अभिमनोज
इंदौर के 'सोनम कांड' ने देश भर में सनसनी फैला दी है. इस मामले में हनीमून के दौरान पति की हत्या का आरोप पत्नी सोनम रघुवंशी और उसके सहयोगियों पर लगा है. यह घटनाक्रम न केवल एक जघन्य अपराध को उजागर करता है, बल्कि साइबर कानून और डिजिटल फोरेंसिक के महत्व को भी रेखांकित करता है.
'सोनम कांड' एक जटिल आपराधिक मामला है जिसमें मानवीय संबंधों की उलझनें और आधुनिक अपराधों के डिजिटल आयाम दोनों शामिल हैं. यह मामला हमें याद दिलाता है कि अपराध अब केवल भौतिक दुनिया तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनके डिजिटल पदचिह्न भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं. साइबर कानून और डिजिटल फोरेंसिक एजेंसियां, जैसे कि सीबीआई और राज्य पुलिस बल, इन डिजिटल साक्ष्यों को उजागर करने और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इस मामले में भी, यह डिजिटल पदचिह्न ही होंगे जो साजिश के हर धागे को खोलकर सच्चाई सामने लाएंगे और भविष्य में ऐसे अपराधों को रोकने के लिए आवश्यक कानूनी और तकनीकी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण सबक प्रदान करेंगे. साथ ही, यह संगठित अपराध के बदलते स्वरूप और साइबर स्पेस में उसकी बढ़ती पहुंच पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है
एक आपराधिक षड्यंत्र का ताना-बाना
इंदूर के राजा रघुवंशी और सोनम रघुवंशी की शादी 11 मई को हुई थी. हनीमून के लिए वे मेघालय गए थे. 23 मई को वे एक होमस्टे से निकले और 2 जून को राजा का शव वेई सावदोंग झरने के पास एक खाई में क्षत-विक्षत हालत में मिला. शुरुआती जांच में यह डकैती का मामला लग रहा था, लेकिन पुलिस की गहन छानबीन और सोनम के गाजीपुर में सरेंडर करने के बाद चौंकाने वाले खुलासे हुए. पुलिस के अनुसार, सोनम ने ही अपने पति की हत्या की साजिश रची थी और इसके लिए उसने कॉन्ट्रैक्ट किलर (हत्यारों) को काम पर रखा था. इस मामले में सोनम, उसका कथित प्रेमी राज कुशवाहा और तीन अन्य हत्यारे गिरफ्तार किए गए हैं. पुलिस का दावा है कि हत्या एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा थी, जिसमें पारिवारिक संपत्ति विवाद और सोनम के कथित प्रेम संबंध भी शामिल थे.
साइबर कानून की दृष्टि से घटनाक्रम
'सोनम कांड' में सीधे तौर पर साइबर अपराध का कोई स्पष्ट मामला नहीं है, लेकिन इसमें कई ऐसे डिजिटल पदचिह्न हैं जो भारतीय साइबर कानून, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) और भारतीय न्याय संहिता (जो भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान ले रही है) के तहत जांच का विषय बन सकते हैं.
डिजिटल संचार और षड्यंत्र: पुलिस सूत्रों के अनुसार, सोनम और उसके भाई गौरव, साथ ही सोनम और उसके कथित प्रेमी राज कुशवाहा के बीच लगातार फोन पर संपर्क था. कॉल रिकॉर्ड, टेक्स्ट मैसेज और चैट हिस्ट्री जैसे डिजिटल संचार के माध्यम से षड्यंत्र का खुलासा हुआ है. भारतीय न्याय संहिता की धाराएं जो आपराधिक षड्यंत्र से संबंधित हैं, वे इन डिजिटल साक्ष्यों के आधार पर लागू होंगी.
स्थान डेटा (Location Data): राजा और सोनम के यात्रा मार्गों, होटल बुकिंग और ठहरने की व्यवस्था में बदलाव ने पुलिस का ध्यान खींचा. जीपीएस डेटा, मोबाइल टावर लोकेशन और होटल के डिजिटल रिकॉर्ड इस मामले में महत्वपूर्ण साक्ष्य बन सकते हैं. साइबर कानून के तहत, ऐसे डेटा को एकत्र करना और उसका विश्लेषण करना कानूनी रूप से मान्य है, बशर्ते उचित प्रक्रिया का पालन किया गया हो.
