अभिमनोेजः कमाल है? यूपी में छोटेे दल की इतनी बड़ी दावेदारी!

अभिमनोेजः कमाल है? यूपी में छोटेे दल की इतनी बड़ी दावेदारी!

प्रेषित समय :07:35:52 AM / Thu, Jun 24th, 2021

नजरिया. यूपी में अगले बीजेपी सीएम के चेहरे की उलझन तो बमुश्किल जैसेे-तैसेे सुलझ रही है, इस बीच बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी ने एक बड़ा सियासी दावा ठोक दिया है. निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में उप-मुख्यमंत्री पद की मांग की है.

खबरों पर भरोेसा करेें तो उनका दावा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी अगर उन्हें उप-मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ती है, तो इससे उसे और फायदा मिलेगा और हमारी सरकार बनेगी.

याद रहे, कुछ समय पहलेे संजय निषाद ने दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी औैर अब उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में अब तक सभी जातियों के मुख्यमंत्री बनाए जा चुके हैं, लेकिन अब 18 प्रतिशत वोट की ताकत रखने वाले मछुआरा समाज के चेहरे पर बीजेपी को चुनाव लड़ना चाहिए.

मजेदार बात तो यह है कि उनका कहना है कि यदि मुख्यमंत्री नहीं बना सकते तो कम से कम डॉ. संजय निषाद को बीजेपी आगामी चुनाव में उप-मुख्यमंत्री का चेहरा ही बना कर चुनाव लड़े, यदि बीजेपी ऐसा करती है तो इससे पूरे प्रदेश में निश्चित ही विजय मिलेगी और एक बार फिर सरकार बनेगी.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गंगा के किनारे वाले पूर्वी यूपी में निषाद समुदाय की बड़ी आबादी है, लिहाजा वर्ष 2016 में गठित निषाद पार्टी- गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, जौनपुर, बलिया, वाराणसी सहित करीब डेढ़ दर्जन जिलों में जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है.

यही वजह है कि संजय निषाद ने ऐसा दावा किया है कि उप-मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए?

वैसे, उनके दावे को कितनी गंभीरता से लिया जाएगा, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन एकदम नजरअंदाज करना भी आसान नहीं है.गौरतलब है कि संजय निषाद गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े थेे, परन्तु उन्हें करीब पैतीस हजार वोट मिले और वह चुनाव हार गए. यह बात अलग है कि संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद, संत कबीर नगर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद हैं. वर्ष 2018 में गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उप-चुनाव में सपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया था. तब मुख्यमंत्री योगी के गढ़ में चुनाव जीतकर प्रवीण निषाद ने सियासी धमाका कर दिया था. इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव से पहले प्रवीण बीजेपी में शामिल हो गए.

बड़ा सवाल यह है कि बीजेेपी अपने बड़े प्रादेशिक नेताओं केे अलावा और किन-किन नेेताओें के सियासी दबाव को बर्दाश्त करेेगी? क्योंकि, चुनाव से पहले ही यदि इस तरह का दबाव बनाने वाले किसी नेता को उसकी क्षमता से अधिक दे दिया गया, तो यकीनन आने वाले समय में राजनीतिक अनुशासन बनाए रखना असंभव हो जाएगा!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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