महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान. दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना. कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए.
दीपदान कैसे करें
मिट्टी, ताँबा, चाँदी, पीतल अथवा सोने के दीपक लें. उनको अच्छे से साफ़ कर लें. मिटटी के दीपक को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो कर सुखा लें. उसके पश्च्यात प्रदोषकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद उचित समय मिलने पर दीपक, तेल, गाय घी, बत्ती, चावल अथवा गेहूँ लेकर मंदिर जाएँ. घी में रुई की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल धागे या कलावा की बत्ती इस्तेमाल कर सकते हैं. दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें. दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें क्योंकि कालिका पुराण का कथन है.
"दातव्यो न तु भूमौ कदाचन.
सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्..
अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च.
तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा.."
अर्थात सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नही होता.
उसके बाद एक तेल का दीपक शिवलिंग के समक्ष रखें और दूसरा गाय के घी का दीपक श्रीहरि नारायण के समक्ष रखें. उसके बाद दीपक मंत्र पढ़ते हुए दोनों दीप प्रज्वलित करें. दीपक को प्रणाम करें. दारिद्रदहन शिवस्तोत्र तथा गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करें.
पुराणों में वर्णन मिलता है.
"हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम्.
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके..“
पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय –११५
“ स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम्.
भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम्..
विष्णुसंकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा.
कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि..”
स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, कार्तिकमासमाहात्म्यम, अध्याय 03
पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है.
"घृतेन दीपको यस्य तिलतैलेन वा पुनः.
ज्वलते यस्य सेनानीरश्वमेधेन तस्य किम्.."
अर्थात कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से क्या लेना है.
अग्निपुराण के 200वें अध्याय के अनुसार
"दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति"
अर्थात दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही.
स्कंदपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार
"सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे..
तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः.."
अर्थात कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है.
कार्तिक में दीपदान का एक मुख्य उद्देश्य पितरों का मार्ग प्रशस्त करना भी है.
"तुला संस्थे सहस्त्राशौ प्रदोषे भूतदर्शयोः
उल्का हस्ता नराः कुर्युः पितृणाम् मार्ग दर्शनम्.."
पितरों के निमित्त दीपदान जरूर करें.
पद्मपुराण, उत्तरखंड, अध्याय 123 में महादेव कार्तिक में दीपदान का माहात्म्य सुनाते हुए अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं.
"शृणु दीपस्य माहात्म्यं कार्तिके शिखिवाहन.
पितरश्चैव वांच्छंति सदा पितृगणैर्वृताः..
भविष्यति कुलेऽस्माकं पितृभक्तः सुपुत्रकः.
कार्तिके दीपदानेन यस्तोषयति केशवम्.."
अर्थात “मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को संतुष्ट कर सके."
दीपदान कहाँ करें
देवालय (मंदिर) में, गौशाला में, वृक्ष के नीचे, तुलसी के समक्ष, नदी के तट पर, सड़क पर, चौराहे पर, ब्राह्मण के घर में, अपने घर में.
अग्निपुराण के 200वे अध्याय के अनुसार
"देवद्विजातिकगृहे दीपदोऽब्दं स सर्वभाक्"
जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है. पद्मपुराण के अनुसार मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है.
जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है. कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं. एक श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग के समक्ष.
पद्मपुराण के अनुसार
"तेनेष्टं क्रतुभिः सर्वैः कृतं तीर्थावगाहनम्.
दीपदानं कृतं येन कार्तिके केशवाग्रतः.."
अर्थात जिसने कार्तिक में भगवान् केशव के समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगा लिया.
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है जो कार्तिक में श्रीहरि को घी का दीप देता है, वह जितने पल दीपक जलता है, उतने वर्षों तक हरिधाम में आनन्द भोगता है. फिर अपनी योनि में आकर विष्णुभक्ति पाता है; महाधनवान नेत्र की ज्योति से युक्त तथा दीप्तिमान होता है.
