अमल के इंतजार में आइडिये….

एक दिमाग में अनगिनत आइडिये रहते थे. समय के साथ आइडियों की संख्या भी बढ़ती रही. शुरुआत में तो आइडिये भारत की जनसंख्या की तरह बढ़े. इसके बाद आइडियों के बढ़ने की दर तेज होती गयी. पहले तो वे देश में जातिवाद/भाई- भतीजावाद की दर से बढ़े. फ़िर सांसदों के वेतन भत्ते पास होने की गति से. इसके बाद उनके बढ़ने की दर उदारीकरण के बाद के घपलों-घोटालों की गति से बढ़ने लगी.

हर आइडिया अपने को खास मानता. हर आइडिया सोचता कि उस पर सबसे पहले अमल होना चाहिये. जो आइडिया जितना बड़ा चिरकुट होता वह अपने को उतना ही क्रांतिकारी समझता. कुछ पढ़े-लिखे विचारक टाइप के आइडियों ने तो नियम तक बना दिया था- 'किसी भी आइडिये में क्रांतिकारिता की मात्रा उसके द्वारा प्रदर्शित चिरकुटई के समानुपाती होती है.'

बनते ही यह नियम आइडियों का सार्वभौमिक नियम के रूप में मशहूर हो गया.

इस नियम के अनुपालन में अच्छे-भले शरीफ़ टाइप के आइडिये भी चिरकुटई का अभ्यास करते दिखते. कुछ ने चिरकुटई की कोचिंगें भी ज्वाइन कर ली. उनको लगता कि आइडिये का अंतिम लक्ष्य क्रांतिकारी दिखना होता है. यह कुछ ऐसा ही है जैसा कि अपने देश में किसी बच्चे का होशियार होने का मतलब उसकी गणित और स्मार्ट होने का मतलब उसकी अंग्रेजी अच्छी होना माना जाता है. बड़े होने पर होशियारी का मतलब दुनियादारी का गणित अच्छी होना और स्मार्टनेस का मतलब अंग्रेजी का फ़र्राटेदार (गलत हो तो सोने में सुहागा) होना हो जाता है.

होते-होते आइडियों की संख्या इतनी अधिक हो गयी कि दिमाग आये दिन गठबंधन सरकार के मुखिया की तरह हलकान रहने लगा. हर आइडिया दिमाग को धमकी देता कि उस पर फ़ौरन अमल किया जाये. कोई -कोई आइडिया अनशन पर चले जाने की धमकी देने लगे. कोई चेतावनी देता कि उस पर ध्यान नहीं दिया गया तो वो दूसरे के दिमाग में चला जायेगा. एक आइडिये ने तो सूचना के अधिकार का उपयोग करके निम्न जानकारियां मांग लीं :

१. कृपया पिछले पांच वर्ष में जिन आइडियों पर अमल किया गया उनकी पैदाइश और अमल की तारीख सूचित करें.

२. कृपया उन आइडियों की सूची प्रदान करें जिन पर एक से अधिक बार अमल हुआ.

३.कृपया उन आइडियों की सूची प्रदान करें जिन पर एक बार भी अमल नहीं हुआ.

४. कृपया ऐसे आइडियों की सूची प्रदान करें जो अपने पर अमल न होने का सदमा बर्दास्त न कर पाने के चलते असमय मौत का शिकार हो गये.

५.कृपया ऐसे आइडियों की सूची प्रदान करें जो अमल में न आने की झल्लाहट के चलते दूसरे लोगों के दिमागों में चले गये.

कुल मिलाकर दिमाग में आइडियों की हालत ऐसी हो गयी जैसे कि गैसों में अणुओं की ब्राउनियन गति होती होगी. हर आइडिया दूसरे से टकरा रहा है. टकराने पर सारी कह रहा है. एक्सक्यूज मी भी बोल रहा है. टेक केयर भी धांसे दे रहा है. कोई आइडिया अगर सॉरी बोलने से रह गया तो अगली बार टकराने पर तीन बार सॉरी बोले दे रहा है. एक बार पिछली टक्कर का, एक इस टक्कर का और एक अगली टक्कर का एडवांस में.

किसी-किसी की तो टक्कर भी नहीं होती तब भी वो सॉरी/ एक्सक्यूज मी बोल देता है. इस पर किसी आइडिया के बाप तो पीट देते हैं कि एक ठो सॉरी बेकार कर दिया. वहीं किसी आइडिया की मम्मी लहालोट होकर अपने उनसे कहती हैं -देखते हो आइडिया के बाबू जी, अपना बच्चा एक बार टकराने पर दो-बार सॉरी बोला. बहुत होशियार है.

आखिर में दिमाग को कुछ समझ नहीं आया तो उसने फ़ूट डालो और राज करो की नीति का अनुसरण करते हुये उन्हीं आइडियों में से एक चिरकुट से दिखने वाले आइडिये को ( जो कि मरियल सा भी था ) उन आइडियों का नेता मनोनीत कर दिया.

चिरकुट आइडिये को चुनते समय दिमाग ने आइडियों के सार्वभौमिक सिद्धांत ( किसी भी आइडिये में क्रांतिकारिता की मात्रा उसके द्वारा प्रदर्शित चिरकुटई के समानुपाती होती है.) को और चिरकुटों में मरियल से आइडिये को चुनने में गांधी जी के दुविधा उन्मूलन सिद्धांत का सहारा लिया ( अगर तुमको कोई निर्णय लेने में दुविधा हो तो समाज के आखिरी व्यक्ति के बारे में सोचो कि तुम्हारे निर्णय से उसको क्या फ़ायदा होगा).

नेता चुने जाते ही आइडिये की चिरकुटई तो और बढ़ गयी लेकिन उसकी कमजोरी उसी तरह सर पर पांव रखकर फ़ूट ली जिस तरह किसी फ़टेहाल नेता की गरीबी चुनाव जीतते ही गो-वेंट- गान हो जाती है.

नेता चुने जाते ही आइडिये की चिरकुटई तो और बढ़ गयी लेकिन उसकी कमजोरी उसी तरह सर पर पांव रखकर फ़ूट ली जिस तरह किसी फ़टेहाल नेता की गरीबी चुनाव जीतते ही गो-वेंट- गान हो जाती है. मतलब वह अधिक क्रांतिकारी और ताकतवर हो गया. ताकतवर होते ही उसने सारे चिल्ल पों मचाने वाले आइडियों की सभा बुला ली और कुर्सी पर बैठकर उनकी फ़रियाद सुनने लगा. सारे आइडिये सामने दिमाग-जमीन पर प्रजा सरीखे उकड़ूं बैठे अपने-अपने बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताने लगे.

एक आइडिया बहुत भन्नाया हुआ था. चेहरे-मोहरे, अकड़-धकड़ से लग रहा था कि कोई ईमानदार आइडिया था. वह शुरु से ही नेता आइडिया को हड़काने लगा कि हम पर फ़ौरल अमल किया जाये. आप हमारे सेवक हैं. अगर हम पर अमल न हुआ तो हम फ़ौरन अनशन पर बैठ जायेंगे. आमरण अनशन कर देंगे.

इस पर नेता आइडिया ने उसको समझाया – 'भाई साहब, आप पर तो अमल जब होगा तब होगा फ़िलहाल आपको हमारी सलाह है कि आप टेलीविजन पर सिर्फ़ समाचार मत देखा करें. न जाने कितने चैनलों और भी बेहूदे कार्यक्रम आते हैं. उनको भी देख लिया करें. सिर्फ़ समाचार देखने के चलते ही आप दिमाग को भी संसद समझने लगे हैं. आपको समझना चाहिये कि आपके ज्यादा हल्ला मचाने से दिमागजी को कहीं कुछ हो गया तो हम सब बेमौत मारे जायेंगे.'

एक और आइडिया बहुत शराफ़त से बोला कि साहब जी, हम चाहते हैं सब तरफ़ भाई चारा फ़ैले. आपस में प्रेम बना रहे.

इस पर नेता आइडिये ने उससे दुगुनी शराफ़त और चार गुनी विनम्रता से उसको सूचित किया -'भाई जान, आपका इरादा बहुत नेक है. लेकिन हम मजबूर हैं कि हमको भाईचारा और प्रेम मोहब्बत केवल भाईसाहब ब्रांड की पसंद आती है. इसलिये आप पर अमल करना संभव नहीं हो सकेगा. हां, अगर आप उचित समझें तो अपने को थोड़ा माडीफ़ाई करके अपने को अमन का पैगाम बना लें और मन करे तो थोड़ी मोहब्बत भी मिला लें. इस काकटेल आइडिये पर फ़ौरन अमल हो जायेगा. आप सोच लीजिये फ़िर बताइये.'

वो आइडिया बेचारा असमंजस में पड़ गया. बोला – 'जरा अपने यार-दोस्तों से गुफ़्तगूं कर लूं फ़िर बताता हूं.'

एक आइडिया बुजुर्गों की हालात पर चिंता करने वाला था. उसने विस्तार से बताया कि अगर उस पर अमल में लाया गया तो दुनिया के सारे बुजुर्गों के हालत सुधर जायेंगे. उनकी इत्ती सेवा होने लगेगी कि जवान लोग बूढ़े होने के लिये मचलने लगेंगे. अमल के पहले और अमल के बाद की स्लाइडें दिखाते हुये उसने बताया कि अभी दुनिया में बुजुर्गों की हालत कित्ती खराब है. जिस बुजुर्ग को देखो उसके बच्चे धोखा दे रहे हैं, उनका ख्याल नहीं रख रहे हैं. एक दम नरक बना हुआ है बुजुर्गों का हाल. आइडिये पर अमल होते ही बुजुर्ग लोगों के हालत तड़ से सुधर जायेंगे. बुजुर्गों का हालिया दुर्दशा बयान करते-करते वो आइडिया रोने तक लगा. आंसुओं की बाढ़ सी आ गई.

इस पर कुछ आइडियों ने अपनी पैंटें ऊंची कर लीं और कुछ मादा आइडियों ने छतरियां तान लीं. कुछ नौजवान आइडिये रेन डांस का मन बनाने लगे.

नेता आइडिया ने उससे सवाल किया कि उसने कितने बुजुर्गों की संगत की है. जितने की भी की है क्या उनमें से कोई सुखी नहीं दिखा? किसी के बच्चे उनकी सेवा नहीं करते? कोई बुजुर्ग हंसते-खिलखिलाते नहीं दिखा उसको आजतक?

इस पर वह आइडिया बोला – देखिये साहबजी! हम बुजुर्गों को आजतक दुखी समझते आये हैं. बताते आये हैं. अब आपके कहने से हम अपनी धारणा नहीं बदलने जा रहे हैं कि दुनिया में कुछ बुजुर्ग सुखी भी रहते हैं. आपको हम पर अमल करना हो तो करिये , न करना हो तो न करिये. लेकिन आपके कहने से हम बुजुर्ग सर्वेक्षण करने न जायेंगे. इत्ते समय में तो हम दस-बीस गजलें निकाल लेंगे. यह कहकर वह आइडिया नयी गजल गुनगुनाने लगा.

इसके बाद तो न जाने कितने आइडिये उछल-उछलकर अपने पर अमल में लाने के लिये प्रस्ताव पेश करने लगे. शुरु में तो सभ्यता का चोला धारण किये रहे. फ़िर बहस करने लगे, चिल्लाने लगे. इसके बाद गाली-गलौज और हाथापाई का माहौल बन गया.

नेता आइडिया ने झल्लाकर कहा कि अरे भाई! दिमाग को संसद में मत बदलो. जरा तमीज से पेश आओ.

इस पर मादा आइडियों ने एतराज किया- 'आपने अपने संबोधन में सब आइडियों को भाई कहकर संबोधित किया. हम आपकी इस मर्दवादी सोच की निंदा करते हैं.'

नेता आइडिया ने अपने संबोधन में अरे भाई के साथ अरी बहनों भी जोड़कर संबोधन देकर मामल रफ़ा-दफ़ा करना चाहा. लेकिन बात उलझती गयी. किसी मादा आइडिये ने कहा कि उसको लेडीज फ़र्स्ट के नियम के अनुसार पहले महिलाओं को संबोधित करना चाहिये था. वहीं कुछ का मानना था कि भाई/बहन कहकर नेता आइडिये ने बातचीत में जबरियन घरेलूपन घुसेड़ने की कोशिश की. यह आधुनिकता विरोधी कदम है. इस पर किसी ने पीछे से सुझाया -आधुनिकता विरोधी के साथ प्रतिगामी और जोड़ दे री लगेगा कि अपुन को हिन्दी भी आती है!

नेता आइडिया बेचारा मादा आइडियों को समझाने में तल्लीन च पसीने-पसीने हो ही रहा था कि कुछ दबंग टाइप मर्द आइडियों ने उसकी खिल्ली उड़ानी शुरु कर दी कि वह मादा आइडिया तुष्टी करण अभियान चला रहा है. खिल्ली उड़ाने से पहले मर्द आइडियों ने अपने काले चश्में पीछे गरदन की तरफ़ कालर पर लगा लिये ताकि उनके दबंग के साथ बदतमीज दिखने में किसी को कोई सुबहा न रहे.

अभी बेचारा नेता आइडिया मर्द आइडियों की खिल्ली से उबरा ही न था कि कुछ बोल्ड टाइप के मादा आइडियों ने उस पर कुछ मादा आइडियों की तरफ़ जरूरत से ज्यादा नर्म व्यवहार करने का आरोप लगाते हुये उसके व्यवहार को छद्म मादा आइडिया तुष्टी करण अभियान कहते हुये उसकी लेहो-लेहो करना शुरु कर दिया.

सोते-सोते भी उसने हाईकमान के चरण चांप लिये ताकि जब वह जगे तब भी हाईकमान के श्रीचरणों पर उसके मत्थे के अलावा और को मत्था न कब्जा कर ले.

इस बीच दिमाग जिस शरीर में रहता था उसने अपना रात का खाना खा लिया था. खाने के बाद दिमाग को संकेत मिलने लगे कि अब बहुत हआ जी, सो जाओ. सुबह फ़िर उसी राग-ताग से जूझना है.

दिमाग ने सारे आइडियों को भी अच्छे आइडियों की तरह सो जाने के लिये कहा. नेता आइडिये ने फ़ौरन दिमाग की आज्ञा को हाईकमान का आदेश मानते हुये अपने जेब से पहले से टाइप किया हुआ इस्तीफ़ा निकालकर उसके श्रीचरणों में फ़ूल की तरह चढ़ा दिया.

इसके बाद दिमाग के सामने मत्था टिकाते हुये देर तक दण्डवत किया. धक्कम-मुक्की में आगे की तरफ़ गिरने को भी हुआ लेकिन संभल गया. वह दिमाग के श्रीचरणों में ही सर धरे-धरे निद्रालीन हो गया. सोते-सोते भी उसने हाईकमान के चरण चांप लिये ताकि जब वह जगे तब भी हाईकमान के श्रीचरणों पर उसके मत्थे के अलावा और को मत्था न कब्जा कर ले.

बाकी आइडिये भी मन मारकर ऊंघने लगे. लेकिन एक कवि टाइप के आइडिये ने, जो कि हर मौके पर हास्य के नाम हास्यास्पद तुकबंदी करने में माहिर था जिसको कि उसके साथी आइडिये सामने आशु कवि और पीठ पीछे आंसू कवि कहते थे , दिमाग से बिना अनुमति मांगे ही उसको एक ताजी कविता की दो लाइनें झेला दीं:

नर्म बिस्तर , ऊंची सोचें
फ़िर उनीदापन.

दिमाग के खर्राटों को कवि टाइप के आइडिये ने दाद समझकर फ़िर-फ़िर ये लाइने दोहरायीं. यह क्रम चलता ही रहा जब तक कि वह खुद निद्रागति को प्राप्त नहीं हो गया.

यह किसी शरीर में निवास करने वाले वाले एक दिमाग में एक दिन उत्पन्न आइडियों की कथा है. आपको पता ही होगा कि धरती पर में करीब सात अरब लोग रहते हैं. इसके बाद हमारी धरती जैसी न जाने कितने ग्रह अपनी आकाशगंगा में हैं. और उसके आगे अपनी आकाशगंगा जैसे न जाने कितनी आकाशगंगायें इस डम्पलाट दुनिया में हैं.

अब आप आइडिया लगा सकते हैं कि इस अखिल ब्रम्हांड में न जाने कितने आइडिये अपने पर अमल के इंतजार में कतार में होंगे.

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