दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा: डीआरटी जबलपुर को लखनऊ अटैच करने की वैधता पर केंद्र शासन दे चार सप्ताह में जवाब

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा: डीआरटी जबलपुर को लखनऊ अटैच करने की वैधता पर केंद्र शासन दे चार सप्ताह में जवाब

प्रेषित समय :17:29:09 PM / Tue, Jul 13th, 2021

नई दिल्ली. नई दिल्ली उच्च न्यायालय की माननीय मुख्य न्यायधिपति डीएन पटेल एवं न्यायमूर्ति श्रीमती ज्योति सिंह की युगल पीठ ने केंद्र शासन को नोटिस जारी करते हुए ऋ ण वसूली प्राधिकरण (डीआरटी) मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ को जबलपुर से लखनऊ अटैच करने की अधिसूचना की वैधानिकता पर चार सप्ताह मे जवाब मांगा है. यह नोटिस मध्य-प्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद, स्टेट बार कॉउंसिल  द्वारा दाखि़ल याचिका में जारी हुए, जिसमे केंद्र सरकार द्वारा डीआरटी जबलपुर को डीआरटी लखनऊ में अटैच करने के निर्णय को इस आधार पर चुनौती दी गयी थी की ऋ ण राशि वसूली अधिनियम 1993 की धाराओं के विपरीत जा कर केंद्र ने यह अधिसूचना जारी की है एवं यह अंदरूनी तरीके से असंवैधानिक है. याचिका मे यह भी कहा गया की ऋ ण वसूली अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं के बाहर डीआरटी सम्बन्धी क्षेत्राधिकार को नहीं स्थानांतरित किया जा सकता जो की केंद्र सरकार द्वारा बिना दिमाग लगा कर दिया गया. स्टेट बार कौंसिल की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता एवं अंकुर माहेश्वरी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पैरवी की. अगली सुनवाई 20 अगस्त 2021 को नियत की गयी.  

डीआरटी अर्थात ऋ ण वसूली प्राधिकरण द्वारा बैंको एवं वित्तीय संस्थानों  द्वारा दिए जाने वाले ऋ णों की लेनदारी देनदारी सम्बन्धी के विवादों पर निर्णय किये जाते है.  गत एक वर्ष से यहां पर निर्णायक न्यायमूर्ति का पद खाली है एवं केंद्र शासन द्वारा समय समय पर कभी लखनऊ, कभी कट्टक को इसका क्षेत्राधिकार दे दिया जाता है.  यह मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के सभी प्रकरणों के विवादों का निपटारा करती है.  जनवरी 2021  मे एवं हाल ही मे 5  जुलाई 2021 को केंद्र शासन द्वारा डीआरटी जबलपुर को लखनऊ से अटैच कर दिया गया, जिससे क्षुुब्ध होकर वकीलों के हितों के संरक्षण हेतु राज्य अधिवक्ता परिषद मध्य प्रदेश द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र शासन की सूचना को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गयी.  याचिका में यह कहा गया कि सुलभ न्याय की परिभाषा के विरुद्ध है, जब इस प्रकार से 600 किलोमीटर दूर बिना पद भरे एक साल तक ऐसे महत्वपूर्ण पद को खाली रखा जाता है.  बार कॉउन्सिल द्वारा अपनी याचिका मे यह भी कहा गया की यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित निर्णय एवं सिद्धांतों के विपरीत है एवं केंद्र शासन एक माह से ज़्यादा डीआरटी के पदों को खाली नहीं रख सकता.  याचिका मेें यह भी कहा गया की ऋ ण वसूली अधिनियम 1993  की धारा 4  के अंतर्गत अगर डीआरटी के निर्णायक अधिकारी का पद खाली है तो वह प्रदेश के अंदर ही केंद्र द्वारा स्थापित किसी भी अन्य ट्रिब्यूनल के न्यायिक अधिकारी  को दिया जा सकता है ना की प्रदेश के बाहर 800 किलोमीटर स्थित दूसरे डीआरटी को.  इन्हीं सभी मुद्दों पर याचिका दायर की गई जिस पर आज युगल-पीठ द्वारा सुनवाई की गयी.  

स्टेट बार काउंसिल की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने पैरवी की जिन्होंने तर्क दिया की बार काउंसिल द्वारा अपने अधिवक्ता सदस्यों के हितों के संरक्षण हेतु याचिका दायर की गयी है, जिसमें अधिसूचना को निरस्त किया जाना अत्यंत आवश्यक है.  गुप्ता ने दलील दी की केरल उच्च न्यायालय के द्वारा मिलते जुलते तथ्यों में केंद्र की अधिसूचना को निरस्त कर दिया गया था जब केरल राज्य के डीआरटी को बैंगलोर कर्नाटक में अटैच कर दिया गया था एवं तत्पश्चात केंद्र ने उस निर्णय को स्वीकार भी कर लिया.  श्री गुप्ता के तर्कों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय की युगल-पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी करते हुए 20  अगस्त 2021 की सुनवाई नियत की है. याचिका में यह भी मांग की गयी है की यह बंधनकारी निर्देश केंद्र को दिए जाए कि एक माह से ज़्यादा कभी भी डीआरटी के निर्णायक अधिकारी का पद खाली न रहे एवं तत्काल उस पर नियुक्ति हो.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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