डॉ अशोक कुमार वर्मा
यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसका नाम कांता प्रसाद है. कांता प्रसाद बहुत ही निर्धन व्यक्ति है और गाँव में रहता है. काम की खोज में वह अपने परिवार को लेकर शहर आ जाता है. बड़ी कठिनाई से उसे एक कारखाने में काम मिल जाता है. दिन रात वह परिश्रम करता है और अपने परिवार का भरण पोषण करता है. उसके चार पुत्रियां और एक पुत्र है जो शहर के एक सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं. शहर की एक बस्ती में एक किराए के घर में रहना आरम्भ करता है. दो दिन बाद ही दिवाली है और आज कांता प्रसाद को वेतन मिला है. चलते चलते कांता प्रसाद भीतर से थोड़ा प्रसन्न है और स्वयं से कह रहा है "आज बच्चों के लिए कुछ मिठाई लेकर चलता हूँ. बहुत दिनों से बच्चों ने कुछ मीठा नहीं खाया है." वो चलते चलते हिसाब लगा रहा है कि "दूध और राशन के साथ घर का किराया देने के पश्चात मेरे पास थोड़े रुपए बचेंगे. क्यों न बच्चों के लिए इस दीवाली पर कुछ नए कपडे भी खरीद लिए जाएँ". कांता प्रसाद पैदल चलता हुआ यह सोच ही रहा है कि अकस्मात उसका पाँव फिसल जाता है और वह धड़ाम से सड़क पर गिरकर बेहोश हो जाता है. हुआ यूँ कि सड़क पर एक रेहड़ी पर कुछ बच्चे केले लेकर खा रहे होते हैं और छिलके सड़क पर ही फेंक देते हैं. अक्समात कांता प्रसाद का पाँव एक छिलके पर पड़ता है और वह फिसल जाता है.थोड़ी ही देर में वहां पर लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है और भीड़ में एक व्यक्ति 112 पर फोन करके पुलिस को सूचित करता है. कुछ ही क्षणों में पुलिस वहां पहुँच जाती है. पुलिस बिना देरी के कांता प्रसाद को अस्पताल पहुंचाती है. कांता प्रसाद अभी भी बेहोश हैं.
उधर घर में कांता प्रसाद की पत्नी और बच्चे उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं. सबसे बड़ी बेटी पायल कहती है, मां, आज बापू को बहुत देर हो गई. अभी तक नहीं आए. माँ कहती है, आते ही होंगे, न जाने आज कहां रह गए. उधर सबसे छोटा 4 वर्षीय लड़का राघव माँ से लिपटकर तुतलाते हुए कहता है, "माँ आद मैं भी बाऊ ते सात बाहर दाऊंगा. बातें करते करते रात हो जाती है. बच्चे थककर सो जाते हैं. कांता प्रसाद की पत्नी रानी चिंता में इधर उधर घूम रही है और न जाने कब वह थककर बैठ जाती है और सो जाती है.
इधर अस्पताल में भर्ती कांता प्रसाद को आधी रात के बाद होश आता है और घबराकर उठने का प्रयास करता है लेकिन टांग टूटने के कारण ठीक से नहीं बैठ पाता. उसके पास नर्स आती है और बताती है कि पुलिस उसे यहां लेकर आई थी. एक ही क्षण में उसे सब स्मरण हो आता है. सारी घटना उसे स्मरण हो आती है. वह चिल्लाकर कहता है, मुझे घर जाना है, कल दीवाली है. लेकिन वह उठ नहीं पाता.
एक बच्चे की लापरवाही से केले के छिल्के ने उसके जीवन में विष घोल दिया. उसके और उसके परिवार के सारे सपने चकनाचूर हो गए. यह दीवाली उसके और उसके परिवार के लिए संकट बनकर आई. न जाने कितने महीने वह बिस्तर में रहेगा. उसका उपचार कैसै होगा. परिवार का भरण पोषण कौन करेगा.
केले के छिल्के ने उसके जीवन को कष्टों में डाल दिया. कौन है इसका उतरदाई.....