आजकल परेशान होने का मौसम है. आदमी को और कुछ आये चाहे न आये परेशान होना आना चाहिये. बिना परेशानी के गुजर नहीं. आज के समय में अगर कोई परेशान नहीं है तो समझ लो कछु गड़बड़ है.
पहले के जमाने में लोग लोग लुगाइयों से और वाइस वर्सा परेशान होकर जिन्दगी निकाल लेते थे. लेकिन आज इत्ते भर से काम नहीं चल सकता. बहुत परेशान होना पड़ता है. लोग अपने आस पास से , दुनिया जहान से परेशान होते हैं तब कहीं काम चल पाता है.
परेशान होने के लिये बहुत परेशान नहीं होना पड़ता. आपकी इच्छा शक्ति हो घर बैठे परेशान हो सकते हैं. आजकल तो हर चीज की होम डिलीवरी का चलन है तो परेशानी का काहे नहीं होगा. बैठे-बिठाये हो सकते हैं. तरह-तरह के पैकेज हैं परेशानी के.
अडो़स-पड़ोस में परेशानी के तो पुराने तरीके अभी भी चल रहे हैं धड़ल्ले से. पड़ोस में कुछ आ गया तो हमारे यहां भी आये. पड़ोस बरबाद हुआ तो हम कैसे आबाद रहें. हमारा भी तो पलीता लगना चाहिये.
अपने आस पास हम देखते हैं कि लोग लगातार परेशान हो लेते हैं. गजब का स्टेमिना है. काम हो गया तो परेशान, नहीं हुआ तो परेशान. हो रहा है तब तो खैर परेशान हैं ही. काम के दौरान परेशानी की ही तो तन्ख्वाह मिलती है भैये. उ त होना ही पड़ेगा.
अर्दली से साहब के बारे में पूछो -साहब क्या कर रहे हैं?
अर्दली बतायेगा- साहब परेशान हो रहे हैं.
कभी बतायेगा- अभी तो कुछ नहीं कर रहे हैं लेकिन अब बस परेशान होने ही वाले हैं आप तुरंत आ जाइये कोई काम हो तो. एक बार परेशान मोड में चले गये न जाने कब वापस लौटें? कल सुबह किसी बात पर परेशान हुये तो शाम घर जाने तक उसी बात पर परेशान बने रहे.
कभी कहेगा- साहब आज बड़े परेशान हैं साहब. परेशान होने में मन ही नहीं लग रहा है! कई बार परेशान होने की कोशिश कर चुके सुबह से लेकिन कायदे से परेशान हो ही नहीं पा रहे हैं.
परेशान होने की अपनी-अपनी औकात होती है. कुछ लोग केवल देश-दुनिया के लिये परेशान होकर ही जिन्दगी गुजार देते हैं. देश दुनिया के लिये परेशान हो-होकर अपने घर-परिवार-यार-दोस्तों को परेशान करके रख देते हैं.
आम आदमी ज्यादा लफ़ड़ा नहीं करता परेशान होने में. अनुशासित तरीके से परेशान हो लेता है. दफ़्तर में दफ़्तर से परेशान, घर में घर से परेशान. कुछ कुछ इन्नोवेटिव टाइप के परेशान होने वाले परेशानियों का वज्रगुणन कर लेते हैं- घर में दफ़्तर से परेशान होते हैं और दफ़्तर में घर से. कुछ एकपरेशानीव्रता लोग एक ही चीज से परेशान होते हैं. घर और दफ़्तर दोनों में घर से या दफ़्तर से ही परेशान हो लेते हैं. चाहे जित्ते परेशान हो जायें लेकिन दूसरी और किसी परेशानी की तरफ़ नजर उठाकर नहीं देखते. अपनी अकेली परेशानी से ही हलकान हो लेते हैं. परेशानी से बेवफ़ाई नहीं करते.
आम परेशानी वाला आदमी बहुत हुआ तो शौकिया तौर पर वीकेन्ड में समाज, देश , दुनिया के लिये परेशान हो लेते हैं. कुछ-कुछ उसी तरह जैसे आम आदमी हफ़्ते भर घर के खाने-पीने से ऊबकर शौकिया पर हफ़्ते में एक दिन जाकर माल में पैसे उड़ा आता है. ऊंचे दर्जे का खाना खाकर ऊंचे दर्जे की परेशानी इन्ज्वाय कर आता है. दाल, चावल सब्जी रोटी की चिरकुट परेशानियां छोड़कर तबियत से ग्लोबलाइजेशन-ओबलाइजेशन, उपभोक्ता संस्कृति, भुपभोक्ता संस्कृति जैसी ऊंची परेशानियों के बारे में सोच लेते है.
खास लोग खास तरह परेशान होते हैं. आम लोग की तरह परेशान होने की बात सोचते ही वे परेशान हो जाते हैं. अपने लिये खास तरह की परेशानी का जुगाड़ करते हैं तब परेशान होते हैं. ये नहीं कि परेशान होने की गर्ज में झट से कोई भी परेशानी देखी और फ़ट से परेशान हो जायें. वे अपने लिये खास तरह की परेशानी खोजते-खोजते चाहे जित्त परेशान हो जायें , चाहे जित्ते लोगों को परेशान कर लें लेकिन परेशान अपने ही तरीके से होंगे. किसी दूसरे की तरह परेशान होना उन्होंने सीखा ही नहीं.
आप देखते होंगे कि तमाम लोग जरा-जरा सी बात पर परेशान हो जाते हैं. बहुत संवेदनशील परेशानबाज होते हैं. किसी भी बात पर परेशान हो लेते हैं, किसी के भी साथ हो लेते हैं, न कोई मिला तो इकल्ले हो लेते हैं. होने से मतलब है. जहां मौका मिला, हो लिये. न मिला तब भी हो लिये. ससुरा परेशान होने के लिए क्या मौका खोजना.
तमाम लोग काम की अधिकता से परेशान हो लेते हैं. इस कैटेगरी के तमाम लोग यह भी करते हैं कि परेशान होने के लिये खूब सारा काम इकट्ठा कर लेते हैं तब आराम से परेशान होते रहते हैं. इसके उलट ऐसे लोग भी हैं जिनके पास काम नहीं होता तो परेशान हो जाते हैं. ऐसे लोग भी अपने लिये परेशानी जुगाड़ने के लिये फ़टाफ़ट काम खतम कर लेते हैं फ़िर झटपट काम की कमी का रोना रोते हुये परेशान होते हैं आराम से.
बहुत सारे किस्से हैं जी परिशानियों के. ज्यादा क्या बतायें आप बेकार में परेशान हो जायेंगे.