वित्तीय लेनदेन (Financial Transactions): बताया जा रहा है कि राज कुशवाहा ने हत्यारों को यात्रा और अन्य खर्चों के लिए पैसे दिए थे. ऑनलाइन वित्तीय लेनदेन (जैसे यूपीआई, नेट बैंकिंग आदि) के रिकॉर्ड डिजिटल फोरेंसिक के माध्यम से निकाले जा सकते हैं और यह साजिश के वित्तपोषण को साबित करने में महत्वपूर्ण होंगे.
सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्रोफाइल: यद्यपि सीधे तौर पर इसका उल्लेख नहीं है, लेकिन यदि सोनम और उसके सहयोगियों ने किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई ऐसी सामग्री साझा की हो जिससे साजिश या इरादे का पता चलता हो, तो वह भी साइबर कानून के तहत साक्ष्य के रूप में मान्य होगी.
डिजिटल फोरेंसिक के तथ्य: अदृश्य पदचिह्नों का अनावरण
डिजिटल फोरेंसिक 'सोनम कांड' की गुत्थी सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यह तकनीक डिजिटल उपकरणों से इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य एकत्र करने, संरक्षित करने, विश्लेषण करने और प्रस्तुत करने पर केंद्रित है.
मोबाइल फोन फोरेंसिक: सोनम और अन्य आरोपियों के मोबाइल फोन डिजिटल फोरेंसिक जांच के केंद्र में हैं. इसमें कॉल डिटेल्स रिकॉर्ड (CDRs), SMS, WhatsApp चैट, अन्य मैसेजिंग ऐप की चैट, ब्राउजिंग हिस्ट्री, जीपीएस डेटा, और यहां तक कि डिलीट किए गए डेटा को भी रिकवर किया जा सकता है. यह डेटा आरोपियों के बीच के संबंध, उनकी योजना और घटना के समय उनकी वास्तविक उपस्थिति को स्थापित करने में मदद करेगा.
कंप्यूटर और लैपटॉप फोरेंसिक: यदि किसी कंप्यूटर या लैपटॉप का उपयोग किसी भी प्रकार के संचार, योजना बनाने या वित्तीय लेनदेन के लिए किया गया है, तो हार्ड ड्राइव का फोरेंसिक विश्लेषण महत्वपूर्ण डेटा जैसे ईमेल, डॉक्यूमेंट्स, और इंटरनेट गतिविधियों को उजागर कर सकता है.
सीसीटीवी फुटेज विश्लेषण: होटल, यात्रा मार्गों और आसपास के क्षेत्रों से प्राप्त सीसीटीवी फुटेज का डिजिटल फोरेंसिक विश्लेषण किया जाएगा ताकि आरोपियों की पहचान, उनकी हरकतों और समय-रेखा की पुष्टि की जा सके. ड्रोन का उपयोग कर राजा के शव को खोजने में भी डिजिटल तकनीक का प्रयोग हुआ, जो दूरस्थ क्षेत्रों में फोरेंसिक जांच की एक नई दिशा दिखाता है.
क्लाउड फोरेंसिक: यदि आरोपियों ने अपने डेटा को क्लाउड स्टोरेज (जैसे गूगल ड्राइव, आईक्लाउड) में संग्रहीत किया है, तो क्लाउड फोरेंसिक के माध्यम से भी महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं, बशर्ते कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया हो.
नेटवर्क फोरेंसिक: इंटरनेट सेवा प्रदाताओं से प्राप्त नेटवर्क लॉग्स भी यह स्थापित करने में मदद कर सकते हैं कि कौन से डिवाइस किस समय किस स्थान से इंटरनेट से जुड़े थे.
