सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- बिना कारण बताए गिरफ्तार करना अवैध, संविधान का उल्लंघन है

सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- बिना कारण बताए गिरफ्तार करना अवैध, संविधान का उल्लंघन है

प्रेषित समय :12:39:38 PM / Sat, Feb 8th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराना मात्र एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अनिवार्य संवैधानिक दायित्व है. न्यायालय ने यह भी कहा कि इस प्रावधान का पालन न करने पर गिरफ्तारी को गैरकानूनी माना जाएगा.

जस्टिस ए.एस. ओका और जस्टिस एन.के. सिंह की खंडपीठ ने हरियाणा पुलिस द्वारा की गई एक गिरफ्तारी को अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन मानते हुए अवैध करार दिया और आरोपी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया. पीठ ने जोर देकर कहा कि अनुच्छेद 22 को संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों के अध्याय में शामिल किया गया है. इसलिए, यह हर गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है कि उसे जल्द से जल्द उसकी गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित किया जाए. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी के कारणों की सूचना गिरफ्तारी के तुरंत बाद दी जानी चाहिए, और ऐसा न करना अनुच्छेद 22(1) के तहत दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा.

पीठ ने अपने फैसले में कहा, अनुच्छेद 22 संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा है. इसलिए, प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को यह मौलिक अधिकार प्राप्त है कि उसे गिरफ्तारी के कारणों के बारे में यथाशीघ्र सूचित किया जाए. ऐसा न होने पर, यह अनुच्छेद 22(1) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा और गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी.
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी न केवल गिरफ्तार व्यक्ति को, बल्कि उसके द्वारा नामित दोस्तों, रिश्तेदारों या अन्य व्यक्तियों को भी दी जानी चाहिए. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वे कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से गिरफ्तारी को चुनौती देकर उसकी रिहाई के लिए प्रयास कर सकें.

सुप्रीम कोर्ट ने पंकज बंसल बनाम भारत सरकार मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि उसने पहले भी सुझाव दिया था कि गिरफ्तारी के कारणों को लिखित रूप में देना सबसे उचित और आदर्श तरीका है. हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो गिरफ्तारी के कारणों को लिखित रूप में देना अनिवार्य करता हो, लेकिन लिखित रूप में जानकारी देने से भविष्य में किसी भी विवाद की संभावना को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है. जस्टिस ओका ने टिप्पणी की, भले ही गिरफ्तारी के कारणों को लिखित रूप में देना आवश्यक नहीं है, लेकिन ऐसा करने से विवाद खत्म हो जाएगा. पुलिस को हमेशा अनुच्छेद 22 की आवश्यकताओं का सख्ती से पालन करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई गिरफ्तारी अनुच्छेद 22(1) का अनुपालन न करने के कारण अवैध है, तो मजिस्ट्रेट का यह कर्तव्य है कि वह गिरफ्तारी की वैधता की जांच करे. न्यायालयों को मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, और अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन होने पर न्यायालय आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश देगा. पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन जमानत देने का एक आधार होगा, भले ही कानून के तहत जमानत देने पर कोई प्रतिबंध हो.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-