जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का फैसला गलत, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप से इनकार, क्यों?

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का फैसला गलत, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप से इनकार, क्यों?

प्रेषित समय :16:19:50 PM / Mon, Oct 28th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज
सुप्रीम कोर्ट ने ’द कश्मीरवाला’ के एडिटर पीरजादा शाह फहद को जमानत देने के जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के फैसले को तो गलत माना, लेकिन इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
खबरों की मानें तो.... केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर बनाम पीरजादा शाह फहद केस में पीरजादा शाह फहद पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
इस मामले में न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ का कहना था कि- जमानत आदेश रद्द नहीं किया जा रहा है, क्योंकि पत्रकार लगभग सालभर से जमानत पर बाहर है और उसके खिलाफ मुकदमा पहले ही शुरू हो चुका है.
यह तथ्य अलग है कि- सर्वोच्च अदालत यूएपीए मामलों में जमानत कब दी जा सकती है, इस संबंध में हाईकोर्ट की व्याख्या से सहमत नहीं थी.
अदालत का यह भी कहना था कि- हाईकोर्ट का फैसला बाध्यकारी कानूनी मिसालों को ध्यान में रखे बिना पारित किया गया, जो कानूनी नजरिए से गलत था.
अदालत ने 14 अक्टूबर 2024 के अपने आदेश में यह भी कहा कि- यह कहना पर्याप्त है कि संविधान पीठों के पूर्वोक्त निर्णयों को ध्यान में रखते हुए, यह निर्देश दिया जाता है कि आरोपित निर्णय और आदेश को किसी अन्य मामले में मिसाल के तौर पर उद्धृत नहीं किया जाएगा.
खबरों पर भरोसा करें तो.... ’द कश्मीरवाला’ के एडिटर पीरजादा शाह फहद पर कथित तौर पर हिंसा भड़कानेवाले और अलगाववादी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले लेख प्रकाशित करने के लिए यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था.
इसके बाद, पिछले साल नवंबर में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी और यूएपीए और आईपीसी के तहत उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों में से कुछ को खारिज भी कर दिया था.
खबरों के अनुसार.... अपने जमानत आदेश में, हाई कोर्ट ने शेंक बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका में संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के 1919 के फैसले पर फोकस किया था, जिसमें कहा गया था कि यूएपीए के तहत आरोपी को जमानत दी जा सकती है, अगर वह समाज के लिए कोई- स्पष्ट और वर्तमान खतरा, पेश नहीं करता है.
इस पर जम्मू-कश्मीर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का सुप्रीम कोर्ट में कहना था कि- बाबूलाल पराटे बनाम महाराष्ट्र राज्य (1961), मद्रास राज्य बनाम वीजी रो (1952), अरूप भुयान बनाम असम राज्य (2023) आदि अनेक पुराने फैसलों में “स्पष्ट और वर्तमान खतरे“ के सिद्धांत को पहले ही खारिज किया जा चुका है, अदालत ने इन तथ्यों को स्वीकार तो किया, लेकिन जमानत आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-