ओटीपी न अलर्ट, और खाता हो गया साफ, डिजिटल ठगी के नए दौर में रामपुकार की कहानी

ओटीपी न अलर्ट, और खाता हो गया साफ, डिजिटल ठगी के नए दौर में रामपुकार की कहानी

प्रेषित समय :21:30:03 PM / Wed, Aug 6th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज
साइबर ठगी का चेहरा दिन-ब-दिन और रहस्यमय होता जा रहा है. अब न तो ओटीपी की जरूरत रह गई है, न ही धोखेबाजों को कोई कॉल या SMS करने की ज़रूरत पड़ती है—और रकम लाखों में पार हो जाती है. रामपुकार सिंह जैसे आम नागरिक आज डिजिटल बैंकिंग के उस अंधेरे गलियारे में फंसते जा रहे हैं, जहां न तो कोई अलार्म बजता है, न ही सिस्टम उन्हें आगाह करता है.

 जब सब कुछ चुपचाप होता रहा
बिहार के रामपुकार सिंह, जो कि एसबीआई की कोर्ट कंपाउंड शाखा के खाताधारक हैं, उनके साथ जो हुआ वह किसी साइबर थ्रिलर की कहानी जैसा लगता है. 24 मई से 24 जुलाई 2025 के बीच उनके खाते से एक-एक कर ₹7.62 लाख रुपये निकल गए—और उन्हें भनक तक नहीं लगी.

उन्होंने किसी को ओटीपी नहीं बताया, न ही उन्हें किसी अनजान लिंक पर क्लिक करने की याद है. कोई संदिग्ध कॉल या एसएमएस भी नहीं आया. लेकिन जब 24 जुलाई को वे पैसे निकालने बैंक पहुंचे और पासबुक अपडेट की, तब पता चला कि खाता तो पहले ही खाली हो चुका है.

 जब सिस्टम ही मौन हो जाए
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इतनी बड़ी राशि की ट्रांजैक्शन के बावजूद न बैंक से कोई SMS अलर्ट आया, न ईमेल. बैंक का transaction monitoring system कहाँ था? साइबर पुलिस ने जांच शुरू की है, परंतु ये मामला उस व्यापक चूक को दर्शाता है जो ग्राहक की सुरक्षा और डेटा निगरानी के बीच मौजूद है.

क्या ये कोई SIM स्वैप अटैक था? क्या किसी क्लोन ऐप के ज़रिए मोबाइल एक्सेस लिया गया? या फिर बैंक सर्वर में किसी मालवेयर या एपीआई एक्सप्लॉइट के जरिए सेंध लगाई गई?

इन सवालों के जवाब मिलने तक न सिर्फ रामपुकार बल्कि हजारों और ग्राहकों की नींद उड़ चुकी है.

कोई ट्रेस नहीं, कोई सबूत नहीं
आज की साइबर ठगी "ट्रैडिशनल OTP फ्रॉड" से कहीं आगे बढ़ चुकी है. अब AI और ऑटोमेटेड स्क्रिप्ट्स के जरिए आपकी इंटरनेट बैंकिंग एक्टिविटी पर नजर रखी जा सकती है. की-लॉगिंग सॉफ़्टवेयर से यूजरनेम और पासवर्ड चोरी किया जा सकता है.

रामपुकार के केस में भी यह आशंका है कि उनका इंटरनेट बैंकिंग किसी ट्रोजन वायरस या RAT (Remote Access Tool) के माध्यम से नियंत्रित किया गया हो.

नागरिकों की तैयारी और सिस्टम की जिम्मेदारी
यह स्पष्ट हो गया है कि केवल “किसी को OTP न बताने” से आज की साइबर ठगी से सुरक्षा नहीं मिल सकती. लोगों को मोबाइल, ऐप्स, ब्राउज़र और वाई-फाई तक की साइबर हाइजीन सीखनी होगी.लेकिन क्या जिम्मेदारी सिर्फ आम नागरिक की है?जब बैंक लाखों ग्राहकों से न्यूनतम बैलेंस और ट्रांजैक्शन शुल्क वसूलते हैं, तो क्या उन्हें हाई-लेवल फ्रॉड मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं देना चाहिए? रियल-टाइम फ्रॉड डिटेक्शन एल्गोरिद्म, असामान्य व्यवहार ट्रैकिंग, और प्रॉएक्टिव अलर्ट सिस्टम कहाँ हैं?

क्या राम पुकार को न्याय मिलेगा?
अब जबकि केस साइबर पुलिस के पास है, देखने वाली बात यह है कि क्या Ram Pukar Singh को समय रहते मुआवज़ा मिलेगा? क्या असली दोषी तक पुलिस पहुंच पाएगी?बड़े साइबर मामलों में अक्सर यह देखा गया है कि राशि छोटी-छोटी ट्रांजैक्शनों में क्रिप्टो वॉलेट्स, फर्जी KYC वाले बैंक खातों, या विदेशी पेमेंट गेटवे में ट्रांसफर की जाती है, जिससे जांच बेहद जटिल हो जाती है.रामपुकार सिंह की कहानी अकेली नहीं है. हर दिन देशभर में सैकड़ों ऐसे मामले हो रहे हैं—जिनमें ठगी करने वालों ने तकनीक को पांच कदम आगे कर दिया है.सरकार को चाहिए कि वह आम लोगों के लिए अनिवार्य साइबर साक्षरता अभियान, डिजिटल बूटकैम्प, और बेसिक सुरक्षा ट्रेनिंग शुरू करे. साथ ही, बैंकों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को भी इस लड़ाई में अपनी तकनीकी सुरक्षा को लगातार अपडेट करना होगा.क्योंकि अगर आज नहीं चेते—तो कल शायद अगला खाता आपका होगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-