भारतीय नव वर्ष के आगमन का सन्देश प्रकृति का कण कण देता है!

भारतीय नव वर्ष के आगमन का सन्देश प्रकृति का कण कण देता है!

प्रेषित समय :19:45:40 PM / Mon, Apr 12th, 2021

विनोद बब्बर
चैत्र-मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि .
शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति..

भारतीय नव वर्ष के आगमन का सन्देश प्रकृति का कण कण देता है. पुरातन का संरक्षण और नवीन का सृजन प्रकृति का हर एक कोना कहता है. वृक्ष व पेड पौधे अपनी पुरानी पत्तियों व छाल से मुक्ति पा कर नवीन रूप से पल्लवित होते है. हजारो वर्षो से व्रत, त्योहार, विवाह, जन्म, पूजा -अर्चना,शुभाशुभ कार्य आदि में भारतीय संवत्सर ही अपनी विशेष भूमिका निभाता है. चाहे दीपावली हो, चाहे होली हो, चाहे कृष्ण जन्माष्टमी हो अथवा रामनवमी हो, भारतीय पंचांग से ही इनकी गणना होती है. नव संवत् यानी संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्रा क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में भी विस्तार से दिया गया है.

महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है. युगों में प्रथम सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ है. कल्पादि-सृष्ट्यादि-युगादि आरंभ को लेकर इस दिवस के साथ अति प्राचीनता जुडी हुई है. भास्कराचार्य ने इसी दिन को आधार रखते हुए गणना कर पंचांग की रचना की जो विभिन्न ग्रहांे, चंद्रमा एवं सूर्य की गति एवं दिशाओ का उतना ही प्रमाणिकता से निर्धारण करता है जितना आधुनिक कम्प्यूटर से जुड़ा सैटेलाईट.

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को भारतीय नववर्ष, नव संवत्सर, वर्ष प्रतिपदा या युगादि भी कहा जाता है. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘गुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है. जनमान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बालि के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी. राजा बालि के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने तब घर-घर में उत्सव मना कर ध्वज (गुड़िया) फहराए थे. उसी की याद में आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है. आंध्र प्रदेश में ‘पच्चड़ी प्रसाद‘ का प्रचलन है. माना जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है. वहां में इसी दिन से ‘आम’ खाया जाता है. पारंपरिक रूप से नौ दिन तक चलने वाली नवरात्रि  (दुर्गा पूजा) और रामनवमी की धूम रहती है.

बसंत के बाद प्रकृति करवट लेती है. यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है. रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. प्रकृति नया रूप धर लेती है. मानव, पशु-पक्षी से जड़-चेतन प्रकृति तक प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है. इसका अहसास हम अपने चहुं ओर नवकोपल से रंग बिरंगे फूलों की सुगंध के रूप में करते हैं. कोयल गाती है तो खेतों में फसले तैयार होने को हैं. किसान की मेहनत स्वाभाविक रूप से अपना परिणाम देने वाली है तो वर्ष भर विद्यार्जन के लिए प्रयासरत रहे छात्रों को भी वार्षिक परीक्षाएं संपन्न होने के बाद परिणाम की प्रतीक्षा रहती है. भारत के विभिन्न प्रांतों के नववर्ष ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व की सरकारों का वित्तीय वर्ष और व्यापारियों का नववर्ष भी लगभग इसी समय प्रथम अप्रैल से आरंभ होता है लेकिन न जाने क्यों कुछ लोगों की जिद्द कि जब भयंकर सर्दी हो, पेड़ों से पत्ते तक गायब हांे, हाथ पांव जाम हांे यानी कहीं भी, कुछ भी ‘हैप्पी’ न हो, वे ‘हैप्पी न्यू इयर’ कहेंगे.

भारतीय नववर्ष का सांस्कृतिक जीवन से गहरा नाता है लेकिन पश्चिमी संस्कृति के अनुयायी अपने नववर्ष प्रथम जनवरी को मांस मदिरा सेवन से अश्लील नृत्य तक बहुत कुछ ऐसा करते हैं जिसका शालीनता से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता.  यहां यह विशेष स्मरणीय है कि 1978 में उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को किसी ने प्रथम जनवरी को ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कहा तो उन्होंने पलटकर कहा था, ‘बधाई? किस बात की बधाई? मेरा और मेरे देश  का तुम्हारे ‘न्यू इयर’ से कोई संबंध नहीं.’

