विष्णुदेव मंडल. आपने शाम के समय कहीं न कहीं चमगादड़ उड़ते हुए अवश्य देखे होंगे। ये कई नामों से जाने जाते हैं। इन्हें हिंदी में चमगादड़, मैथिली और बंगला में बादुर कहते हैं।
वैज्ञानिकों ने चमगादड़ की कुल 800 प्रजातियों का पता लगाया है। उनका मानना है कि आज से दो करोड़ वर्ष पहले भी चमगादड़ पृथ्वी पर पाया जाता था। विशेषज्ञों ने उन्हें पक्षियों की श्रेणी में नहीं रखा है।
चमगादड़ तितली से लेकर चील तक के आकार के होते हैं। छोटे चमगादड़ प्रायः खपड़ैल वाले मकान के दरारों और छप्परों में तथा बांस के सुराखों में अक्सर मिल जाते हैं। ये कीड़े, मकोड़े, फतिंगे तथा दीमकों को अपना भोजन बनाते हैं। ये अपने रहने के स्थान को बखूबी पहचानते हैं चाहे वह किसी बिल में ही क्यों न रहते हों।
मकानों और खोहों में रहने वाले चमगादड़ उल्टा नहीं लटकते। ये आहार करने के लिए रात में दो बार निकलते हैं। पहली बार संध्या शुरू होते ही निकल कर आहार करने में लग जाते हैं और बारह बजे रात में अपने रहने के स्थान पर चले जाते हैं। दो घंटे विश्राम करने के बाद फिर दो बजे रात में निकलने के बाद सुबह होते ही चिडि़यों के जगने से पहले अपने रहने के स्थान पर चले जाते हैं। इनके दुश्मन कौआ, बाज और अन्य पक्षी हैं।
कोई-कोई चमगादड़ तो सारी रात स्वच्छंद उड़ता रहता है। यह चूट -चूट-चूट -चुट की आवाज करके बोलता है। खपड़ैल वाले मकानों में रहने वाले छोटे चमगादड़ अपने आठ-दस परिवारों के साथ रहते हैं। इसके इतने परिवार बांस के छेद में भी रहते हैं।
जंगलों और गुफाओं में रहने वाले बड़े और मंझले कद के चमगादड़ उल्टा लटकते हैं। उनके उल्टा लटकने से उनके शिकारी दुश्मन पक्षी इस भ्रम में पड़ जाते हैं कि उस वृक्ष के सूखे पत्ते लटक रहे हैं क्योंकि वृक्ष के सूखे पत्तों और चमगादड़ों में कोई भिन्नता मालूम नहीं पड़ती। दोनों एक जैसे लगते हैं।
बड़े चमगादड़ शाकाहारी और फलाहारी होते हैं। ये चमगादड़ दो रंग के होते हैं, काले और भूरे। इनका भोजन पका हुआ आम, अमरूद, महुआ, जामुन, बरगद और पीपल के पके हुए फल, पपीते आदि हैं। ये अपने भोजन की खोज में कई कई किलोमीटर दूर तक निकल जाते हैं।
इनकी घ्राणशक्ति बड़ी तेज होती है। कई-कई किलोमीटर दूर से पके फलों की गंध पाकर वहां तक पहुंच जाते हैं। अपने भोजन की खोज में ये चालीस किलोमीटर दूर तक निकल जाते है। दूर रहते हुए भी फलों की गंध पाकर वे समझ जाते हैं कि वह किस फल की गंध है और कितनी दूर से आ रही है।
बड़े चमगादड़ की आवाज बड़ी कर्कश होती है। जब दो चमगादड़ आपस में झगड़ते हैं, तब उनके मुंह से जोरों की खीं-खीं-खीं-खीं खीं की चीख निकलती है।
वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि चमगादड़ अपने मुंह से आहार और मंुह से ही मल त्याग करता है। उनका मानना है कि चमगादड़ों की आंखें नहीं होती। वे अंधे होते हैं लेकिन प्रायः देखा गया है कि खपड़ैल वाले मकानों में रहने वाले चमगादड़ को सांप जब पकड़ने के लिए उनकी ओर सरकता है तो चमगादड़ उड़ कर भाग जाता है।
दिन के बारह बजे चिलचिलाती धूप में भी चमगादड़ को उड़ते देखा गया है। उड़ने वाले जीवों में चमगादड़ ही ऐसा जीव है जो बच्चे को जन्म देता है और दूध पिलाता है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-रहस्य रोमांच: नक्कारे में प्रेतात्मा!
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