लालू परिवार में दरार, बेटी रोहिणी आचार्य ने छोड़ा राजद और घर का साथ, भावुक होकर कहा मेरा कोई परिवार नहीं-पार्टी की दुर्दशा पर उठाया सवाल

लालू परिवार में दरार, बेटी रोहिणी आचार्य ने छोड़ा राजद और घर का साथ, भावुक होकर कहा मेरा कोई परिवार नहीं-पार्टी की दुर्दशा पर उठाया सवाल

प्रेषित समय :22:07:57 PM / Sat, Nov 15th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

पटना. बिहार की राजनीति में हमेशा से ही भूचाल लाने वाले लालू प्रसाद यादव के परिवार में आज उस समय सबसे बड़ा भूकंप आया जब उनकी दूसरी बेटी रोहिणी आचार्य ने सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और अपने परिवार से अलग होने की घोषणा कर दी. सिंगापुर से जारी एक अत्यंत भावुक और तीखी प्रतिक्रिया में रोहिणी आचार्य ने न केवल पार्टी छोड़ने का ऐलान किया, बल्कि परिवार के मौजूदा नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें 'परिवार से बाहर फेंक दिया गया है.' यह बयान ऐसे समय आया है जब राजद पहले से ही आंतरिक चुनौतियों और लगातार चुनावी असफलताओं से जूझ रहा है, जिससे बिहार के राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई है.

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को दिए गए अपने पहले बयान में, जिसने बिहार की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है, रोहिणी आचार्य ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "मेरा कोई परिवार नहीं है. उन्होंने ही मुझे परिवार से बाहर फेंक दिया है. उन्हें जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है... पूरी दुनिया पूछ रही है कि पार्टी इस दुर्दशा तक क्यों पहुँच गई है?" यह भावनात्मक विस्फोट न केवल रोहिणी की निजी पीड़ा को दर्शाता है, बल्कि राजद के अंदरूनी कलह और शक्ति संघर्ष को भी पहली बार सार्वजनिक पटल पर लाया है. लालू परिवार के सबसे मुखर सदस्यों में से एक, और पिता को किडनी दान करने के कारण पूरे देश में चर्चा में रहीं रोहिणी आचार्य के इन शब्दों को केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं, बल्कि पार्टी के वर्तमान नेतृत्व के प्रति अविश्वास प्रस्ताव के रूप में देखा जा रहा है.

रोहिणी आचार्य का यह कदम राजद के लिए एक राजनीतिक आपदा से कम नहीं है. लंबे समय से यह कयास लगाए जा रहे थे कि लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच गहरी खाई मौजूद है. एक ओर तेजस्वी यादव पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और बिहार में विपक्ष के नेता के रूप में स्थापित हैं, तो वहीं उनकी बहन मीसा भारती राज्यसभा में सक्रिय हैं. इन सबके बीच, रोहिणी आचार्य ने हमेशा सोशल मीडिया के माध्यम से राजद की एक मजबूत और आक्रामक आवाज के रूप में खुद को स्थापित किया था. उनके समर्थकों का मानना था कि लालू जी की अनुपस्थिति में उन्होंने जिस तरह पार्टी और परिवार का बचाव किया, उसके बावजूद उन्हें राजनीतिक रूप से दरकिनार किया गया. उनका यह भावनात्मक बयान इसी दरकिनार किए जाने की अंतिम परिणति प्रतीत होता है.

इस बयान के तुरंत बाद, पटना में राजद मुख्यालय में अफरा-तफरी का माहौल बन गया. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इस मामले पर चुप्पी साध ली है, जबकि कुछ प्रवक्ता क्षति नियंत्रण (डैमेज कंट्रोल) में जुट गए हैं. एक वरिष्ठ राजद नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह "पारिवारिक और भावनात्मक मामला" है और इसे राजनीति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए, लेकिन रोहिणी के बयान में स्पष्ट रूप से 'पार्टी की दुर्दशा' का उल्लेख है, जो इसे केवल घरेलू झगड़ा मानने से इनकार करता है. यह बयान सीधे तौर पर उन नेतृत्व क्षमताओं पर सवाल उठाता है, जो पिछले कुछ वर्षों में राजद को सत्ता में वापस लाने में सफल नहीं हो सकी हैं.

विश्लेषकों का मानना है कि रोहिणी आचार्य के बयान में दोहरी वेदना निहित है. पहली, अपने ही परिवार द्वारा त्यागा जाना, खासकर पिता को जीवनदान देने के बाद. दूसरी, जिस पार्टी के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया, उसकी वर्तमान स्थिति देखकर उपजी राजनीतिक निराशा. उनका यह सवाल कि 'पूरी दुनिया पूछ रही है कि पार्टी इस दुर्दशा तक क्यों पहुँच गई है?' सीधे तौर पर तेजस्वी यादव के रणनीतिक फैसलों और संगठनात्मक पकड़ पर एक बड़ा प्रहार है. यह दिखाता है कि परिवार के अंदर भी वर्तमान कार्यशैली को लेकर भारी असंतोष मौजूद था.

इस घटनाक्रम ने विरोधी खेमे को राजद की नींव पर हमला करने का सीधा अवसर दे दिया है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेताओं ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए इसे 'वंशवाद की राजनीति का पतन' करार दिया है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने ट्वीट किया, "लालू परिवार का बिखराव यह दिखाता है कि सत्ता की चाहत में अपनों को भी दरकिनार किया जाता है. रोहिणी जी का दर्द बताता है कि राजद अब केवल दो-तीन लोगों की पार्टी बनकर रह गई है." विरोधी दलों का मानना है कि यह दरार राजद की उस जन-आधारित छवि को भी नुकसान पहुंचाएगी, जिसे लालू प्रसाद ने दशकों की मेहनत से बनाया था.

रोहिणी आचार्य के इस भावनात्मक विद्रोह के दूरगामी राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं. यदि वह वास्तव में राजद से दूरी बना लेती हैं और एक स्वतंत्र राजनीतिक आवाज के रूप में उभरती हैं, तो यह न केवल राजद के भीतर एक विभाजनकारी रेखा खींचेगा, बल्कि यह बिहार की राजनीति में महिला नेतृत्व के लिए एक नई बहस भी शुरू कर सकता है. क्या वह किसी अन्य पार्टी का रुख करेंगी या अपनी खुद की राजनीतिक राह बनाएंगी, यह देखना अभी बाकी है. फिलहाल, रोहिणी आचार्य के इस धमाकेदार ऐलान ने बिहार की राजनीति की दिशा और दशा पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है और यह स्पष्ट कर दिया है कि लालू प्रसाद यादव के परिवार में सब कुछ ठीक नहीं है. राजद के लिए यह संकट अब केवल चुनाव जीतने या हारने का नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और परिवार की एकता को बचाए रखने का बन गया है. इस पूरे मामले पर लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतजार है, जो इस राजनीतिक तूफान को थामने के लिए सबसे जरूरी है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-