी हैं. राहु की तरह केतु  को किसी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है. लेकिन धनु  राशि में यह उच्च होता है और मिथुन  राशि में यह नीच भाव में होता है. केतु एक छाया ग्रह है , हमेसा वक्री रहते हैं एवं अस्त नहीं होते हैं. एक राशि पर  1  वर्ष  6 माह रहते हैं  . इसका विशेष अधिकार पैरों के तलवों पर  रहता है.
विशेष – ज्योतिष मे जितने भी ग्रह हैं  वे सभी किसी ना किसी देवता का प्रतिनिधित्व करते है. ग्रहों के स्वभाव गुण पूर्व जन्म मे किए गए कार्यों के अनुसार फल प्रदान करने  के लिए निर्धारित किए गए हैं. यदि किसी ग्रह के विषय में सिर्फ नकारात्मक बाते लिखी जाती है तो हमे इसे भी स्वीकार करना पड़ेगा. क्योकि संसार में शुभ  कार्य होते है या अच्छे लोग होते हैं तो साथ मे बुरे कार्य  भी होते हैं और बुरे लोग भी होते है. इसलिए किसी ग्रह को  बुरा या गाली नहीं देना चाहिए. क्योकि इन  ग्रहो का प्रभाव हमारे ही कर्मो का फल है.
बहुत से लोग ज्योतिष मे एक अलग से प्रभाव दिखाने  के लिए परेशानी करने वाले ग्रहों की भी बड़ाई करते हैं. परंतु जिसने दुख दर्द परेशानी झेला है वही जनता है. ग्रहों के नाकारात्मक  प्रभाव बताने पर कुछ लोग कहते है की ज्योतिषाचार्य  डराते हैं. यदि ज्योतिष को मानते है तो शुभ एवं अशुभ दोनों को स्वीकार करना पड़ेगा.  यदि  कुछ ग्रह परेशानी ये योग नहीं बनाते हैं तो जीवन एवं विश्व में परेशानी क्यों होती है ? ग्रहों के विषय में जो लिख रहा हूँ यह मैं अपने मन से नहीं लिख रहा हूँ बल्कि अनेकों ग्रंथों  एवं विद्वानो के विचारों को संग्रह कर के लिख रहा हूँ.
कारक – नाना , मोक्ष , ध्वज ,  मंत्र – तंत्र , साधना , तपस्या , ब्रह्मज्ञान  , आत्मज्ञान , वेदान्त , मौन व्रत , गुप्त विद्या , आयुर्वेद औषधि या वनस्पति , विरक्ति , ऊंचाई से गिरना , शरीर पर दाग , अटकाव , फोड़े फुंसी , सींगों वाले पशु  , कांटा , नुकीली सामाग्री ,
राहू को साँप का मुख एवं  केतु को साँप की पूंछ माना गया है. साँप के मुख मे जहर एवं पूंछ में शक्ति होती है. केतु के गुण दोष प्रायः मंगल के समान होते हैं  मंगल के मुकाबलेऔर भी कड़ा  . केतु भी मंगल की भांति अपने युति तथा दृष्टि के प्रभाव में आने वाले पदार्थों को चोट अथवा क्षति पहुंचाता है. राहु के सामान केतु भी अचानक फल देता है. मंगल की भांति यह भी बुद्धि एवं प्रभाव में तीव्र होता है. केतु शब्द का अर्थ वेद आदि ग्रंथों में झंडे के अर्थ में आया है. अर्थात ऊंचाई का , उच्चता का , महानता के प्राचुर्य का , उत्कृष्टता का प्रतीक है. 
अतः केतु भी अपने भीतर उत्कृष्टता आदि गुण रखता है. केतु में  एक विशेष गुण यह है कि किसी स्वक्षेत्री ग्रह के साथ जब विराजमान होता है तो उसके फल में विशेष वृद्धि करता है. राहु से सर्वदा उल्टा होने से केतु में शुभता के कारण मोक्ष का कारक माना गया है. केतु को भले ही शुभ ग्रह माना जाए परंतु इस पर राहु की दृष्टि भी होती है जिसके कारण राहु का प्रभाव भी समाहित हो जाता है. केतु की दृष्टि जहां भी पड़ती है वहाँ  चोट लगने की या आग लगने की संभावना भी रहती है ( यदि इसके साथ सूर्य एवं मंगल की भी युति हो तो ).
