अभिमनोज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की कानूनी लड़ाई में देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि- पारिवारिक अदालतों की सुस्ती सुप्रीम आदेशों की अवहेलना है, यदि संविधान की शपथ लेकर बैठे न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानेंगे तो न्याय व्यवस्था कैसे बचेगी?
इससे पीड़ित महिलाओं का गरिमामयी जीवन प्रभावित हो रहा है!
खबरें हैं कि.... न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की अदालत ने इस सख्त टिप्पणी के साथ एक पति की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी, इतना ही नहीं, मुख्य न्यायाधीश से पारिवारिक अदालतों की देरी का संज्ञान लेने का अनुरोध किया है.
खबरों की मानें तो.... अदालत का कहना है कि- यह समझ से परे है कि प्रशिक्षित न्यायिक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक न्यायालय के आदेशों का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं?
न्यायिक निर्देश कोई सलाह नहीं, बल्कि बाध्यकारी आदेश होते हैं!
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से रजनीश बनाम नेहा के फैसलों का जिक्र कर कहा कि भरण-पोषण के मामले में पति-पत्नी की आय, संपत्ति और दायित्व का हलफनामा लेकर ही गुजारा-भत्ता तय किया जाना चाहिए, लेकिन प्रदेश की अदालतें न इस प्रक्रिया का पालन कर रही हैं और न ही जिम्मेदारी निभा रही हैं.
खबरों पर भरोसा करें तो.... अदालत का साफ कहना है कि- यह समझ से परे है कि प्रशिक्षित जज सुप्रीम कोर्ट जैसे सांविधानिक न्यायालय के आदेशों की अनदेखी क्यों कर रहे हैं?
न्यायिक आदेश कोई सलाह नहीं है, उनका पालन बाध्यकारी होता है, लिहाजा यह केवल वैधानिक संकट नहीं है, बल्कि नैतिक विफलता भी है!
इलाहाबाद हाईकोर्ट: पारिवारिक अदालतें नहीं मान रही सुप्रीम आदेश, कैसे बचेगी न्याय व्यवस्था?
प्रेषित समय :21:07:35 PM / Mon, May 26th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर