COP30 शिखर सम्मेलन में भारत की मजबूत आवाज, जलवायु न्याय और फंडिंग पर विकसित देशों से की जवाबदेही की मांग

COP30 शिखर सम्मेलन में भारत की मजबूत आवाज, जलवायु न्याय और फंडिंग पर विकसित देशों से की जवाबदेही की मांग

प्रेषित समय :20:52:23 PM / Sat, Nov 8th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

ब्राज़ील के बेलेम शहर में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर पक्षकार सम्मेलन (COP30) में भारत ने एक बार फिर विकासशील देशों की आवाज बनकर जलवायु न्याय (Climate Justice) का मुद्दा मुखरता से उठाया. भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जलवायु परिवर्तन का बोझ उन देशों पर नहीं डाला जा सकता जो अभी भी गरीबी, विकास और बुनियादी ढांचे की चुनौतियों से जूझ रहे हैं. इस वैश्विक मंच पर भारत ने विकसित देशों से आग्रह किया कि वे अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तत्काल और ठोस कटौती करें, साथ ही वादा किया गया अरबों डॉलर का जलवायु वित्त (Climate Finance) जल्द से जल्द उपलब्ध कराएं ताकि विकासशील देश अपने हरित परिवर्तन के लक्ष्यों को पूरा कर सकें.

भारत के इस बयान ने COP30 की चर्चाओं में नया संतुलन ला दिया है. सम्मेलन में जब ‘जलवायु फंडिंग’ और ‘नेट ज़ीरो लक्ष्यों’ की बात उठी, तो भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पुरज़ोर तरीके से कहा कि “विकासशील देशों से यह अपेक्षा करना कि वे बिना पर्याप्त फंडिंग और तकनीकी सहायता के उत्सर्जन में कमी लाएँ, यह जलवायु न्याय की भावना के विपरीत है.” भारत का यह रुख न केवल अपने हितों की रक्षा के लिए है, बल्कि अफ्रीकी, एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों के साझा दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है.

भारत ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बनाए गए कई अंतरराष्ट्रीय वादे कागज़ों पर ही सीमित रह गए हैं. विकसित देशों द्वारा 2009 में किया गया “100 अरब डॉलर वार्षिक फंड” का वादा अब तक पूरी तरह पूरा नहीं हुआ है. इस पर भारत ने सवाल उठाते हुए कहा कि “जब तक ऐतिहासिक जिम्मेदारी तय नहीं होती और आर्थिक मदद व्यवहारिक रूप से नहीं मिलती, तब तक वैश्विक जलवायु नीति में समानता की बात अधूरी ही रहेगी.”

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि विकसित देशों को केवल वित्तीय सहयोग ही नहीं, बल्कि उन्नत तकनीकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के क्षेत्रों में भी विकासशील देशों की मदद करनी चाहिए. भारत ने उदाहरण देते हुए बताया कि उसने स्वयं इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) और कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (CDRI) जैसी पहलें शुरू कर यह दिखाया है कि जलवायु कार्रवाई केवल नारे नहीं, बल्कि साझेदारी से संभव है.

भारत ने अपने वक्तव्य में कहा कि वह उष्णकटिबंधीय वन संरक्षण सुविधा (Tropical Forest Finance Facility - TFFF) में पर्यवेक्षक देश (Observer Nation) के रूप में शामिल होकर वैश्विक वन संरक्षण के प्रयासों का हिस्सा बनेगा. यह कदम भारत के पर्यावरणीय नेतृत्व को नई दिशा देता है, क्योंकि भारत ने यह स्पष्ट किया कि वन, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों का संरक्षण किसी भी जलवायु नीति का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए.

COP30 में भारत की ओर से यह भी कहा गया कि 21वीं सदी की ऊर्जा व्यवस्था को संतुलित बनाना अनिवार्य है — जहाँ स्वच्छ ऊर्जा को प्राथमिकता दी जाए, लेकिन ऊर्जा सुरक्षा और रोजगार पर असर न पड़े. भारत ने इस मंच से अपने “पंचामृत” लक्ष्यों की पुनः पुष्टि की — जिनमें 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना, कुल ऊर्जा की 50 प्रतिशत आपूर्ति नवीकरणीय स्रोतों से करना और 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प शामिल है.

भारत के पर्यावरण मंत्री ने सम्मेलन में कहा, “जलवायु परिवर्तन कोई एक देश या क्षेत्र की समस्या नहीं, बल्कि मानवता की सामूहिक चुनौती है. यदि विकसित देश अपने ऐतिहासिक दायित्व से पीछे हटते हैं, तो यह न केवल जलवायु न्याय का अपमान होगा, बल्कि विकासशील दुनिया के भविष्य के साथ अन्याय भी.”

भारत के इस दृढ़ रुख के बाद सम्मेलन में माहौल गर्म हो गया. कई विकासशील देशों ने भारत के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि वैश्विक जलवायु वित्त का वितरण “समानता और पारदर्शिता” के सिद्धांतों पर होना चाहिए. वहीं, कुछ विकसित देशों के प्रतिनिधियों ने इस बात को स्वीकार किया कि फंडिंग में देरी और प्रतिबद्धता की कमी ने अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को प्रभावित किया है.

भारत ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि उसे जलवायु फंडिंग के लिए किसी “एकतरफा निगरानी तंत्र” की आवश्यकता नहीं, बल्कि साझेदारी आधारित मॉडल की जरूरत है — जहाँ विकासशील देशों की स्थानीय परिस्थितियों और नीतिगत प्राथमिकताओं का सम्मान हो. इस संदर्भ में भारत ने “LiFE — Lifestyle for Environment” पहल को COP30 में दोबारा प्रमुखता से उठाया और कहा कि पर्यावरण संरक्षण केवल नीति नहीं, बल्कि जीवन शैली का हिस्सा बनना चाहिए.

भारत के वक्तव्य का असर इतना गहरा रहा कि कई वैश्विक मीडिया मंचों और विश्लेषकों ने इसे “COP30 की सबसे संतुलित और व्यावहारिक प्रस्तुति” कहा. जहाँ एक ओर पश्चिमी देश इस सम्मेलन में उत्सर्जन कटौती की समयसीमा पर जोर दे रहे थे, वहीं भारत ने चर्चा का केंद्र “वित्तीय न्याय” और “जिम्मेदारी के साझा बंटवारे” की ओर मोड़ दिया.

भारत के इस रुख ने वैश्विक जलवायु विमर्श को दो टूक संदेश दिया — कि बिना न्याय के जलवायु समाधान अधूरा रहेगा. इसने यह भी संकेत दिया कि अब विकासशील देश अपने हितों और आवश्यकताओं को लेकर पहले से कहीं अधिक संगठित हैं.

भारत की नीति विशेषज्ञों के अनुसार, COP30 में भारत की रणनीति व्यावहारिक और दूरदर्शी दोनों है. उसने न तो अपने विकास लक्ष्यों से समझौता किया और न ही पर्यावरणीय दायित्वों से मुँह मोड़ा. इसने एक संतुलित संदेश दिया — “हम समाधान का हिस्सा हैं, समस्या का नहीं.”

ब्राजील के बेलेम में चल रहे इस सम्मेलन में भारत की यह आवाज अब न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरे वैश्विक दक्षिण (Global South) की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व कर रही है. और यही भारत की जलवायु कूटनीति की सबसे बड़ी सफलता कही जा सकती है — जहाँ विकास और पर्यावरण दोनों को साथ लेकर चलने की बात अब केवल नीति नहीं, बल्कि दिशा बन गई है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-