स्कन्दपुराण माहेश्वरखण्ड-केदारखण्ड के अनुसार
"ये दीपमालां कुर्वंति कार्तिक्यां श्रद्धयान्विताः॥
यावत्कालं प्रज्वलंति दीपास्ते लिंगमग्रतः॥
तावद्युगसहस्राणि दाता स्वर्गे महीयते॥"
अर्थात जो कार्तिक मास की रात्रि में श्रद्धापूर्वक शिवजी के समीप दीपमाला समर्पित करता है, उसके चढ़ाये गए वे दीप शिवलिंग के सामने जितने समय तक जलते हैं, उतने हजार युगों तक दाता स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है.
लिंगपुराण के अनुसार
"कार्तिके मासि यो दद्याद्धृतदीपं शिवाग्रतः.
संपूज्यमानं वा पश्येद्विधिना परमेश्वरम्.."
अर्थात जो कार्तिक महिने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है अथवा विधान के साथ पूजित होते हुए परमेश्वर का दर्शन श्रद्धापूर्वक करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है.
"यो दद्याद्धृतदीपं च सकृल्लिंगस्य चाग्रतः.
स तां गतिमवाप्नोति स्वाश्रमैर्दुर्लभां रिथराम्.."
अर्थात जो शिव के समक्ष एक बार भी घृत का दीपक अर्पित करता है, वह वर्णाश्रमी लोगों के लिये दुर्लभ स्थिर गति प्राप्त करता है.
"आयसं ताम्रजं वापि रौप्यं सौवर्णिकं तथा.
शिवाय दीपं यो दद्याद्विधिना वापि भक्तितः..
सूर्यायुतसमैः श्लक्ष्णैर्यानैः शिवपुरं व्रजेत्.."
अर्थात जो विधान के अनुसार भक्तिपूर्वक लोहे, ताँबे, चाँदी अथवा सोने का बना हुआ दीपक शिव को समर्पित है, वह दस हजार सूर्यों के सामान देदीप्यमान विमानों से शिवलोक को जाता है.
अग्निपुराण के 200वे अध्याय के अनुसार
जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में एक वर्ष दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है.
कार्तिक में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है.
दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही.
दीपदान से आयु और नेत्रज्योति की प्राप्ति होती है.
दीपदान से धन और पुत्रादि की प्राप्ति होती है.
दीपदान करने वाला सौभाग्ययुक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है.
एकादशी को दीपदान करने वाला स्वर्गलोक में विमान पर आरूढ़ होकर प्रमुदित होता है.
पाँच दिन जरूर जरूर करें दीपदान
अगर किसी विशेष कारण से कार्तिक में प्रत्येक दिन आप दीपदान करने में असमर्थ हैं तो पांच विशेष दिन जरूर करें.
पद्मपुराण, उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पाँच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं:
"कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च
पुण्यानि तेषु यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्"
अर्थात बेटा! विशेषतः कृष्णपक्ष में 5 दिन ( रमा एकादशी से दीपावली तक ) बड़े पवित्र हैं. उनमें जो भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है.
"तस्माद्दीपाः प्रदातव्या रात्रावस्तमते रवौ
गृहेषु सर्वगोष्ठेषु सर्वेष्वायतनेषु च
देवालयेषु देवानां श्मशानेषु सरस्सु च
घृतादिना शुभार्थाय यावत्पंचदिनानि च
पापिनः पितरो ये च लुप्तपिंडोदकक्रियाः
तेपि यांति परां मुक्तिं दीपदानस्य पुण्यतः"
रात्रि में सूर्यास्त हो जाने पर घर में, गौशाला में, देववृक्ष के नीचे तथा मन्दिरों में दीपक जलाकर रखना चाहिए. देवताओं के मंदिरों में, शमशान में और नदियों के तट पर भी अपने कल्याण के लिए घृत आदि से पाँच दिनों तक दीप जलाने चाहिए. ऐसा करने से जिनके श्राद्ध और तर्पण नहीं हुए हैं, वे पापी पितर भी दीपदान के पुण्य से परम मोक्ष को प्राप्त होते हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-