मिलती-जुलती घटनाएं
'सोनम कांड' भले ही एक व्यक्तिगत अपराध के रूप में सामने आया हो, लेकिन जिस तरह से इसमें हत्यारों को किराए पर लिया गया है, वह संगठित अपराध के तत्वों की ओर इशारा करता है. दुनिया भर में ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जहां साइबर तकनीक का इस्तेमाल संगठित अपराधों को अंजाम देने या उन्हें छिपाने के लिए किया जाता है:
डार्क वेब और कॉन्ट्रैक्ट किलिंग: डार्क वेब पर 'किराए पर हत्यारे' (hitmen for hire) की सेवाएं देने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं. हालांकि, इनमें से अधिकांश धोखाधड़ी होते हैं, लेकिन कुछ वास्तविक मामलों की खबरें भी सामने आई हैं. इन मामलों में भुगतान अक्सर क्रिप्टोकरेंसी में किया जाता है, जिससे लेनदेन को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है. यदि 'सोनम कांड' में हत्यारों को ऑनलाइन माध्यम से संपर्क किया गया होता, तो यह साइबर संगठित अपराध का एक स्पष्ट उदाहरण होता.
रैंसमवेयर और जबरन वसूली: कई संगठित साइबर अपराध समूह रैंसमवेयर हमलों में शामिल होते हैं, जहां वे कंप्यूटर सिस्टम को एन्क्रिप्ट कर लेते हैं और डेटा को जारी करने के लिए फिरौती मांगते हैं. ये समूह अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करते हैं और क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करते हैं.
मानव तस्करी और ड्रग्स व्यापार में तकनीक का उपयोग: संगठित अपराध समूह अक्सर सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स का उपयोग मानव तस्करी और अवैध ड्रग्स के व्यापार के लिए करते हैं. वे पीड़ितों को आकर्षित करने, परिवहन की व्यवस्था करने और वित्तीय लेनदेन को छिपाने के लिए डिजिटल उपकरणों का सहारा लेते हैं.
वित्तीय धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग: संगठित अपराधी फ़िशिंग, मैलवेयर और अन्य साइबर हमलों के माध्यम से बड़ी मात्रा में धन चुराते हैं और फिर जटिल डिजिटल मनी लॉन्ड्रिंग योजनाओं का उपयोग करके उसे वैध बनाते हैं. इसमें अक्सर क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज और डार्क वेब मार्केटप्लेस शामिल होते हैं.
क्या ऑर्गनाइज्ड अपराध को लेकर ऐसी सोच?
हाँ, 'सोनम कांड' जैसे मामलों में, जहां "कॉन्ट्रैक्ट किलिंग" का पहलू सामने आता है, यह संगठित अपराध की व्यापक सोच को जन्म देता है. भले ही यह मामला किसी बड़े अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक सिंडिकेट से सीधा जुड़ा न हो, लेकिन इसमें "आपराधिक सेवा" की अवधारणा निहित है, जहाँ हत्यारों को एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए "किराए पर" लिया जाता है.
संगठित अपराध (Organized Crime) की पहचान कुछ विशिष्ट विशेषताओं से होती है:
संरचना: इसमें एक पदानुक्रमित या नेटवर्क-आधारित संरचना होती है.
स्थायित्व: यह एक बार का अपराध न होकर, निरंतर आपराधिक गतिविधियों में संलग्न होता है.
हिंसा का उपयोग/धमकी: अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा का प्रयोग या उसकी धमकी.
लाभ का उद्देश्य: मुख्य उद्देश्य वित्तीय या अन्य भौतिक लाभ प्राप्त करना.
बाजार नियंत्रण: अवैध गतिविधियों के एक विशेष क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करना.
'सोनम कांड' में, यदि हत्यारों का एक ऐसा समूह था जो नियमित रूप से ऐसी सेवाएं प्रदान करता है (जैसा कि कई संगठित अपराध समूह करते हैं), तो यह संगठित अपराध के दायरे में आ सकता है. साइबर तकनीक ने संगठित अपराधों को और अधिक गुमनाम और विश्वव्यापी बना दिया है, जिससे अपराधियों के लिए सीमाओं के पार काम करना आसान हो गया है.
नोट: मामला अभी जांच के अधीन है, इसमें भविष्य में और खुलासे हो सकते हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-




