नजरिया. किसान आंदोलन को लेकर शुरू से ही मोदी सरकार की सोच किसानों को रोकने की ही रही है, मोदी सरकार की इसी सोच का ही नतीजा है कि किसान देश की राजधानी दिल्ली में ही प्रदर्शन के अधिकार से वंचित हैं.
खबर है कि केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के बीच सोमवार से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है और किसानों ने भी इस दौरान सिंघु बॉर्डर से संसद तक मार्च करने की चेतावनी दी है. खबरों की माने तो इसको लेकर रविवार को दिल्ली पुलिस ने किसानों के साथ बैठक की, जिसमें दिल्ली पुलिस ने किसानों को संसद मार्च की स्वीकृति देने से इनकार कर दिया. अलबत्ता, बैठक में चर्चा के दौरान जंतर-मंतर के पास प्रदर्शन का विकल्प सामने आया, पर किसानों को यह मंजूर नहीं है, लिहाजा इस मुद्दे को लेकर सोमवार को फिर बैठक होगी.
उल्लेखनीय है कि सिंघु बॉर्डर के पास एक भवन में हुई रविवार की बैठक के बाद भी कोई सर्वमान्य परिणाम नहीं निकला है.
जहां, दिल्ली पुलिस ने किसानों के संसद मार्च की मांग को साफ तौर पर नकार दिया है, वहीं किसानों का कहना है कि वे हर हाल में संसद तक मार्च निकालना चाहते हैं.
बड़ा सवाल यह है कि जब बीजेपी विपक्ष में थी, तब समय-समय पर प्रदर्शन करती रही थी, तो किसानों के प्रदर्शन से सरकार को इतना डर क्यों लग रहा है?
अहिंसक प्रदर्शन करना देश के नागरिकों का अधिकार है, किसानों को इस अधिकार से वंचित क्यों किया जा रहा है?
सियासी सयानों का मानना है कि मोदी सरकार कितनी ही कोशिश कर ले, किसान आंदोलन को बेनतीजा समाप्त करना संभव नहीं है. किसान आंदोलन का प्रत्यक्ष प्रभाव नजर आए या नहीं, किन्तु हर गुजरते दिन के साथ यह और भी प्रभावी होता जा रहा है!
मतलब- केंद्र सरकार किसानों को रोक सकती है, किसान आंदोलन को नहीं?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-लोकतांत्रिक देश में सरकार किसानों की बात नहीं मान रही है, लेकिन जब तक सरकार मांगे पूरी नहीं करेगी तब तक आन्दोलन जारी रहेगा .। #FarmersProtest
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) July 15, 2021
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