ये शरीर भोग के लिये नहीं है- बल्कि यह शरीर भगवान् को अर्पण हो गया . जिस वस्तु में आप तुलसी-पत्र रखते हो, वह कृष्णार्पण हो जाती है.
तुलसी-पत्र के बिना भोग भगवान् स्वीकार नहीं करते.
अपने गले में तुलसी की माला धारण करने का अर्थ यह है कि यह शरीर अब भगवान श्री कृष्ण् को अर्पण हुआ है . शरीर भगवान् का है, शरीर भगवान् के लिये- शरीर अब भोग के लिये नहीं है .
बहुत-से लोग गले में तुलसी की कंठी तो धारण करते हैं-उसका अर्थ नहीं समझते अब आप याद रखो.
"भगवान् श्री कृष्ण को याद करने मात्र से वे प्रसन्न हो जाते हैं‒‘अच्युतः स्मृतिमात्रेण’ . भगवान् से एक ही चीज माँगो कि ‘हे कृष्ण! मैं आपको भूलूँ नहीं’ .
भगवान् की स्मृति होने से सम्पूर्ण दुःखों का अत्यन्त अभाव हो जायगा . केवल उनको हर समय याद रखो . आपका हित करने वाला संसार में इतना सस्ता भला कौन है?
महामंत्र:-
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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