यहां यह विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि स्वतंत्रता पश्चात सरकार नेें परमाणु वैज्ञानिक प्रो. मेघनाद साहा की अध्यक्षता में पंचांग सुधार समिति का गठन किया गया था. उस समिति में एक भी सदस्य ऐसा नहीं था जो भारत की ज्योतिष विद्या या हमारे धर्म शास्त्रों का ज्ञान रखता हो. प्रो. साहा तो भारतीय काल गणना के सूर्य सिद्धांत के घोर विरोधी और ज्योतिष को मूर्खतापूर्ण मानने वाले थे. विस्तृत अध्ययन के पश्चात इस समिति ने जो पंचांग बनाया, उसे ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुरूप ही बारह मासों में बांट दिया गया. अंतर केवल उनके नामकरण में रखा अर्थात जनवरी, फरवरी आदि के स्थान पर चैत्र, वैशाख आदि रख दिए लेकिन, महीनों व दिवसों की गणना ग्रेगोरियन कैलेंडर के आधार पर ही की गई.

स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा. गुलाम बनाए रखने वाले प्रतीकों को महिमा मंडित करने से आत्म सम्मान नष्ट होता है.’

महात्मा गांधी ने 1944 में अपनी पत्रिका में लिखा था, ‘स्वराज का अर्थ है स्वसंस्कृति, स्वधर्म एवं स्व परम्पराओं का हृदय से निर्वहन करना. पराया धन और परायी परंपरा को अपनाने वाला न तो ईमानदार कहलाता है और न ही आस्थावान.’

हम सभी को जानना चाहिए कि आखिर यह दिन महत्वपूर्ण क्यों हैं. इसी दिन उज्जयनी नरेश विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांताओं से भारत-भू का रक्षण किया था. इसलिए कृतज्ञ राष्ट्र ने इसे विक्रमी संवत कह कर पुकारा.

* इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र का राज्याभिषेक हुआ. 
* महाभारत की समाप्ति के पश्चात इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ. 
* सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्म इसी दिन हुआ.
* इसी दिन सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक करुणावतारं संत झूलेलाल का जन्म हुआ था.
* इसी दिन महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना की थी.
* इसी दिन विश्व की सबसे विशाल स्वयंसेवी संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा  केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ था.

ऐसे अनेक अन्य कारण भी है जिन्होंने इस दिन को विशेष बनाया है. अतः हम सब को भी इस विशेष दिन स्वयं को अपने, अपने परिवार, अपने समाज और अपने राष्ट्र को सबल, सुरक्षित, समृद्ध बनाने के लिए अपनी पूरी शक्ति, गति तथा बुद्धि लगाकर कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए. भारत में कहीं सामाजिक असमानता  और आर्थिक विषमता शेष न रहे, यह सुनिश्चित करना केवल सरकार की नहीं बल्कि समाज यानी हम सब की जिम्मेवारी है.

मनुष्य स्वभाव से आशावादी होने के कारण नये सपने बुनता है और भविष्य की ओर देखता है. नये साल पर सभी लोग व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय सन्दर्भ में गुजरते हुए साल को अलविदा करने की तैयारियों के साथ पिछले एक वर्ष के दौरान अपनी सफलताओं, असफलताओं, उपलब्धियों और गलतियों की समीक्षा करते हैं और नये साल में पिछली भूलों, त्रुटियों और भटकावों से बचकर सुख, समृद्धि, शांति, वैभव एवं सफलता की नयी मंजिल हासिल करने के लिये संकल्पबद्ध होते हैं. अपने विश्वासों, अपनी परंपराओं के अनुसार लोग अपने परिवेश की सफाई कर सजाते हैं और दीपमाला करते हैं. नये कपड़े, फूल, पकवान और फल की सुगंध से घर महक उठता है. वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने हेतु वृक्षारोपण करते हुए एक-दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए आइये इस नये वर्ष में हम सब एक सुरक्षित, संवेदनशील, शांतिकामी और प्रगतिगामी भारत के निर्माण का संकल्प लें. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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