अभिमनोज
साइबर क्राइम अब सिर्फ फिल्मों की कहानी या बड़े गैंग्स तक सीमित नहीं है—यह हमारे बीच, मोहल्लों और कस्बों के युवा हाथों में पल रहा है. पिछले हफ्ते उत्तराखंड एसटीएफ की कार्रवाई ने इस खतरे को और भी साफ कर दिया है, जहां तीन कम उम्र के युवकों को एक स्कूल के डिजिटल प्लेटफॉर्म हैक करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. यह केस महज़ एक लोकल धोखाधड़ी नहीं, बल्कि साइबर अपराध के बढ़ते वैश्विक नेटवर्क की ओर इशारा करता है.यह घटना एक चेतावनी है कि साइबर क्राइम का खेल अब बड़े माफिया तक सीमित नहीं है, बल्कि गली-मोहल्लों के युवा भी इसका हिस्सा बन रहे हैं. अगर तुरंत और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह अपराध की अगली बड़ी महामारी साबित हो सकती है—जहां अपराधी सिर्फ कीबोर्ड के पीछे छिपा होगा, लेकिन उसका असर असल दुनिया में गहरा होगा.
घटनाक्रम और खुलासा
5 अगस्त 2025 को उत्तराखंड एसटीएफ की साइबर क्राइम टीम ने बरेली (उत्तर प्रदेश) से तीन युवकों—19 वर्षीय मोहम्मद रिजवान, सुदामा दिवाकर और मोहम्मद फ़राज़—को गिरफ्तार किया. इन पर स्कूलपैड डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को हैक करने, अभिभावकों और छात्रों से पैसे ऐंठने का आरोप है. जांच में पता चला कि आरोपियों ने एक फर्जी एप्लिकेशन और भ्रामक मैसेज का इस्तेमाल करके सीधे पेमेंट डिटेल्स और लॉगिन क्रेडेंशियल्स चुरा लिए.
बरामदगी में चार मोबाइल फोन, दो बैंक पासबुक और तीन सिम कार्ड शामिल हैं. शुरुआती पूछताछ से सामने आया है कि ये युवक डार्क वेब और Telegram-आधारित ग्रुप्स से हैकिंग टूल्स और स्क्रिप्ट्स हासिल करते थे.
वैश्विक संदर्भ
सिर्फ भारत ही नहीं, INTERPOL की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन साल में 18–25 साल के साइबर अपराधियों की संख्या में 40% की वृद्धि हुई है. खास बात यह है कि इनमें से आधे से ज्यादा मामले वित्तीय धोखाधड़ी और डेटा चोरी से जुड़े हैं. Cybersecurity Ventures का अनुमान है कि 2030 तक दुनिया में साइबर क्राइम का वार्षिक नुकसान $13 ट्रिलियन तक पहुंच जाएगा, जिसमें एक बड़ा हिस्सा low-skilled लेकिन digitally-empowered युवाओं द्वारा किए गए अपराधों का होगा.
भारत में ट्रेंड
भारत सरकार के National Crime Records Bureau (NCRB) के 2024 डेटा के मुताबिक, देश में दर्ज साइबर अपराध मामलों में 33% आरोपी 16 से 25 वर्ष की उम्र के थे. सबसे तेजी से बढ़ने वाली कैटेगरी में phishing scams, social media account hacking, और online gaming frauds शामिल हैं. NCRB का यह भी कहना है कि कोविड-19 के बाद ऑनलाइन क्लासेस और डिजिटल पेमेंट सिस्टम्स के बढ़ते उपयोग ने इन अपराधों के टारगेट को आसान बना दिया है.
क्यों फंस रहे हैं युवा?
तेज़ मुनाफे का लालच – सोशल मीडिया पर "30 दिन में लाखों कमाओ" जैसी पोस्ट्स युवाओं को खींचती हैं.
कानूनी जानकारी की कमी – ज्यादातर को पता ही नहीं कि डिजिटल धोखाधड़ी पर भी उतनी ही सख्त सजा है जितनी ऑफलाइन अपराधों पर.
सिस्टम की सुस्ती – साइबर क्राइम पुलिस की ट्रेनिंग और टूल्स अभी भी अपराधियों से एक कदम पीछे हैं.
