बंगाल में भूमि अधिग्रहण के कारण रेलवे परियोजनाओं में हो रही देरी, रेल मंत्रालय ने दी जानकारी

बंगाल में भूमि अधिग्रहण के कारण रेलवे परियोजनाओं में हो रही देरी

प्रेषित समय :16:07:07 PM / Sat, Dec 21st, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

कोलकाता. रेल मंत्रालय ने बताया कि भूमि अधिग्रहण में चुनौतियों के कारण पश्चिम बंगाल में कई रेलवे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में देरी हुई है. उन्होंने कहा कि फंडिंग में पर्याप्त वृद्धि के बावजूद परियोजनाओं की गति धीमी रही. 2009 से 2014 के दौरान 4,380 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जो 2024-25 में बढ़कर 13,941 करोड़ हो गए. एक अप्रैल तक बंगाल में 43 रेलवे परियोजनाएं हैं, जिसमें पूर्वी, दक्षिण पूर्वी और पूर्वोत्तर में नई लाइनें और आधुनिकीकरण के प्रयास शामिल हैं.

मंत्रालय ने बताया कि भूमि अधिग्रहण एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है. परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 3,040 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता है, लेकिन केवल 640 हेक्टेयर जमीन ही दिया गया है. परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अभी भी 2,400 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता है. रेलवे अपनी परियोजनाओं के लिए राज्य सरकारों के माध्यम से भूमि अधिग्रहण करता है.

रेलवे ने बताया कि भूमि अधिग्रहण चुनौती के कारण देरी का सामना करने वाले कुछ प्रमुख परियोजनाओं के नाम- नबद्वीप धाम नई लाइन (10 किमी); इसके लिए 106.86 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता है, लेकिन 0.17 हेक्टेयर अधिग्रहीत किया गया है. चंदनेश्वर-जलेश्वर नई लाइन (41 किमी): 158 हेक्टेयर की आवश्यकता है, लेकिन आज तक इसके लिए कोई जमीन अधिग्रहित नहीं की गई.

नैहाटी-राणाघाट तीसरी लाइन (36 किमी): 87.83 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता है, लेकिन इसके लिए केवल 0.09 हेक्टेयर अधिग्रहित किया गया. बालुरघाट-हिल्ली नई लाइन (30 किमी): 156.38 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता है, लेकिन 67.38 हेक्टेयर अधिग्रहीत किया गया. सैंथिया (5 किमी) और सीतारामपुर (7 किमी) में बाईपास: 22.28 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता है, लेकिन इसके लिए 2.22 हेक्टेयर का ही अधिग्रहण किया जा सका है.

रेलवे परियोजनाओं का पूरा होना विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है. इसमें राज्य सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण, वन मंजूरी, उपयोगिताओं का स्थानांतरण, भूगर्भीय और स्थलाकृतिक स्थितियां, कानून और व्यवस्था की स्थिति शामिल हैं. इन चुनौतियों से निपटने के लिए मंत्रालय ने कई उपाय निकाले, जिसमें परियोजनाओं को प्राथमिकता देना, प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के लिए धन आवंटन बढ़ाना, प्रगति की बारीकी से निगरानी करना और राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों के साथ नियमित रूप से समन्वय करना शामिल है. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-