जन्म कुण्डली में ग्रह का 'कमजोर होना' और 'पीड़ित होना', ग्रहों की दो अलग-अलग अवस्थाएं हैं. कमजोर ग्रह अपना फल (शुभ/अशुभ) देने में सक्षम नहीं होता, जबकि पीड़ित ग्रह अपने फल (शुभ/अशुभ) में, कष्ट और नकारात्मकता मिश्रित करके, पूर्ण फल देने में सक्षम हो सकता है
थोड़ा और आसान भाषा में समझें तो,
यदि कोई कुण्डली का शुभ ग्रह, उदाहरण के लिए लग्नेश को लेते हैं. यदि कुण्डली में लग्नेश कमजोर हो, तो जातक को स्वास्थ्य समस्याएं, दुर्घटना, कमजोर इम्यून सिस्टम, जीवन में अत्यधिक संघर्ष (जो काम आमतौर पर सबका आसानी से हो जाता है, उसके लिए भी जातक को आवश्यकता से अधिक जद्दोजहद करना पड़ता है) ये होते हैं कमजोर लग्नेश के लक्षण.
जबकि अगर कुंडली में लग्नेश पीड़ित हो, किन्तु बलवान हो, तब जातक के जीवन में सबकुछ प्राप्त हो तो जाता है, लेकिन उसे खोने का डर हमेशा बना रहता है. अपनी उपलब्धियों पर जातक को कोई ख़ुशी नहीं मिल पाती. बाहरी दृष्टि से जातक संपन्न किन्तु अंदर से व्यग्रता का शिकार होता है.
ठीक ऐसे ही अगर कुंडली का मारक अथवा अकारक ग्रह कमजोर हो, तो वह आपको क्षति पहुंचाने में, पूर्णतः सक्षम नहीं होता. जबकि पीड़ित अकारक ग्रह क्षति भी क्रुरता से पहुंचाता है.
उदाहरण के लिए यदि कुंडली का अष्टमेश (8th house lord) (जो कि सामान्यतया कुंडली के लिए, अशुभ फलों का प्रतिनिधित्व करता है, जबरदस्त नुकसान, मृत्यु तुल्य कष्ट, दुर्घटना आदि का सूचक है. कमजोर हो तो, यह संबंधित भाव से अशुभ फल देने में पूर्णतः सक्षम नहीं होगा, अर्थात इससे होने वाले कष्ट फलों में कमी आएगी. जबकि यही अष्टमेश पीड़ित हो तब यह अपनी अशुभता कई गुना बढ़ा देता हैं.
उदाहरण के लिए यदि कमजोर अष्टमेश (8th house Lord) का संबंध, कुंडली के पंचम भाव (5th house) से बने, तब जातक को प्रेम संबंधों, संतान आदि का कष्ट देता है.
उदाहरण के लिए प्रेम संबंधों की तासीर को लेते हैं..
यदि कमजोर अष्टमेश (8th house Lord) का संबंध कुंडली के 5वें भाव से हो तो, जातक के प्रेम संबंध तो होते हैं किन्तु उसमें अनिश्चितता बनी रहती है, विवाद और मानसिक क्लेशपूर्ण संबंध होता है.
किन्तु यही अष्टमेश (8th house Lord) पीड़ित अवस्था में यदि 5वें भाव से संबंध बनाए, तब यह संबंध केवल अनिश्चितता या मानसिक क्लेश तक सीमित नहीं होता, बल्कि ऐसे जातक का प्रेमी/प्रेमिका उसपर जानलेवा हमला, भयंकर चोट, जबरदस्त बदनामी आदि करते हैं.प्रेम संबंधों में बार-बार भयंकर दु:ख-संताप आदि का सामना करना पड़ता.
संतानोत्पत्ति का उदाहरण यदि इसमें लिया जाए तो, कमजोर अष्टमेश का 5वें भाव से संबंध होने पर, जातिका को गर्भ धारण (conceive) करने में समस्या आती है, लेकिन यही अष्टमेश यदि पीड़ित अवस्था में 5वें भाव को प्रभावित करे, तब संतान दे-देकर मार देता है. यही है फलों में क्रुरता मिश्रित करना.
निष्कर्षत: :- कुंडली में कारक और योग कारक ग्रहों का बली होना, जीवन में पूर्णतः शुभत्व को प्रदान करता है. इनका कमजोर होना शुभत्व में कमी करता है, किन्तु स्वयं के कारण अशुभता नहीं देते.
अकारक अथवा मारक ग्रहों का निर्बल होना, उनके द्वारा दिए जाने वाले अशुभता में कमी लाता है, अतः यह एक शुभ स्थिति होती है. जातक निर्विरोध तरक्की करने में सफल होता है.
वहीं कारक अथवा अकारक, किसी भी ग्रह का पीड़ित होना जीवन में कष्ट पैदा करके चुनौतिपूर्ण स्थिति उपस्थित करते हैं.