विशेषज्ञों की राय
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स का कहना है कि आज के युवाओं के पास तकनीकी स्किल्स हैं लेकिन ethical boundaries और legal awareness नहीं है. "यह वही स्थिति है जैसे किसी के हाथ में तेज़ रफ्तार वाली कार दे दी जाए, लेकिन ट्रैफिक रूल्स न सिखाए जाएं," एक वरिष्ठ साइबर विश्लेषक ने कहा.
ग्लोबल मैप डेटा से मिलते ट्रेंड्स
ऊपर देखने वाला ग्लोबल साइबरक्राइम हीटमैप दर्शाता है कि साइबर अपराध अमेरिका, यूरोप और चीन जैसे तकनीकी विकसित क्षेत्रों में ज्यादा गहराई से फैला हुआ है, जबकि उच्च-आय और मध्यम-आय वाले देशों में इसकी भारी रफ्तार बढ़ रही है.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट कहती है कि साइबरक्राइम अब अगर एक राष्ट्र होता, तो यह दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाता—और 2024 में इससे होने वाला आर्थिक नुकसान 9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता था.
भारत-मध्य एशिया: ट्रैफिक से फ्रॉड तक
एक रिपोर्ट बताती है कि भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़े साइबर फ्रॉड से ₹11,333 करोड़ (लगभग $1.3 अरब) का नुकसान उठाया है—इसमें से कई मामलों में युवा जालसाज़ी में शामिल थे, कभी-कभी ट्रैफिक रूप में.
I4C (Indian Cyber Crime Coordination Centre) के अनुसार आने वाले साल में भारत को ₹1.2 लाख करोड़ से अधिक का नुकसान हो सकता है—₹11,269 करोड़ का नुकसान पहले ही केवल छह महीनों में हो चुका
युवा पीढ़ी सीधे फ्रॉड से जुड़े हुए हैं
NCRB के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध 32% बढ़े थे—जिसमें ऑनलाइन स्टॉकिंग, पीनोग्राफी और साइबर बुलिंग शामिल हैं.
वैश्विक स्तर पर शोध ये दिखाता है कि वर्चुअल वर्ल्ड्स के थिव्स—जिनकी उम्र 20–24 साल होती है—उनमें सबसे ज्यादा युवा वर्ग है, और वे रोजाना 5–7 घंटे वर्चुअल दुनिया में एक्टिव होते हैं.
क्या यह सिर्फ इंडिया का दिलचस्प सवाल है?
बिल्कुल नहीं! INTERPOL की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक साइबर अपराधियों का लगभग 40% हिस्सा युवा है और 2024–25 में युवा अपराधी सबसे तेज़ी से बढ़ रहे ग्रुप रहे हैं.
क्यों खतरनाक हैं युवा हैकर?
ज्ञान मिट गया, नैतिकता नहीं मिली – युवा तकनीकी रूप से स्मार्ट हैं लेकिन कानूनी और नैतिक फ़्रेमवर्क से दूर.
दूरी और गति में खाई – सरकारी एजेंसियां तकनीकी रूप से पीछे हैं, जबकि अपराधजीवी तेज़ी से नए तरीकों में बदलते हैं.
सिस्टम की कमज़ोरी – स्कूल कॉलेज में साइबर लॉ, एथिक्स और एनलिसिस एडजुट नहीं किए गए हैं, जिससे युवा फ्रॉड आसान राह पकड़ ले रहा है.
सीधे ऐक्शन की जरूरत है:
साइबर शिक्षा: स्कूल-कॉलेज लेवल पर “डिजिटल एथिक्स” और “लॉ वर्सेज साइबरक्राइम” जैसे विषयों को जरुरी करें.
लॉ एनफोर्समेंट में टेक्निकल अपडेट: हर छह महीने में साइबर यूनिट्स के अधिकारियों को अपस्किल ट्रेनिंग.
पब्लिक अवेयरनेस: सोशल मीडिया पर इंटरैक्टिव विडियो-कैंपेन जैसे “भारत बचाए—साइबर से” चैम्पियनशिप.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-




