-प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी
कुछ सवालों के जवाब कर देंगे आपकी हर शंका का समाधान!
* शबरी ने किस विधि से अर्पित किया था भगवान को नैवेद्य?
* सुदामा ने भगवान को कितनी कीमती भेंट दी थी?
* प्रहलाद ने किस अनुष्ठान से भगवान को पुकारा था?
* द्रौपदी ने किस भाषा में श्रीकृष्ण से प्रार्थना की थी?
* मीरा, भगवान के किस स्तोत्र का पाठ करती थी?
जितने भी धर्मग्रंथ हैं उनमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि भगवान की कृपा हमेशा उन भक्तों पर रही जिन्होंने भगवान को मन से पूजा, भगवान पर पूर्ण विश्वास किया. बावजूद इसके, लोग दिखावे की भक्ति में उलझ जाते हैं. जिस तरह एक मां बच्चे के मात्र रोने से ही उसकी जरूरत जान लेती है वैसे ही भगवान सच्चे मन की पुकार सुन लेते हैं. उन्हें किसी विधि-विधान की जरूरत नहीं है!
जो पूजा पद्धति बोझ लगे, समझ में नहीं आए, उसे अपनाने का कोई अर्थ नहीं है.
हां! अगर पूजा, अनुष्ठान, यज्ञ आदि से मन को प्रसन्नता मिल रही हो, शांति मिल रही हो तो अवश्य करें.
जिस भी स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं, उसका भावार्थ अवश्य समझें तभी पूजा का वास्तविक आनंद आएगा!
अपने मन के भाव को व्यक्त करनेवाली अपनी भाषा में की गई प्रार्थना सर्वश्रेष्ठ होती है!