होली विशेष: फिल्मों में रही होली की धूम....

होली विशेष: फिल्मों में रही होली की धूम....

प्रेषित समय :18:08:10 PM / Sun, Mar 28th, 2021

राजेन्द्र मिश्र ‘राज’. फिल्मों की पटकथा में त्यौहारों की अपनी अनोखी भूमिका रही है. जितने ग्रेट शो-मैन हुए, उन्होंने फार्मूलों पर सुपर हिट फिल्में दी. किसी ने ’लास्ट एण्ड फाउंड‘ फार्मूले पर फिल्में बनाई तो किसी ने रोमांटिक कहानियों पर फिल्में दी.

युद्ध घटनाओं पर भी गिनी चुनी फिल्में बनीं. धार्मिक कहानियों, पौराणिक कहानियों, प्रसिद्ध उपन्यासों पर भी फिल्में बनी. त्यौहारों पर भी फिल्में बनी, खासकर, दीपावली, होली, गणेशोत्सव, ईद एवं रक्षाबंधन पर हिट गीतों का भी जन्म हुआ. होली का दृश्यांकन कई फिल्मों का इतना प्रभावी रहा कि यादगार बन गया.

’फाल्गुन‘, शहीद, ’शोले‘, ’जख्मी‘, सिलसिला जैसी सुपरहिट फिल्मों को भला कौन भूल पाएगा. होली का पर्व फिल्मों की कहानी में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ. होली से जुड़े सैंकड़ों गीत आज भी उतने ही चाव से सुने जाते हैं जितने फिल्म के प्रदर्शन के दौरान सुने जाते थे. रूपहले पर्दे की होली ने समाज पर भी अपना गहरा प्रभाव छोड़ा. युवाओं ने उनकी निजी जिंदगी में नकल भी करने की कोशिश की.

फिल्मी होली में ग्लैमर का तड़का एवं हिंसा का प्रभाव स्पष्ट नजर आया. जख्मी का वह गीत जिसमें सुनील दत्त  बदले की भावना लिए गीत गाते हैं, दिल में होली जल रही हैं. दर्शकों को प्रभावित कर गया. ’शोले‘ की होली का दृश्य दर्शक आज भी कहां भुला पाएं हैं बसंती का डांस, गांव में जश्न और गब्बर के डाकुओं का गांव पर हमला, फिर वीरू-जय के साथ उनकी भिड़ंत. फिल्म का बहुत बड़ा सीन होली पर्व से ही जुड़ा था. ’सिलसिला‘ फिल्म का वह गीत जिसमें त्रिकोणात्मक प्रणय फिल्माया गया था. मेरा रंग दे बसंती चोला,...गीत आज भी उतनी ही ऊर्जा प्रदान करता है जितना मनोज कुमार के दौर में इस गीत ने ऊर्जा पैदा की थी. होली को फिल्मकारों ने व्यवसायिकता की कसौटी पर फिल्मों में इस्तेमाल किया. काश! पर्व के मर्म को वे न बिगाड़ते. दर्शकों को ग्लैमर की चकाचैंध ने आकर्षित किया.

आर.के. स्टूडियो की होली अपने आप में अनोखी थी. राजकपूर साहब के निधन के बाद कुछ वर्षों तक ही होली की मौज जारी रह पायी. होली का पर्व दरअसल फिल्मकारों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ. फिल्म का क्लाइमेक्स होली के सीन ने ही बड़े नाटकीयता से बदल दिया. होलिका दहन का सीन और अचानक खलनायक की खूनी होली फिर वर्षों बाद हीरो की जेल से होलिका दहन की रात्रि वापसी और अपने परिवार पर हुए आक्रमण का बदला लेना वगैरह वगैरह. ऐसा ही सीन हम सभी ने ’जख्मी‘ फिल्म में देखा था. कहानी की मांग के अनुसार ही गीत तैयार हुआ और फिल्माया गया. विधवा नायिका पर नायक द्वारा रंग डालना, फिर दोनों में प्यार होना, उसी का बखान करता गीत और उसका सुन्दर, सलीके से फिल्मांकन, विधवा का पुनर्विवाह वगैरह वगैरह.

धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, अनिल कपूर, दिलीप कुमार सहित सभी महानायकों ने फिल्मी परदे पर होली खेली. होली के हुड़दंग को सलीके से फिल्माने का श्रेय भी कुछ फिल्मकारों को मिला. कहने का तात्पर्य यही है कि फिल्मकारों ने होली को सफलता से रूपहले पर्दे पर फिल्माया.

रूपहले परदे का सीधा असर छोटे परदे पर भी पड़ा. फिर समाज पर भी ’होली‘ का गहरा प्रभाव पड़ा. धनाढ्य वर्ग ने होली की पूर्व संध्या पर पार्टी देने की परम्परा कायम की. रंग-भंग और संगीत की महफिल ने असर जमाना शुरू कर दिया. होली मिलन समारोह भी आयोजित किये जाने लगे. होली के दौरान ंिहंसा की बढ़ती घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी. आखिर, क्यों होली के दौरान ंिहंसक वारदातें बढ़ रही हैं. क्या नशा तो इसके लिए कसूरवार नहीं क्योंकि नशे में धुत लोग ही झगड़े-फसाद पर आमादा होते हैं और खुशियों का पर्व मातम में बदल जाता है.

एक तरफा प्यार के अफसानों का होली के दौरान दुखांत भी दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा. फिल्मकार दलील में कहते हैं कि वे तो वही दिखा रहे हैं जो हमारे समाज में घटित हो रहा है, वहीं आलोचक फिल्मों पर दोषारोपण कर अपना कर्तव्यबोध दर्शाते हैं. सच यही है कि फिल्मों में कल भी होली की धूम थी और कल भी रहेगी क्योंकि होली है ही रंगों का अनोखा प्यार.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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