यदि शत्रु राशि में  या सूर्य , चन्द्र , मंगल या शनि के साथ दृष्टि युति हो तो उस भाव के सुखों मे कमी या दूरी करता है. उस अंग में कटने , चोट लागने  या ऑपरेशन की संभावना रहती है. 
चतुर्थ भाव मे प्रभाव हो तो मातृ भूमि का वियोग सहना पड़ता है. बार बार स्थान परिवर्तन भी करना पड़ता है. 
द्वादश भाव में मोक्ष देने वाला माना जाता है परंतु ऐसे हीं मोक्ष प्राप्त नहीं होता है , उसके लिए कठिन साधना , तपस्या एवं अच्छे कर्म करने पड़ते हैं. 
केतु सबसे ज्यादा पीड़ित सूर्य , चन्द्र , मंगल , शनि को पीड़ित  करता है. यदि  केतु पर मंगल या शनि की दृष्टि हो तब भी परेशानी के योग बन जाते हैं.
केतु के द्वारा व्यक्ति को हमेशा ही बुरे फल प्राप्त नहीं होता है. केतु ग्रह के द्वारा व्यक्ति को शुभ फल भी प्राप्त होते हैं. यह आध्यात्म , वैराग्य ,  मोक्ष , तांत्रिक ,  आदि का कारक होता है.
केतु के प्रभाव वाले व्यक्तियों में मंगल से संबंधित गुण होते हैं. ऐसी व्यक्ति में धैर्य की कमी होते हैं  . मन एकाग्र नहीं रहता है. स्वभाव उग्र होता है. यदि अपने कार्य के या योजना के बारे में किसी को पहले बता देते हैं तब वह कार्य बिगड़ जाता है और सफलता प्राप्त नहीं होती है.  ऐसे व्यक्तियों के शरीर या चेहरे पर चोट के या किसी प्रकार के निशान होते हैं.
केतु  अन्य ग्रहों के साथ योग बनाकर बीमारी एवं परेशानी देते है  – चर्म रोग , फोड़े फुंशी , मस्से , गांठ ,  कुष्ट रोग , त्वचा रोग , मसल्स – नाड़ी रोग , न्यूरो रोग ,  आग से दुर्घटना , ऊंचाई से गिरना , शरीर पर चोट के निशान या दाग , संक्रामण रोग , वधिरता  , वाणी रोग , मशीन से दुर्घटना , शस्त्राघात ,  विषाणु से उत्पन्न ज्वर , कृमि या विषैले जीवाणु के कारण रोग , विषैले जानवर से परेशानी साँप , बिच्छू , कुत्ता काटना इत्यादि , विस्फोट , अग्नि कांड  , काट – पीट हत्या , मानसिक रोग , ऊपरी बाधा ,  .
 केतु यदि समस्या उत्पन्न कर रहा हो तो दान एवं उपाय करना चाहिए. मंगलवार या शनिवार को कुष्ठ रोगी या सफाईकर्मी को 
मंत्र –.. ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः..
दान – चितकबरा कंबल , भूरा वस्त्र , सतनाजा , नारियल , काला – सफेद तिल , तिल का तेल इत्यादि.
उपाय – असगंध की जड़ धारण करें. काले एवं सफेद तिल के लड्डू गणेश जी को चढ़ा कर बांटें. कुत्ते को दूध एवं ब्रेड खिलाएं , प्रतिदिन कुत्ते को रोटी खिलाएं. पंछियों को अनाज खिलाएँ. पारद शिवलिंग स्थापित करके रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का स्वयं जाप करें. रुद्राष्टाध्यायी  पांचवें अध्याय के 16 मंत्र  का पाठ करते हुए पारद शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करें.

आचार्य रजत पाठक

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-