हेमेन्द्र क्षीरसागर.महात्मा गौतम बुद्ध काजन्म लगभग 2500 वर्ष पूर्व (563 वर्ष ई.पू.), हिन्दू पंचांग केअनुसार वैशाख पूर्णिमा को (वर्तमान में दक्षिण मध्य नेपाल) की तराई मेंस्थित लुम्बिनी नामक वन में हुआ। माता माया देवी के गर्भ में आतेही राजपरिवार को सुख समृद्धि होने लगी, इसलिए उनका नाम ‘सिद्धार्थ’ रखा गया। पिता राजा शुद्धोधन ने राजकुमार का नामकरण समारोह आयोजित किया और आठविद्वानों को उनका भविष्य जानने के लिए आमंत्रित किया। सभी विद्वानों ने एक सीभविष्यवाणी की ‘यह बालक महायोगीबनेगा।
भगवान बुद्ध काविवाह यशोधरा से हुआ। बुद्ध को राज्य, पत्नी, पुत्र एवं अन्यपरिवारी जन आदि अपनी साधना के मार्ग में अवरोध जैसे लगने लगे। तीस वर्ष की आयु मेंएक रात्रि के समय सभी को सोता हुआ छोड़कर सिद्धार्थ राजभवन को त्यागकर वन में चलेगए। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक जन्म तथा मृत्यु के रहस्य को नही समझ लूँगा तबतक इस कपिलवस्तु नगर में प्रवेश नही करूंगा। 6 वर्ष की कठोरसाधना के बाद गया (बिहार) में एक पीपल के पेड़ के नीचे गहन समाधि के बाद उन्हेंज्ञान प्राप्त हुआ। सिद्धार्थ को अब बोध पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ और इस वह ‘भगवान बुद्ध’ कहलाने लगे। अपनेप्रथम उपदेश के लिए भगवान बुद्ध ने वाराणसी के निकट सारनाथ नामक स्थान को चुना। भगवानबुद्ध 44 वर्षों तक निरंतर उपदेश करते हुए वे भ्रमण करते रहे।
सैकड़ों वर्षों सेव्याप्त रूढ़ियों, अंधविश्वासों, भेदभावों तथाअनेकानेक जड़ मान्यताओं को उन्होंने अमान्य कर दिया। व्यर्थाडम्बर से रहित साधना-पद्दतिने दुखों से मुक्त होने का एक नया एवं सरल मार्ग दिखलाया। देखते ही देखते बौद्धमतसम्पूर्ण भारत के साथ-साथ भारतवर्ष की सीमाओं को लांगते हुए नेपाल, तिब्बत, बर्मा, वियतनाम, चीन, जापान, मंगोलिया, लंका, कोरिया, जावा और सुमात्राआदि में फ़ैल गया। उन्होंने विश्व के अनेक स्थानों के जनमानस को सुख-शांति का एकनया रास्ता खोल दिया। यह वह समय था जब हम कह सकते है कि बौद्धमत ने विश्वधर्म काप्रतिष्ठित स्थान पा लिया था।
हिन्दू समाज नेउनको अपने दशावतारों में स्थान दिया और वह भगवान बुद्ध कहलाने लगे। भारतीय धर्म, दर्शन, कला, साहित्य सृजन एवंशिक्षा व्यवस्था को नये-नये आयाम प्राप्त हुए। उसी समय तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, मगध के विश्वविद्यालयों ने विश्वप्रसिद्धि प्राप्त की। सांस्कृतिक उत्थान का एक नया युग प्रारंभ हो गया। भगवानबुद्ध के विचारों के साथ-साथ ग्रन्थलेखन, मूर्तिकला, स्तूप निर्माण, मठ स्थापना, गुफाओं मेंभित्ति प्रतिमाओं आदि का विकास हुआ।
भगवान गौतम बुद्ध काकहना था कि इस संसार में कुछ भी स्थिर नही सभी कुछ नाशवान है। सभी प्रकार केप्राणी चाहे वे उत्तम, मध्य नीच जो भी हो सभी का विनाश सुनिश्चित है। भगवान बुद्धस्वयं अपना संकल्प स्पष्ट करते है, मैंने जंगल मेंजाकर जो साधना की है उसका उद्देश्य यही है कि, वृद्धावस्था तथा मृत्यु के दुख को नष्ट कर सकूं। भगवान बुद्ध के सर्वत्यागी तपोमय जीवन तथा उनकीकरुणा-पूर्ण वाणी का कुछ ऐसा अद्भुत प्रभाव हुआ कि देश के बड़े-बड़े सम्राट, जैसे कौशल देश के प्रसेनजित, मगध सम्राट अजातशत्रु, सम्राट अशोक, प्रतापी हूण राजा कनिष्क एवं सम्राट हर्षवर्धन आदि बुद्ध के विचार को स्वीकारकर अपनी समस्त राजशक्ति के आधार पर बौद्ध-दर्शन के विचार के प्रचार प्रसार में लगगए।
उन्होंने मनुष्य की मर्यादा को यह कहकर उपर उठाया कि कोईमनुष्य केवल किसी कुल में जन्म लेने से पूज्य नही होता। उच्चता नीचता, जन्म पर नही, कर्म परअवलंबित है। जाति-प्रथा को शिथिल करके बुद्ध और उनकी परम्परा के अन्य संतों ने भारत में वह अवस्था उत्पन्न की। जिसमेंनिर्गुणिया संतों का मत फूल-फल सका। भगवान बुद्ध को अतिरेक, हिंसातथा युद्ध आदि कतई पसंद नही थे। सब मनुष्यों के अवयव समान ही होने से मनुष्यों मेंजातिभेद निश्चित नहीं किया जा सकता। परन्तु मनुष्य की जाति कर्म से निश्चित की जासकती। बुद्ध का यह उपदेश सुनकर वशिष्ठ और भारद्वाज उनके उपासक बन गए / धर्म बैनर +फ्रंट हेड
भगवान बुद्ध ने जन्म से किसी भी प्रकार के जाति एवंवर्ण-भेद को अपने जीवन में स्थान नही दिया। भगवान् बुद्ध का मानना है कि इस संसार में वैर कभी भी वैर से शांत नहीं होता है, वैर तो मैत्री से ही शांत होता हैं– यही सनातन धर्म है”। बौद्ध धर्म मेंचार स्थान अत्यंत पवित्र माने जाते हैं– पहला कपिलवस्तु, जहाँ बुद्ध काजन्म हुआ। दूसरा– बौद्ध गया, जहाँ बुद्ध कोज्ञान प्राप्त हुआ। तीसरा- सारनाथ, जहाँ बुद्ध नेपहला प्रवचन दिया और चौथा– कुशीनगर, जहाँ अस्सी वर्ष की आयु में उन्होंने अपना अंतिम सन्देशदिया और वहीं एक वृक्ष के नीचे अपना शरीर त्याग दिया।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-गृहस्थी में पूजा कैसे करें ? बहुत ही सरल एवं सुन्दर विधि ?
मोहिनी एकादशी पर कैसे करें पूजा, जानें विधि एवं महत्व
26 मई के दिन लगने वाला चंद्र ग्रहण का सूतक मान्य नहीं होगा, जानें पूजा और महत्व
बिना तीर्थयात्रियों की हो रही पूजा, चारधाम यात्रा अस्थायी रूप से स्थगित
Leave a Reply