नजरिया. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 30 विधानसभा सीटों पर जोरदार मतदान हुआ है, जाहिर है, यह चर्चा होनी ही थी कि इससे किसको फायदा होगा?
सभी अपने-अपने पक्ष के हिसाब से इसके अर्थ-भावार्थ तलाश रहे हैं, लेकिन यह कहना बेहद मुश्किल है कि इससे वास्तव में किसे फायदा होगा.
आमतौर पर ऐसा मतदान सत्ता परिवर्तन के लिए होता है, किन्तु जिस तरह से सीएम ममता बनर्जी सक्रिय हैं, ऐसा भी हो सकता है कि सत्ता बचाने के लिए टीएमसी ने पूरी ताकत लगा दी हो?
हालांकि, मीडिया ने इन चुनावों में बीजेपी के एक्शन को ज्यादा महत्व दिया है, जिसके नतीजे में टीएमसी नेताओं की बीजेपी में एंट्री के असर को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता रहा है, किन्तु बड़ा सवाल यह है कि ऐसी स्थिति में मूल बीजेपी कार्यकर्ता क्या कर रहे हैं? यदि वे अपना सियासी दर्द भुला कर सक्रिय हैं, तो भारी मतदान का बीजेपी को फायदा होगा, लेकिन यदि यह भारी मतदान टीएमसी कार्यकर्ताओं की सक्रियता के कारण है, तो बीजेपी को नुकसान होगा.
वैसे भी पश्चिम बंगाल में ही भारी मतदान के अलग-अलग तरह के नतीजे आते रहे हैं, कभी भारी मतदान के बावजूद सत्ता पक्ष बचा रहा, तो कभी सत्ता पक्ष अपनी सरकार नहीं बचा पाया.
सियासी सयानों का मानना है कि भारी मतदान से किसे फायदा होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह उत्साह किसकी प्रेरणा से है? किसके प्रयासों से है?
मतलब.... यदि मतदाता टीएमसी कार्यकर्ताओं की सक्रियता से आए हैं, तो टीएमसी को और यदि बीजेपी कार्यकर्ताओं के प्रयासों से आए हैं, तो बीजेपी को फायदा होगा!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-विधानसभा चुनाव अपडेट: सुबह 11 बजे तक बंगाल में 24.61 और असम में 24.48 प्रतिशत मतदान
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