गर्भवती महिला और आठ वर्षीय बेटे को वापस लाने पर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट सहमत, मानवीय आधार पर हुआ बड़ा निर्णय

गर्भवती महिला और आठ वर्षीय बेटे को वापस लाने पर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट सहमत, मानवीय आधार पर हुआ बड़ा निर्णय

प्रेषित समय :21:47:01 PM / Wed, Dec 3rd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली.बुधवार का दिन एक संवेदनशील और लंबे समय से उलझे मामले के समाधान की दिशा में अहम साबित हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद केंद्र सरकार ने यह स्वीकार किया कि वह गर्भवती महिला सुनाली खातून और उसके आठ वर्षीय बेटे को बांग्लादेश से वापस लाएगी। यह निर्णय पूरी तरह से मानवीय आधार पर लिया गया है। महीनों पहले अचानक की गई उनकी गिरफ्तारी और निर्वासन के बाद परिवार टूट चुका था, और पिता भदू शेख अपनी बेटी और नाती की वापसी के लिए लगातार अदालतों के दरवाजे खटखटा रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि एक गर्भवती महिला और उसके छोटे बच्चे को परिवार से दूर रखना मानवीय दृष्टि से उचित नहीं है। अदालत ने केंद्र को दो टूक कहा कि इस स्थिति में सरकार को तत्काल कदम उठाने होंगे, क्योंकि बच्चे के भविष्य और महिला की सेहत दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि मां और बच्चे को अलग रखना किसी भी आधुनिक लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं हो सकता।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और उन्होंने अदालत को आश्वस्त किया कि महिला और बच्चे को औपचारिक प्रक्रियाओं के तहत भारत वापस लाया जाएगा। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह कदम ‘मानवीय आधार’ पर होगा और इससे सरकार की मूल दलीलों या भावी कार्रवाइयों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने साफ किया कि यह फैसला कोई स्थायी मिसाल नहीं है, और सरकार अपनी सुरक्षा नीतियों में किसी ढील का संदेश नहीं देना चाहती। मगर अदालत की स्पष्ट भावना और स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार ने अपना रुख नरम किया।

मामले की पृष्ठभूमि में एक दर्दनाक कहानी छिपी है। भदू शेख, जो पश्चिम बंगाल के पैकर गांव के निवासी हैं, काम की तलाश में परिवार सहित दिल्ली आए थे। उनके अनुसार, गृह मंत्रालय की ओर से मई में जारी एक अधिसूचना के बाद दिल्ली में पहचान सत्यापन अभियान चला, जिसके दौरान उनकी बेटी सुनाली, दामाद और छोटे नाती को पकड़ा गया। भदू शेख ने दावा किया कि उनकी बेटी भारतीय नागरिक है और परिवार लंबे समय से दिल्ली व पश्चिम बंगाल के रिकॉर्ड में शामिल है। लेकिन कथित तौर पर दस्तावेजों की कमी के आधार पर उन्हें गैरकानूनी प्रवासी बताकर 26 जून को बांग्लादेश भेज दिया गया।

केंद्र सरकार ने अदालत में दलील दी कि सुनाली और उसके परिवार के पास भारतीय नागरिकता का कोई प्रमाण नहीं था। लेकिन पिता ने हाई कोर्ट में अपील कर कहा कि वे स्थायी निवासी हैं और उनकी बेटी भारतीय नागरिक है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने सितंबर में सुनाली और उनके बेटे को वापस लाने का आदेश दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। इस दौरान सुनाली की गर्भावस्था, उसकी चिकित्सा ज़रूरतें और बच्चे की दुर्दशा मुख्य चिंताएं बन गईं।

पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कड़ी टिप्पणी देते हुए कहा था कि मां और बच्चे को ‘गैर-मानवीय परिस्थितियों’ में छोड़ने का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि एक गर्भवती महिला को निर्वासन के दौरान आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध न होना गंभीर चिंता का विषय है।

इस बीच, भदू शेख ने केंद्र के खिलाफ अवमानना याचिका भी दायर की थी, जिस पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय अब इस मामले को देख रहा है, इसलिए केंद्र को अवमानना के बारे में चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।

अदालत ने राज्य और केंद्र दोनों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सुनाली के लौटने पर उसकी चिकित्सीय देखभाल की पूर्ण व्यवस्था हो। बिरभूम जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को निर्देश दिया गया है कि महिला को गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के समय आवश्यक सभी सुविधाएं मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएं। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि आठ वर्षीय बच्चे की देखभाल और उसके लिए दिनचर्या संबंधी आवश्यकताओं की व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाए।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बागची ने मौखिक तौर पर केंद्र सरकार से यह भी कहा कि भदू शेख की नागरिकता की जांच की जाए। यदि वे भारतीय नागरिक पाए जाते हैं, तो जैविक संबंध के आधार पर उनकी बेटी और नाती भी भारतीय नागरिक माने जाएंगे। यह टिप्पणी इस मामले के भविष्य को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती है।

केंद्र ने अपनी ओर से यह भी स्पष्ट किया कि सुनाली और उसके बेटे को वापस लाने की प्रक्रिया सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में होगी और जरूरत पड़ने पर उन्हें वेरिफिकेशन प्रक्रिया के तहत रखा जा सकता है।

यह मामला केवल सुनाली और उसके बेटे का नहीं, बल्कि उन तमाम परिवारों का प्रतीक है जो अपने अस्तित्व, पहचान और सुरक्षा के सवालों से जूझ रहे हैं। मानवीय संवेदनाओं और कानूनी जटिलताओं के बीच, यह निर्णय इस बात को याद दिलाता है कि न्याय का आधार केवल कानून नहीं, बल्कि दया, सहानुभूति और मानवीयता भी है।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी, जहाँ उम्मीद है कि उनकी वापसी की प्रक्रिया और नागरिकता से जुड़े बड़े प्रश्नों पर और स्पष्टता मिलेगी। फिलहाल, भदू शेख अपनी बेटी और नाती के दरवाज़े से अंदर आने का इंतज़ार कर रहे हैं—जैसा कि उन्होंने अदालत में कहा था, “बस उन्हें वापस आते देखना है, फिर बाकी ज़िन्दगी आसान लगने लगेगी।”

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-